देश में न्याय देने की गति संतोषजनक नहीं : सुप्रीम कोर्ट

देश में न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली की धीमी गति पर चिंता जताते हुए उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि यह लोकतंत्र एवं अच्छे प्रशासन के लिए शुभ लक्षण नहीं है। न्यायालय ने केंद्र को यह निर्देश भी दिया कि वह चार हफ्ते के भीतर ऐसी नीति तैयार करे जिससे आपराधिक मामलों में सुनवाई की रफ्तार तेज की जा सके।

नई दिल्ली : देश में न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली की धीमी गति पर चिंता जताते हुए उच्चतम न्यायालय ने आज कहा कि यह लोकतंत्र एवं अच्छे प्रशासन के लिए शुभ लक्षण नहीं है। न्यायालय ने केंद्र को यह निर्देश भी दिया कि वह चार हफ्ते के भीतर ऐसी नीति तैयार करे जिससे आपराधिक मामलों में सुनवाई की रफ्तार तेज की जा सके।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.एम. लोढ़ा की अध्यक्षता वाली एक पीठ ने कहा कि किसी एक श्रेणी के मामलों के त्वरित निपटारे से समस्या का समाधान नहीं होगा बल्कि पूरी व्यवस्था दुरूस्त करनी होगी। न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा, ‘मुझे कहते हुए दुख हो रहा है पर अपराधिक न्याय प्रणाली उस गति से आगे नहीं बढ़ रही जिस गति से मैं उसे बढ़ते देखना पसंद करूंगा। हमें और अदालतों और सुधरी हुई आधारभूत संरचना की जरूरत है।’

उन्होंने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा, ‘किसी एक श्रेणी के मुकदमों की सुनवाई में तेजी लाने से हालात सुधरने वाले नहीं हैं। इससे मामले प्रभावित होंगे। इंसाफ में रफ्तार की दरकार हर मामले में है, न कि सिर्फ एक श्रेणी के मामलों में। सरकार से कहिए कि वह राज्यों के मुख्य सचिवों और विधि सचिवों की एक बैठक बुलाए ताकि न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली में गति लाने के लिए नीति तैयार की जा सके ।’

मुख्य न्यायाधीश का यह बयान इसलिए अहम है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों गृह मंत्री और कानून मंत्री से कहा था कि वे दागी सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के एक साल के भीतर निपटारे के लिए एक खाका तैयार करे। पीठ भारतीय जेलों में बंद पाकिस्तानी कैदियों के मुद्दे पर भीम सिंह की ओर से दायर जनहित याचिका की सुनवाई कर रही थी।

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