पुस्तक समीक्षाः केंद्र की योजना का सूचनात्मक विश्लेषण है "विकास के पथ पर भारत"
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पुस्तक समीक्षाः केंद्र की योजना का सूचनात्मक विश्लेषण है "विकास के पथ पर भारत"

चुनाव के समय केन्द्र सरकार की योजनाओं का समिक्षात्मक वर्णन करती इस पुस्तक की खास बात यह है कि यह योजनाओं की घोषणा और उनमें बदलाओं को रेखांकित करते हुए समाज पर पड़ने वाले व्यापक असर को रेखांकित करती है. 

 पुस्तक समीक्षाः केंद्र की योजना का सूचनात्मक विश्लेषण है "विकास के पथ पर भारत"

लोकसभा चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामों पर आधारित किताब 'विकास के पथ पर भारत' पर लॉन्च हुई है. चुनाव के समय केन्द्र सरकार की योजनाओं का समिक्षात्मक वर्णन करती इस पुस्तक की खास बात यह है कि यह योजनाओं की घोषणा और उनमें बदलाओं को रेखांकित करते हुए समाज पर पड़ने वाले व्यापक असर को रेखांकित करती है. 

वर्तमान सरकार की 150 से अधिक योजनाओं में से 34 ऐसी योजनाओं की पड़ताल पुस्तक में करने की कोशिश की गयी है जो समाज को पिछले कुछ वर्षों में व्यापक रूप से प्रभावित किया है. माखनलाल चतुर्वेदी राष्‍ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्‍वविद्यालय के सहायक प्राध्यापक डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक "विकास के पथ पर भारत" उन तथ्यों व जानकारी को जन सामान्य के लिए उपलब्ध कराती नजर आती है जिसके अभाव में आम जन योजनाओं का लाभ लेने से वंचित रह जाते हैं. पुस्तक के कवर पेज पर संसद भवन के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीर इस बात की पैरवी करती नजर आती है कि वर्तमान सरकार की योजनाओं की सफलता की नींव कहां टिकी हुयी है. पहली नजर में पुस्तक का कवर पेज सरकारी योजनाओं के जरिये मोदी सरकार की प्रशंसा लग सकती है लेकिन पुस्तक को जब आप सिलसिलेवार पढ़ते हैं तो यह शंका भी दूर होती जाती है.  

पुस्तक की प्रस्तावना में सौरभ मालवीय लिखते हैं कि 'देश के लोगों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक विकास के लिए सरकार अनेक योजनाएं चला रही हैं. हर योजना का उद्देश्य होता है कि उसका लाभ हर व्यक्ति तक पहुंचे. जब योजना का लाभ व्यक्ति तक पहुंचता है, वह योजना सफल होती है. इस समय देश में लगभग डेढ़ सौ योजनाएं चल रही हैं. इनमें अधिकतर पुरानी योजनाएं हैं. इनमें कई ऐसी पुरानी योजनाएं भी हैं, जिनके नाम बदल दिए गए हैं. इनमें कई ऐसी योजनाएं भी हैं, जो लगभग बंद हो चुकी थीं और उन्हें दोबारा शुरू किया गया है. इनमें कुछ नई योजनाएं भी सम्मिलित हैं. देश में दो प्रकार की सरकारी योजनाएं चल रही हैं. पहली योजनाएं वे हैं, जो केंद्र सरकार द्वारा चलाई जाती हैं. इस तरह की योजनाएं पूरे देश या देश के कुछ विशेष राज्यों में चलाई जाती हैं. दूसरी योजनाएं वे हैं, जो राज्य सरकारें चलाती हैं. इस पुस्तक के माध्यम से सरकारी की कुछ महत्वपूर्ण योजनाओं पर प्रकाश डालते हुए उन्हें पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास किया गया है. अकसर ऐसा होता है कि अज्ञानता और अशिक्षा के कारण लोगों को सरकार की जन हितैषी योजनाओं की जानकारी नहीं होती, जिसके कारण वे इन योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं. इस पुस्तक का उद्देश्य यही है कि लोग उन सभी योजनाओं का लाभ उठाएं, जो सरकार उनके कल्याण के लिए चला रही है. इन योजनाओं की जानकारी संबंधित मंत्रालयों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है. उल्लेखनीय है कि समय-समय पर योजनाओं में आंशिक रूप से परिवर्तन भी होता रहता है.

