दिल्ली में दुर्लभ किताबों का पता- हजरत शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी
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दिल्ली में दुर्लभ किताबों का पता- हजरत शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी

यह पुस्तकालय पहाड़ी इमली लेन में स्थित है. यह जामा मस्जिद की ओर जाने वाली प्रसिद्ध मटिया महल सड़क के बांई तरफ स्थित है.

(प्रतीकात्मक फोटो)

नई दिल्ली:  यह 1987 की गर्मियों की एक रात थी जब उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा के बाद पुरानी दिल्ली में कर्फ्यू लगा दिया गया था और रात में युवाओं का एक समूह सब्जी, दूध और अन्य आवश्यक चीजों की खरीददारी के लिए बाहर निकला था. दरअसल हजरत शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी की स्थापना की कहानी इसी रात से जुड़ी हुई है.

इस पुस्तकालय में साहित्य जगत की कई दु्र्लभ किताबें हैं जिनमें से तर्कशास्त्र पर 600 साल पुरानी एक अरबी किताब है, उर्दू भाषा में गीता की एक प्रति है, फारसी भाषा में रामायण की प्रति और 1855 में छपी बहादुर शाह जफर की पूरी कृति यहां आपको मिल जाएगी.

यह पुस्तकालय पहाड़ी इमली लेन में स्थित है. यह जामा मस्जिद की ओर जाने वाली प्रसिद्ध मटिया महल सड़क के बांई तरफ स्थित है.

'उस रात ने जिंदगी बदल दी' 
अपने 10 दोस्तों के साथ दिल्ली यूथ वेलफेयर एसोसिएशन (डीवाईडब्ल्यूए) की स्थापना करनेवाले मोहम्मद नईम ने कहा कि उस रात ने उनकी जिंदगी बदल दी. उन्होंने कहा, ‘1987 में कर्फ्यू के तीन-चार दिन बाद खाना नहीं था, दूध नहीं था. हम जरूरी सामग्री लाने के लिए घर से निकले थे. यह एक बदलाव वाला क्षण था जब हमारे मन में आया कि हमें वाकई लोगों के लिए कुछ गंभीरता से करने की जरूरत है.’

पहाड़ी इमली का वह कमरा जो कुंआरे लड़कों से भरा रहता था और वहां कैरम बोर्ड, ताश सहित कई अन्य खेल खेले जाते थे, अब पुस्तकालय में बदल गया और आस-पास के लोग किताबें पढ़ने के लिए जमा होने लगे.

पुस्तकालय में 20,000 से ज्यादा किताबें 
डीवाईडब्ल्यूए के अध्यक्ष नईम ने बताया कि कैसे जनता के पैसों पर चलने वाला यह पुस्तकालय 18वीं शताब्दी के विद्वान के नाम पर रखा गया है. उन्होंने बताया कि 1990 में 11 लड़कों ने डीवाईडब्ल्यूए की स्थापना की और विधवाओं को 100 रुपये की सहायता देना शुरू किया. इसके बाद क्षेत्र में गरीबी और निम्न शिक्षा दर को देखते हुए इस समूह ने पुस्तकालय की स्थापना की.

डीवाईडब्ल्यूए के सदस्यों के प्रबंधन वाले इस पुस्तकालय में 20,000 से ज्यादा किताबें उर्दू, अरबी, अंग्रेजी, हिंदी और फारसी में है, इनमें से 2,500 दुर्लभ किताबें हैं.

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