नई दिल्लीः ग्वादर पोर्ट को लेकर चीन और पाकिस्तान की धड़कनें बढ़ी हुई हैं,वजह है बलूचिस्तान में तेज़ हो रहा अलगाववादी आंदोलन. दरअसल पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट सीपेक यानी चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर की एक अहम् कड़ी है.
इस प्रोजेक्ट को लेकर विरोध की आवाज़ें शुरू से ही उठती रही हैं. बलूचिस्तान में पाकिस्तानी सेना के ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ उठती रही हैं. गुस्सा पाक सैनिकों को भी झेलना पड़ा है.
16 अक्टूबर को हुआ हमला
16 अक्टूबर को ही दक्षिण-पश्चिमी बलूचिस्तान में अर्धसैनिक बलों पर हमला किया गया. हमले में 14 लोगों की मौत हो गई जिसमें 7 सैनिक भी शामिल हैं. साल भर में ग्वादर पोर्ट को चीन से जोड़ने वाले CPEC पर 6 से बड़े हमले हो चुके हैं. इसमें कई पाकिस्तानी सुरक्षा कर्मियों की जान गई है.
खौफ में पाकिस्तान सरकार
बलूचिस्तान के लोग इस इलाके में चीन की बढ़ती सक्रियता से गुस्से में हैं. इसी वजह से पाकिस्तान की सरकार खौफ में है. उसे किसी भी वक्त ग्वादर पोर्ट पर बड़े हमले का अंदेशा सता रहा है. इसे देखते हुए पाकिस्तान ने ग्वादर पोर्ट की सुरक्षा की कमान स्पेशल टास्क फोर्स को सौंपी है जिसका नाम है TF88.TF-88 को गनबोट्स, फ्रिगेट्स , फास्ट अटैक क्राफ्ट और हवाई जहाज़ के साथ ही ड्रोन से भी लैस किया गया है.
ग्वादर पोर्ट पर बलूचिस्तान में विरोध
ग्वादर पोर्ट के विरोध के पीछे बलूच लोगों की समझ है कि पाकिस्तान सीपेक प्रोजेक्ट के बहाने बलूचिस्तान पर चीन की सत्ता थोपने का गंदा खेल खेल रहा है. चीन का CPEC सपना पूरा होने के बीच रोड़ा है बीएलए यानी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी जो बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रही है.
बलूचिस्तान पर पाकिस्तान ने जबरन कब्ज़ा कर रखा है. बलूचों का संघर्ष काफी पुराना है और बीएलए पाकिस्तानी सेना और नौसेना के अधिकारियों को निशाना बनाती रही है.
गुस्से में हैं बलूची लोग
बलूच लोगों को पिछले कुछ समय से CPEC के बहाने चीन के निवेश, क्षेत्र में ड्रैगन की बढ़ती मौजूदगी और प्रभाव काफी खल रहा है. बलूची लोगों को इस बात का भी गुस्सा है कि बिना उनसे पूछे पाकिस्तान ने ग्वादर पोर्ट को 40 साल की लीज़ पर चीन को दे दिया.
पिछले 2 साल में चीन के ठिकानों पर हमले बढ़े हैं. ग्वादर पोर्ट के पास ज़ावेरी पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल को निशाना बनाया गया जिसमें चीन का निवेश है.इसी तरह 2018 में कराची में चीन के कॉन्स्युलेट पर हमला किया गया.
बलूच विरोध से डरे चीन-पाक
दरअसल पहले बीएलए के निशाने पर पाकिस्तानी सुरक्षा बल के जवान होते थे लेकिन चीन से गुस्से के कारण अब चीनी नागरिकों पर भी हमले किए जा रहे हैं. 2011 में बनी बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी की मजीद ब्रिगेड ने खासतौर पर चीन के निवेश वाले ठिकानों को निशाना बनाया है.
शी जिनपिंग के सपनों का प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशियेटिव को सफल बनाने के लिए चीन ने 2017 में मरीन सैनिकों को ग्वादर में तैनात किया था. शिनजियांग प्रांत में CPEC को किसी तरह का खतरा न हो इसलिए चीन उइगर मुस्लिमों पर ज़ुल्म ढा रहा है उन्हें यातनागृह में डाला जा रहा है. चीन पाकिस्तान को अब डर यही है कि बलूच विरोध उनके सपने को धराशायी कर सकता है.
चीन के लिए CPEC फायदे का सौदा
चीन कैसे पाकिस्तान को झांसा देकर ग्वादर पर अपना प्रभाव जमाता जा रहा है,ये जानना भी ज़रूरी है.कर्ज़ के बोझ तले दबा पाकिस्तान ड्रैगन के चंगुल में ऐसा आया है कि उससे उबर पाना उसके लिए मुश्किल है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशियेटिव यानी बीआरआई का एक अहम् हिस्सा है CPEC यानी चाइना पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर. और उसकी एक अहम् कड़ी है ग्वादर पोर्ट.
