पाकिस्तान है आतंकवाद का गढ़: केपीएस गिल

पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशक एवं पूर्व आईपीएस अधिकारी केपीएस गिल किसी मसले पर अपनी साफगोई एवं बेबाक टिप्‍पणी के लिए जाने जाते हैं। उनके नाम अब तक कई उप‍लब्धियां जुड़ी रही हैं। सियासत की बात में ज़ी रीजनल चैनल्‍स के संपादक वासिंद्र मिश्र के साथ बातचीत में उन्‍होंने कई गंभीर मसलों पर स्‍पष्‍ट राय रखी।

वासिंद्र मिश्र
संपादक, ज़ी रीजनल चैनल्स
पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशक एवं पूर्व आईपीएस अधिकारी केपीएस गिल कई अहम मसलों पर अपनी साफगोई एवं बेबाक टिप्‍पणी के लिए जाने जाते हैं। उनकी शख्सियत के साथ कई उप‍लब्धियां जुड़ी रही हैं। सियासत की बात में ज़ी रीजनल चैनल्‍स के संपादक वासिंद्र मिश्र के साथ बातचीत में उन्‍होंने कई गंभीर मसलों पर स्‍पष्‍ट राय रखी। पेश है उसके मुख्‍य अंश:-
वासिंद्र मिश्र : नमस्कार आज के खास कार्यक्रम में आपका स्वागत है। आज हमारे खास मेहमान हैं पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल साहब। केपीएस गिल साहब किसी तरीफ किसी परिचय के मोहताज नहीं, इनको पूरा देश जानता है पूरी दुनिया जानती है। भारत के कुछ ही चुनिंदा पुलिस अधिकारी रहे हैं जिन्होंने आतंकवाद से लेकर आतंरिक सुरक्षा को लेकर सख्त कदम उठाए और आतंकवाद पर लगाम लगाने में अहम भूमिका निभाई है, उसमें से एक केपीएस गिल साहब हैं। आज हम उनसे जानने की कोशिश करेंगे इस समय दुनिया में जो आतंकवाद बढ़ रहा है आखिर उनके पीछे वो कौन ताकते हैं जो लगातार अपना कार्यक्षेत्र और दायरा बढ़ाती जा रही है और भारत में जो मुख्य दो समस्याएं हैं आतंरिक सुरक्षा और नक्सलवाद, उसके पीछे मुख्य वजह क्या है। इसे रोक पाने में हमारी सुरक्षा एंजेसियां और हमारी सरकारें क्यों प्रभावी कदम नहीं उठा पा रही है। गिल साहब आपका बहुत-बहुत स्वागत है।
वासिंद्र मिश्र‍b> : गिल साहब, हमारे देश में आतंरिक सुरक्षा को एक बार फिर से खतरा दिखाई दे रहा है और लगातार धीरे धीरे उन राज्यों में जहां कि एक दौर आया था बहुत ज्यादा असुरक्षा कि भावना आ गई थी, आप जैसे अधिकारियों ने बहुत ज्यादा नियंत्रित किया था, अब इन राज्यों में फिर इस तरह के तत्व सिर उठाने लगे हैं, इसकी वजह क्या है आप की नजर में?