वरिष्ठ पत्रकार शिशिर सिन्हा ने पुस्तक की भूमिका लिखी है. सिन्हा पुस्तक की भूमिका में लिखते हुए बताते हैं कि विकास के आंकड़ों में आम आदमी हमेशा ही एक सवाल का जवाब ढ़ूंढता है. सवाल ये है कि इन आंकड़ों का 'मेरे' लिए क्या मतलब है ? सवाल तब और भी अहम बन जाता है कि एक ही दिन अखबार की दो सुर्खियां अलग-अलग कहानी कहती हैं. पहली सुर्खी है, 'भारत दुनिया में सबसे तेजी से विकास करने वाला देश बना' या फिर 'भारत अगले दो वर्षों तक सबसे तेजी से विकास करने वाला बना रहेगा देश,' वहीं दूसरी सुर्खी है 'अरबपतियों की संपत्ति रोजाना औसतन 2200 करोड़ रुपए बढ़ी, भारी गरीबी में जी रही 10 फीसदी आबादी लगातार 14 सालों से कर्ज में है डूबी.' ऐसे में ये सवाल और भी अहम बन जाता है कि 7.3, 7.5 या 7.7 फीसदी की सालाना विकास दर के मायने आबादी के एक बहुत ही छोटे हिस्से तक सीमित है, या फिर इनका फायदा समाज में आखिरी पायदान के व्यक्ति को भी मिल पा रहा है या नहीं ?

ऐसे ही सवालों का जवाब जानने के लिए ये जरुरी हो जाता है कि विकास को सुर्खी से आगे जन-जन तक पहुंचाने के लिए आखिरकार सरकार ने किया क्या, या फिर जो किया वो पहले से किस तरह से अलग था ?.... इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश यह किताब करती है.

उन्होंने आगे लिखा है कि सच तो यही है कि किसी भी सरकारी योजना की सार्थकता इस बात पर निर्भर करती है कि कितनी जल्दी वो सरकारी सोच से आम आदमी की सोच में अपनी जगह बना पाती है. साथ ही जरुरी ये भी है कि सरकारी योजनाओं को महज पैसा बांटने का एक माध्यम नहीं माना जाए, बल्कि ये देखना भी जरुरी होगा कि वो किस तरह व्यक्ति से लेकर समाज, राज्य और फिर देश की बेहतरी मे योगदान कर सके. ये भी बेहतर होगा कि मुफ्त में कुछ भी बांटने का सिलसिला बंद होना चाहिए. क्या ऐसा सब कुछ पिछले साढ़े चार साल के दौरान शुरु की गयी योजनाओं में देखने को मिला है, इसका जवाब काफी हद तक हां में होगा. एक और बात. राज्यों के बीच भी नए प्रयोगों के साथ योजनाएं शुरु करने की प्रतिस्पर्धा चल रही है और सुखद निष्कर्ष ये है कि चाहे वो किसी भी राजनीतिक दल की सरकार ने शुरु की हो, उसकी उपयोगिता को दूसरी राजनीतिक दलों की सरकारों ने पहचाना. तेलंगाना की रायतु बंधु योजना और ओड़िशा की कालिया योजना को ही ले लीजिए. किसानों की जिंदगी बदलने की इन योजनाओं का केंद्र सरकार अध्ययन कर रही है, ताकि राष्ट्रीय स्तर की योजना में इन योजनाओं की कुछ खास बातों को शामिल किया जा सके.

विभिन्न सरकारी योजनाओं को शुरू करने का लक्ष्य यही है कि विकास का फायदा हर किसी को मिले यानी विकास समावेशी हो. कुछ ऐसे ही पैमानों के आधार पर यहां उल्लेखित 36 योजनाओं का आंकलन किया जाना चाहिए. फिर ये सवाल उठाया जा सकता है कि क्या ये योजनाएं कामयाब हैं ? अगर सरकार कहे कामयाब तो असमानता को लेकर जारी नई रिपोर्ट को सामने रख चर्चा करने से नहीं हिचकना चाहिए. एक बात तो तय है कोई कितना भी धर्म-जाति-संप्रदाय को आधार बनाकर राजनीति कर ले लेकिन मतदाता ईवीएम पर बटन दबाने के पहले एक बार जरुर सोचता है कि अमुक उम्मीदवार ने विकास के लिए क्या कुछ किया है, या फिर क्या वो आगे विकास के बारे में कुछ ठोस कर सकेगा. मत भूलिए सरकारी योजनाएं आपके ही पैसे से चलती हैं और इन योजनाओं की सार्थकता पर अपना पक्ष रखने के लिए हर पांच साल में आपको एक मौका तो मिलता ही है. ऐसी सोच विकसित करने के लिए जरुरी है कि आपके समक्ष सरकारी योजनाओं का ब्यौरा सरल और सहज तरीके से पेश किया जाए. पुस्तक 'विकास के पथ पर भारत' इस काम में मदद करेगी.

 
पुस्तकः विकास के पथ पर भारत

लेखकः डॉ सौरभ मालवीय

प्रकाशकः यश पब्लिकेशंस

मूल्यः 395 रुपए

पृष्ठ संख्याः 159

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