`ग्लूकोमा` अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण

किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के नेत्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. राजीव नाथ का कहना है कि भारत में ग्लूकोमा (काला मोतिया) मोतियाबिंद के बाद अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण है।

लखनऊ : किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के नेत्र विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ. राजीव नाथ का कहना है कि भारत में ग्लूकोमा (काला मोतिया) मोतियाबिंद के बाद अंधेपन का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। इस रोग के कारण एक बार गई आंखों की रोशनी को किसी भी प्रकार के इलाज से वापस नहीं लाई जा सकती। आंखों की बची रोशनी को केवल स्थिर किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि एक बार इस रोग के हो जाने पर उच्च रक्तचाप की तरह इस रोग की दवाइयां आजीवन चलती हैं। इन सभी खतरों को देखते हुए इस रोग के प्रति विशेष रूप से सचेत रहने की आवश्यकता है।
डॉ. नाथ ने कहा कि `ग्लूकोमा` के कारण आंखों के अंदर दबाव बढ़ता है, जिससे आंखों की ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है। दृष्टि निरंतर कम होती जाती है और यदि उपचार नहीं किया जाता है तो `ग्लूकोमा` से अंधापन हो सकता है। `ग्लूकोमा` से ग्रसित अधिकांश लोगों को आंखों में किसी प्रकार का दर्द नहीं होता।
विश्व ग्लूकोमा सप्ताह के अवसर पर गत रविवार को गोमतीनगर के लोहिया पार्क में जागरूकता वॉक का आयोजन किया गया, जिसमें शहर के डॉक्टरों, बुजुर्गो और बच्चों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इस वॉक का मुख्य उद्देश्य ग्लूकोमा (काला मोतिया) के प्रति समाज में व्याप्त भ्रांतियों एवं डर को दूर करना तथा इस रोग के कारण पूरी तरह अन्धेपन की भयावह स्थिति के प्रति आगाह करना था। साथ ही लोगों को `ग्लूकोमा` के लिए उपलब्ध अत्याधुनिक जांचों और उपचार के संबंध में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराना था।
डा. नाथ ने यह भी बताया कि जरूरी नहीं है कि व्यक्ति में किसी प्रकार का कोई भी लक्षण हो, निगाह में आखिरी वक्त तक सामने रोशनी बनी रहती है, जबकि किनारे से रोशनी कम हो जाती है। अत: मरीज को रोशनी के जाने का पता ही नहीं चलता।
उन्होंने कहा कि इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि 35 वर्ष से अधिक आयु के लोगों, ग्लूकोमा के पारिवारिक इतिहास या डायबिटीज एवं अधिक ब्लडप्रेशर से ग्रसित लोग इस रोग के प्रति विशेष रूप से सावधानी बरतें। वर्ष में एक बार आंखों की जांच आधुनिकतम विधियों जैसे रिबाउंड टोनोमीटर तथा गैंगलियॉन सेल लेयर एनालिसिस द्वारा अवश्य कराएं।
उन्होंने कहा कि ये सभी जांचें बहुत ही कम समय में तथा सुगमता से की जाती हैं और इनमें व्यक्ति को किसी प्रकार की कोई परेशानी भी नहीं होती है। उन्होंने बताया कि इन आरंभिक जांचों के बाद रोग की पूरी जानकारी के लिए तथा किसी प्रकार की दवा शुरू करने से पूर्व डब्ल्यू डीपी टेस्ट, स्टीरियो फोटोग्राफी, पेरीमीटरी तथा ओसीटी आदि जांच आवश्यक होती है। (एजेंसी)

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