केपीएस गिल : जो मुख्य वजह है, वो पुलिसिंग है वो बहुत ज्यादा राजनीतिक हो चुकी है। ठीक है कि इलेक्शन लड़ने के लिए हर एक पार्टी को किसी न किसी सेक्शन का वोट चाहिए लेकिन पॉलिटिकल पार्टी जीत कर सरकार बनाती है तो उसका जो लक्ष्य है, वो चेंज हो जाता है। इसके बाद जो स्टेट के लोग हैं वो उनकी जिम्मेदारी बन जाते हैं। लेकिन पॉलिटिकल पार्टी का आज रवैया बदला है कि सिर्फ उनके जो वोटर हैं या जो वोट बैंक हैं, उसका ख्याल रखा जाए बाकी जो मरते हैं तो मरें। अगर उनके ऊपर जुल्म हो रहा है, अन्याय हो रहा है तो होने दो और अपने इलाके का ख्याल रखो।
वासिंद्र मिश्र : इसके लिए आप को नहीं लगता है कि पुलिस के बड़े अधिकारी, जो संविधान की शपथ लेकर सर्विस में आते हैं वो भी बराबर के जिम्मेदार हैं। उनकी साठगांठ की वजह से ये जो राजनैतिज्ञ हैं उन्हें मौका मिलता है अपना पॉलिटिकल एजेंडा सरकारी फोर्स के जरिए लागू करवाने का?
केपीएस गिल : बिलकुल, अब ये है कि कई स्टेट में जो थाना इंचार्ज होते हैं उन्हें MLA सेलेक्ट करते हैं। अगर वहां एमएलए नहीं हैं उस काबिल तो उस थाना में उस पार्टी का जो एक्स एमएलए होगा वो सलेक्‍ट करेगा, जो जीता हुआ नहीं है हारा हुआ कैंडिडेट है वो सेलेक्ट करेगा...तो हर एक चीज में और जो पुलिस ऑफिसर है उनको स्पेशल पोस्टिंग चाहिए वो जाकर उनकी पैरवी करते हैं कि साहब हमें वहां लगा दीजिए...वहां लगा दीजिए और उनके लिए गलत काम के लिए तैयार हो जाते हैं, वो भी उतने ही जिम्मेदार हैं जितनी कि पॉलिटिकल पार्टीज।
वासिंद्र मिश्र : गिल साहब आप ने जब पंजाब पुलिस की कमान संभाली थे तो उस वक्त हम कह सकते हैं कि आतंकवाद चरम पर था और वहां के मुख्यमंत्री और बेअंत सिंह जी और आप दोनों में कहा जाता है कि एक बहुत अच्छी समझ थी, बेहतर सामंजस्य था और आपने उस दौर में भी वहां जो आतंकवाद था और जो नौजवान मुख्‍य धारा से भटक गए थे उस पर काबू पाया और मुख्यधारा में वापस लाए। आखिर वो कौन सी रणनीति थी जो कि वहां पर तो कारगर हो गई लेकिन आप को छत्तीसगढ़ भेजा गया था एडवाइज़र बना के तो वहां कारगर नहीं हो पाई और आप वापस आ गए छत्तीसगढ़ से?
केपीएस गिल : नहीं, पंजाब में जब मैं इलेक्शन के बाद यहां पर डीजी सीआरपीएफ था तो मुझे कहा गया कि जाकर इलेक्शन करवा आओ...वहां मैं पहले 3 साल रह चुका था तो एक तरह से ये दूसरी पोस्टिंग थी। तो ये जो पोस्टिंग थी ये सिर्फ वहां इलेक्शन कराने के लिए थी। 92 में इलेक्शन होना था तो नवंबर 91 में मुझे वहां भेजा गया जब इलेक्शन हो गए और कांग्रेस की सरकार बन गई तो मुझे कहा गया कि आप यहां रहिए। तो मैंने कहा कि मैं वापस जाना चाहता हूं, मुझे जो काम दिया गया था वो हो गया तो उन्होंने कहा कि नहीं आप ठहरिए तो मैने कहा कि ठहरूंगा लेकिन पॉलिटिकल इंटरफेरेंस नहीं होना चाहिए। अगर पॉलिटिकल इंटरफेरेंस हुआ तो मै उसी दिन छोड़ कर चला जाउंगा...