2015 में चीन के 43 साल के लिए लीज पर दिया
कराची से करीब 533 किमी और ईऱान के चाबहार पोर्ट से 144 किमी दूर ग्वादर पोर्ट को पाकिस्तान ने 2015 में चीन को 43 साल के लिए लीज़ पर दे दिया. चीन ने ग्वादर पोर्ट के विकास पर 1.62 बिलियन डॉलर का खर्च किया है. ग्वादर पोर्ट के जरिए चीन मध्य पूर्व एशिया, अफ्रीका और यूरोपीय बाज़ारों तक आसानी से पहुंच सकेगा.
चीन से रेल औऱ रोड नेटवर्क के ज़रिए चीन का सामान ग्वादर पोर्ट तक पहुंचेगा और वहां से शिप के ज़रिए पश्चिमी देशों तक पहुंचेगा. इसी तरह मिडिल ईस्ट से तेल आसानी से चीन पहुंच सकेगा. इसके अलावा चीन का एक्सपोर्ट भी सस्ता होगा.
CPEC प्रोजेक्ट के तहत बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट से चीन के काशगर तक करीब 2414 किमी का कॉरिडोर चीन बना रहा है. ये कॉरिडोर पीओके और अक्साई चिन से होकर जाएगा. काशगर से पूर्वी छोर पर शंघाई का 4023 किमी का रास्ता भी चीन CPEC के तहत तैयार कर रहा है ताकि चीन के पश्चिमी प्रांत से उसका सामान बिना भारत के दबदबे वाले हिंद महासागर से गुज़रे पाकिस्तान होते हुए पश्चिमी देशों को ट्रांसपोर्ट हो सके.
CPEC में चीन ने पाक को फंसाया
सूत्रों के मुताबिक चीन ग्वादर में नौसैनिक अड्डा बनाने की फिराक में भी है ताकि वो हिंद महासागर में अपनी मज़बूत मौजूदगी बना सके. इस साल जून में फोर्ब्स पत्रिका ने सैटेलाइट तस्वीरों की स्टडी कर बताया था कि ग्वादर के पास कुछ नए निर्माण हुए हैं जो चीन के मरीन कोर का गैरिसन हो सकता है.
ग्वादर पोर्ट हासिल करने के बदले चीन ने CPEC के तहत पाकिस्तान में आधुनिक ट्रांसपोर्ट नेटवर्क बनाने, एनर्जी प्रोजेक्ट्स और स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन बनाकर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था मज़बूत करने का सपना दिखाया है, लेकिन सच्चाई ये है कि CPEC पाकिस्तान के लिए फायदे का नहीं घाटे का सौदा साबित होने वाला है. न कोई इसमें निवेश करने के लिए तैयार है और न ही CPEC से मुनाफे की कोई उम्मीद है.
पाकिस्तान ऐसे बना बेवकूफ
60 बिलियन डॉलर की लागत वाले CPEC प्रोजेक्ट की कॉस्ट अब 87 बिलियन डॉलर तक पहुंच चुकी है. चीन ने पाकिस्तान को कैसे मूर्ख बनाया है वो समझिए. CPEC प्रोजेक्ट का 90 फीसदी पाकिस्तान कर्ज़ के तौर पर चीन को चुकाएगा जिसका कभी भी पूरा हो पाना नामुमकिन है, नतीजा पाकिस्तान चीन के हाथों गिरवी होकर रह जाएगा.
मई, 2020 में अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने द डिप्लोमैट पत्रिका में लिखा था कि चीन CPEC के ज़रिए पाकिस्तान का भला करने के लिए नहीं आया है बल्कि ये उसकी पाकिस्तान को आर्थिक रूप से बंधक बनाने की चाल है.
CPEC के रास्ते में कानूनी पेंच
CPEC का सपना पूरा होने में एक कानूनी पेंच है. अंतर्राष्ट्रीय कानून के मुताबिक चीन पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में कोई भी निर्माण नहीं कर सकता क्योंकि ये भारत का हिस्सा है. 1948 के यूएन रिसोल्यूशन के मुताबिक भी कश्मीर भारत का हिस्सा है.
दूसरी ओर पाकिस्तान ने भले ही अवैध रूप से कब्ज़ा कर अक्साई चिन चीन को गिफ्ट कर दिया हो लेकिन कानूनी रूप से वो भी भारत का ही हिस्सा है इसलिए चीन वहां भी बिना भारत की इजाज़त के निर्माण नहीं कर सकता.
चीन CPEC पर इतना पैसा लगा चुका है कि उससे हाथ खींचना मुमकिन नहीं, बलूचिस्तान में जारी विरोध की आंच इस प्रोजेक्ट तक पहुंच रही है जो चीन की बौखलाहट का कारण है.
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