मुश्किल में था मालदीव, भारत ने 72 घंटे में नन्हे पड़ोसी को दी राहत

भारत ने अपने पुराने दोस्त और समुद्री पड़ोसी मालदीव का एक बार फिर समय पर साथ निभाया है. वहां फैल रहे खसरे(चेचक) के रोग से निपटने के लिए भारत ने तत्काल टीके पहुंचाए. साल 1988 में भी भारत मालदीव को तख्तापलट की बड़ी साजिश से बचा चुका है.   

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 24, 2020, 03:08 PM IST
    • भारत ने फिर से की मालदीव की मदद
    • मालदीव में खसरा(चेचक) फैलने का खतरा था
    • भारत ने 72 घंटे में पहुंचाई वैक्सीन
    • 1988 में भारत ने की है मालदीव की सुरक्षा
    • मालदीव को तख्तापलट से बचाया था
मुश्किल में था मालदीव, भारत ने 72 घंटे में नन्हे पड़ोसी को दी राहत

नई दिल्ली: मालदीव के स्वास्थ्य मंत्री अब्दुल्ला अमीन ने भारतीय राजदूत संजय सुधीर को इस खास मदद के लिए प्रशस्ति पत्र सौंपा है. क्योंकि भारत ने अपने नन्हे पड़ोसी के अनुरोध पर तत्काल कदम उठाया. 

मालदीव में खसरा फैलने का खतरा था
मालदीव से खसरे का उन्मूलन हो चुका है. लेकिन पिछले एक हफ्ते में चार मामलों के नतीजे पॉजिटिव आए हैं. जिसके बाद चारों तरफ समुद्र से घिरे इस देश में अफरा तफरी फैल गई. जिसके बाद मालदीव ने भारत से मदद का अनुरोध किया. 

भारत ने तुरंत कदम उठाते हुए खसरा के प्रसार को रोकने के लिए गुरुवार को खसरा और रूबेला (एमआर) टीके की 30,000 खुराक भेज दी. विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में यह जानकारी दी. बयान में कहा गया कि एमआर टीके की खुराक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया प्राइवेट लिमिटेड से खरीदी गई और तीन दिन के भीतर इसे माले पहुंचाया गया. 

मालदीव के स्वास्थ्य मंत्रालय को एक समारोह के दौरान 23 जनवरी (गुरुवार को ) ये टीके सौंपे गए. 

मालदीव ने की तारीफ
जिसके बाद मालदीव ने भारत का धन्यवाद करते हुए एक समारोह में अपने स्वास्थ्य मंत्री अब्दुल्ला अमीन के जरिए भारतीय राजदूत संजय सुधीर को प्रशस्ति पत्र सौंपा. मालदीव सरकार के आधिकारिक बयान में कहा गया कि भारत का त्वरित कदम रेखांकित करता है कि स्वास्थ्य भारत और मालदीव के बीच द्विपक्षीय संबंध के मजबूत आधार स्तंभों में शामिल है.

भारत मालदीव की मदद के लिए हमेशा आगे रहता है. दोनों देशों के बीच स्वास्थ्य सहयोग पर जून 2019 में पीएम मोदी की मालदीव यात्रा के दौरान समझौता हुआ था. भारत मालदीव में 100 बिस्तरों का आधुनिक अस्पताल के निर्माण में भी सहयोग कर रहा है. यह हॉस्पिटल टाटा मेमोरियल सेंटर द्वारा बनाया जा रहा है और 18 महीने के अंतराल में इसे पूरा किया जाएगा.

1988 में भारत ने मालदीव को बड़े संकट से बचाया था
3 नवंबर 1988 के दिन श्रीलंकाई उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम (PLOTE) के हथियारबंद उग्रवादियों की मदद से वहां के एक कारोबारी अब्दुल्लाह लथुफी ने तख्ता पलट की कोशिश की थी. उग्रवादियं ने मालदीव पहुंचकर  राजधानी माले की सरकारी इमारतों एयरपोर्ट, बंदरगाह और टेलीविजन स्टेशन को अपने कब्जे में ले लिया. 

लेकिन तत्कालीन राष्ट्रपति मामून अब्दुल गय्यूम के अनुरोध पर भारतीय सेना तत्काल मालदीव पहुंची और ऑपरेशन कैक्टस लांच किया गया. कुछ ही घंटों के भीतर भारतीय सेना माले से उग्रवादियों को खदेड़ दिया. वापस श्रीलंका की ओर भागते उग्रवादियों ने एक जहाज को अगवा कर लिया. जिसपर भारत के मरीन कमांडो उतार दिए गए और उसे छुड़ा लिया गया. आजादी के बाद विदेशी धरती पर भारत का यह पहला सैन्य अभियान था. 

इस कार्रवाई के लिए मालदीव की जनता भारत का हमेशा आभार मानती है. लेकिन भारत ने साबित कर दिया है कि उसकी मदद सिर्फ सैन्य कार्रवाई तक सीमित नहीं है. बल्कि खसरे जैसी बीमारियों से मुकाबले के लिए भी भारत हमेशा मालदीव के साथ खड़ा है. 

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