तो इस वादे के बाद मैं वहां ठहरा और फिर कोई पॉलिटिकल इंटरफेरेंस नहीं हुई और यंग ऑफिसर्स को इकट्ठा करके हमने पुलिस का फाइटिंग फोर्स बनाया। वही पुलिस थी और 92 में इलेक्शन हुआ और 93 के अक्टूबर-नवंबर में टेररिज्म के ऊपर काबू पा लिया गया। और रही छत्तीसगढ़ की बात देखिए पंजाब में हमारी वीकली मीटिंग होती थी और जो प्रपोजल होता था, हम सामने रखते थे और ये बात सरकार को भी पता होती थी कि डीजी ने जो प्रप्रोजल रखा है वो मनगंढ़त नहीं है। वो इसलिए रखे जा रहे हैं कि देश में इन चीजों की जरूरत है और पंजाब में स्थिति ठीक करने के लिए उन चीजों की जरूरत है। छत्तीसगढ़ में पहली बात उनका सेक्रेटेरियट एक अस्पताल में था...एक एबाउंडेड हॉस्पिटल बिल्डिंग और जो एडमिनिस्‍ट्रेशन है वहां की... खुदा ही बचाएं ऐसे एडमिनिस्‍ट्रेशन से।

वासिंद्र मिश्र : अगर हम सीधे तौर पर पूछें कि क्या ये बात सच है कि उस दौरान ये सुनने को मिला कि वहां के मुख्यमंत्री ने आपको काम करने की आजादी नहीं दी, आप के मन मुताबिक?
केपीएसगिल : शुरू में 15-20 दिन एक महीना तक मुझे ये अंदाजा था कि काम ठीक चल रहा है लेकिन उसके बाद मैंने देखा कि रवैया बदल गया लेकिन फिर भी मैं जो कर सकता था करने की कोशिश की। एक मैं आपको उदाहरण देता हूं मैंने एक प्रप्रोजल दिया कि वहां पर जो कैंप में जो डिसप्‍लेस्‍ड ट्राइबल बैठे हैं जो गांव छोड़कर पुलिस के कैंप में, पुलिस के प्रोटेक्‍शन, एसपी के प्रोटेक्‍शन, होम गार्ड के प्रोटेक्‍शन में बैठे हैं उनके लिए एक सर्किट ऑफिसर लगाया जाए क्योंकि डिस्ट्रिक्‍ट के अफसर हैं उनके पास टाइम नहीं है कि माइन्‍यूट डिटेल देख सकें। जितना देखना चाहिए मैं ये प्रोप्रोजल देकर बैठ गया, उसके बाद जो डीजी था पता नहीं किस तरीके का आदमी था, वो कहता है कि इसकी जरूरत नहीं है वो डिस्ट्रिक्‍ट वाले देखेंगे। मैंने कहा कि देखो इसकी जरूरत है उसके बाद एक कैंप पर अटैक हुआ काफी तदाद में लोग वहां मारे गए तो फिर वही प्रप्रोजल लागू हुआ। जो काम एंटिसिपेशन में करना चाहिए था वो नहीं हुआ क्यों नहीं हुआ, पुराने अंदाज में वो चल रहे हैं और वहां पर मैं कई बार रात को गया। 'आई डिड नॉट सी ए सिंगल पुलिस मैन ऑन ड्यूटी एट नाइट, नॉट वन मैन' (रात में मैंने वहां एक भी पुलिसकर्मी को ड्यूटी पर तैनात नहीं देखा, एक भी नहीं)। मैंने कहा, यहां पर कैसे पुलिस हो सकती है।
वासिंद्र मिश्र : एक बात जो बार-बार कही जाती है जिन राज्यों में नक्सल हावी है नक्सल प्रॉब्‍लम बनी हुई है, वहां के राजनैतिक दल अपनी सुविधा के अनुसार उनके साथ हॉब नॉबिंग करते रहते हैं उनके साथ साठगांठ करते रहते हैं और जब चुनाव नजदीक आते हैं तो उनकी मदद से सत्ता में वापस आने की कोशिश करते हैं। इस तरह के आरोप पश्चिम बंगाल में ममता जी जब विपक्ष की राजनीति करती थीं तब उनपर लगता था। आप के छत्तीसगढ़ में रमन सिंह और उनकी सरकार पर भी ऐसे आरोप लगते रहे हैं इसमें कितनी सच्चाई है। इस बारे में भी आपकी बेबाक राय जानने की भी कोशिश करेंगे।

वासिंद्र मिश्र : गिल साहब हम लोग चर्चा कर रहे थे कि जिन राज्यों में नक्सली हावी है या नक्सली प्रोब्‍लम बनी हुई है, वहां के राजनीतिक दल या सत्तारूढ़ दल है वो अपनी सुविधानुसार जब चुनाव नजदीक आता है तो वो उनकी मदद लेते हैं और शायद इसी वजह से जब उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत होती है या निर्णय लेने की बात आती है तो उसमें टालमटोल करने लगते हैं। उनका इस्तेमाल चुनाव में वोट के लिए करते हैं अपनी पार्टी को जिताने के लिए करते हैं?
केपीएस गिल : ये तो सच है अगर आप नक्‍सलिज्‍म का ऑरिजीन देखें, लेट सिक्‍सटीज, अरली सेवनटीज में तो ये निकला था सीपीएम को डेस्‍ट्राय करने के लिए और जब सीपीएम पॉवर में आई तो इन्होंने काफी स्‍ट्रांग एक्शन लिया और वेस्ट बंगाल से नक्‍सलिज्‍म खत्म कर दिया उसके बाद आंध्र में हुआ। आंध्र में भी उन्होंने बहुत स्‍ट्रांग एक्शन लिया, हमने एक सेमिनार किया था रायपुर में। जहां हमारे एक्स डीजी मिस्टर वोरा आए थे। 'ही ट्रेवल्ड पंजाब मेनी टाइम टू स्‍टडी' कि पंजाब में क्या किया जा रहा है। वो स्‍टडी करके आंध्रा में इम्‍पलीमेंट किया। आंध्रा में एक फोर्स था ग्रे हांट कहते हैं, वो काफी सफल हुआ तो अब जो चीज आंध्रा में सफल हो सकती है, वो चीज पंजाब में सफल हो सकती है। हमारे एक ऑफिसर थे जो मेरे साथ मेरा जूनियर रहा। मेरे से ट्रेनिंग ली वो गए उनसे पहले गए मिस्टर वोरा जो मेरे साथ सीआरपीएफ में काम कर चुके थे। ऑफ्टर दिस जीएम श्रीवास्‍तवा उन्होंने त्रिपुरा में इस चीज को फेस किया, लेकिन हमारी जो स्टेट है... एक तो हम चीफ मिनस्टर को उनको एक पब्लिसिटी बाउंड बहुत बड़ा होता है और उनको ऐसी पब्लिसिटी देकर ऐसी बड़ी चीज बना देते हैं खुद अपने आपको बड़ा दिखाने के लिए...।
वासिंद्र मिश्र : आप ये मानते हैं कि ये जो छत्तीसगढ़ की इस समय की सरकार है या जो नेता हैं रमन सिंह उनका कहीं ना कहीं नक्सलियों के प्रति सॉफ्ट कार्नर है और उसके पीछे वोट की राजनीति है?
केपीएस गिल : अब देखिए एडमिनिस्‍ट्रेशन क्या हो गया है, गवर्नेंस की बात करते हैं। गर्वनेंस से ज्यादा स्टेट पर है सेंटर से नॉट गवर्नेंस सेंटर। स्‍टेट में क्या हो रहा है। 'इट इज सिंगल मेन रुल' यहां रमन सिंह है वहां 'सो एंड सो है'। सिंगल पर्सन रूल और उनका अपना अपना माइंडसेट होता है और इलेक्शन जीतना ही सबका मुख्य मकसद होता है, अब इलेक्शन हार गए तो सब खत्म। जैसे दिग्विज सिंह है, ही वॉज चीफ मिनस्टिर और अब दस सालों से वो...। अब वो कहता है कि अब हम बाहर आ गए कि दस साल पार्टी की सेवा करेंगे, वो इसलिए बाहर आए कि उन्हें पता था कि दस साल जीतेगे नहीं। 'दे डांट विन द इलेक्‍शन देन नथिंग, यू कैन मेक स्‍टेटमेंट यू आर गो ऑन ट्वीटर' ट्वीट कर सकते हैं, लेकिन 'यू रिमेन ऑन आइडेंटिटी दैट इज रियलिटी ऑफ इंडियन पॉलिटिक्‍स'।

वासिंद्र मिश्र : आप चर्चा कर रहे थे पंजाब में आपको फ्री हैंड मिला कि आप वहां पर आतंकवाद को रोक पाए लेकिन आपके ऊपर एक गंभीर आरोप ये लगता रहा है, दुनिया भर की एजेंसी ने ये आरोप लगाया कि आप ने पंजाब में आतंकवाद रोकने के नाम पर अत्‍याचार कराए, निर्दोष लोग मारे गए, नौजवान मारे गए और आप एक तरह से शैडो चीफ मिनिस्टर की तरह काम कर रहे थे और उस समय के जो मुख्यमंत्री थे बेअंत सिंह वो एक तरह से सांस नहीं ले सकते थे आपकी इजाजत के बिना, इसको आप कहां तक उचित मानते हैं, एक पॉलिटिकल सिस्टम में मुख्यमंत्री को एक डीजी पुलिस ओवरशेडो कर दे?
केपीएस गिल : देखिए, पहले तो आपका सवाल है अत्याचार का, और दूसरा एमनेस्टी इंटरनेशनल का, जब आतंकवाद खत्म हुआ तो उसके बाद मुझे चिठ्ठियां आनी शुरू हो गई। ज्यादातर पोस्टकार्ड्स जो अलग-अलग लोगों ने लिखे थे उनपर एक ही तरह का मैसेज था, चिट्ठियां भेजने वाले ज्यादातर सिख थे। मैं एक बार एंटी हाईजैकिंग के लिए आयोजित एक अवॉर्ड फंक्शन के सिलसिले में स्पेन गया था, वहां हाईकमिश्नर ने मुझे बतौर गेस्ट लंदन आने का न्यौता दिया। लंदन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान एक ब्रिटिश जर्नलिस्ट ने मुझसे पंजाब में आतंकवाद से जुड़े सवाल पूछने शुरू किए, मैं उसे जवाब दे रहा था तभी उसके साथ आए शख्स ने मुझसे कहा कि वो कहीं गया था जहां कोई मुझ पर आरोप लगा रहा था कि मैंने उसके भांजे को मारा है। मैंने कहा ये गलत है और ये गलत धारणा बनाई जा रही है। मेरे भारत लौटने के एक महीने बाद उस ब्रिटिश जर्नलिस्ट ने मुझे कॉल करके माफी मांगी और कहा कि उसे मेरे खिलाफ बहकाया गया था। वो ब्रिटिश जर्नलिस्ट था उसने माफी मांग ली, क्या कोई भारतीय पत्रकार ऐसा करेगा, कोई भी प्रिंट का पत्रकार ऐसा नहीं करेगा। मैं एक बंदे को जानता हूं जो आज एडिटर है, जब वो यंग था उसके फॉल्स प्रोपेगैंडा की वजह से कई लोग जेल चले गए। इसी तरह का माहौल उस वक्त बनाया गया था। आप दुनिया भर में चलाए गए किसी भी एंटी टेरर ऑपरेशन से तुलना कीजिए, पंजाब में चलाए गए एंटी टेरर ऑपरेशन में जितना ह्युमन एंगल देखा गया उसका उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं है।

वासिंद्र मिश्र : इस पर काफी लंबी बातचीत कर सकते हैं, इससे जुड़ा हुआ एक सवाल है जहां भी आतंकवाद का नाम आता है दुनिया में। अपने आप उसके साथ पाकिस्तान का नाम जुड़ जाता है जब आप पंजाब की कमान संभाल रहे थे आपके कम्‍पेटेटरी कई अधिकारी थे। उत्तर प्रदेश और बिहार में भी थोड़ा बहुत पंजाब के बाद आतंकवाद सबसे ज्यादा कहीं था, उत्तर प्रदेश के तराई एरिया में आपको याद होगा और प्रकाश सिंह उस समय डीजी पुलिस हुआ करते थे तब भी पाकिस्तान का नाम आता था आज भी कहीं पाकिस्तान में जो घटनाएं हुई हैं दो-तीन दिन के अंदर केन्या में...। हर जगह पाकिस्तान का कहीं ना कहीं नाम आ रहा है। आपकी नजर में इसका क्या सोल्‍यूशन है, अक्सर बीजेपी के लोग कहते हैं कि पाकिस्तान पर हमला बोल देना चाहिए वहां पर जो आतंकी कैंप है उसको तबाह करना चाहिए आपकी नजर में सोल्‍यूशन क्या है?
केपीएस गिल : पाकिस्तान को इसकी सजा खुद मिल रही है, उनका माइनॉरिटी ग्रुप है क्रिश्चन और अभी पेशावर में सुसाइड बॉम्बिंग हुई, 70 लोगों की मौत हुई। हिंदू जितने थे, भाग ही आए हैं। वहां सब पीड़ित हैं...। अब शियाओं के भी आतंकी संगठन हैं तो इसमें पाकिस्तान का हाथ आज से नहीं... जो आपने कहा तब से है। हमने एक डाक्‍यूमेंट में तय किया था। साल 2001 और 2002 के बीच मैं कभी अमेरिका गया हुआ था। मैंने एक डॉक्यूमेंट तैयार किया था कि हर बड़े हमले का कनेक्शन जो है वो पाकिस्तान से है। जहां भी ले लीजिए। अब ये जो खबरें आ रही हैं कि अल शबाब ने केन्या में जो किया, इसका जो ट्रेनर है वो पाकिस्तानी है तो ये जो पाकिस्‍तान है, इसको अपने जो ओसामा बिन लादेन जिसको दिग्विजय साहब कहते हैं ओसामा साहब, तो मैं भी ओसामा साहब ही कहूंगा क्योंकि अपने लीडर को फॉलो करना चाहिए।
वासिंद्र मिश्र : तो आप डरने लगे नेताओं से?
केपीएस गिल : नेताओं से बहुत डरता हूं मैं।
वासिंद्र मिश्र : यानी आप जब सर्विस में थे तब नहीं डरते थे?
केपीएस गिल : ओसामा साहब जो थे उसने इसको कहा कि इस्लाम का किला है पाकिस्तान, ठीक है इस्लाम का किला है तो वो अपनी ड्यूटी समझते हैं।
वासिंद्र मिश्र : पूरी दूनिया में दहशतगर्दी फैलाना पाकिस्तान ने अपनी ड्यूटी समझ लिया है?
केपीएस गिल : उसी सोच के जो लोग हैं, वो काम कंपलीट करना चाहते हैं क्योंकि क्रिस्चियनिटी औऱ इस्लाम एक ही तरह के धर्म हैं जो अपना प्रभुत्व चाहते हैं...।
वासिंद्र मिश्र : तो इसके पीछे मकसद वही है इंपीरियलिज्म, पूरी दुनिया पर कब्जा करना?
केपीएसगिल : जी, बात यही है।
वासिंद्र मिश्र : बहुत-बहुत धन्यवाद, गिल साब आपका हमारे चैनल से बात करने के लिए।

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