कैराना: बिजनेसवुमन भी हैं मृगांका सिंह, पिता ने लड़ी थी पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई
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कैराना: बिजनेसवुमन भी हैं मृगांका सिंह, पिता ने लड़ी थी पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई

कैराना लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए भाजपा की मृगांका सिंह की साख दाव पर है. मृगांका सिंह दिवंगत हुकुम सिंह की बेटी हैं.

फाइल फोटो

नई दिल्ली: कैराना लोकसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए भाजपा की मृगांका सिंह की साख दाव पर है. मृगांका सिंह दिवंगत हुकुम सिंह की बेटी हैं. हुकुम सिंह की मौत के चलते ही ये सीट खाली हुई तो मृगांका सिंह को यहां से उतारा गया. उनका सीधा मुकाबला राष्ट्रीय लोकदल की पूर्व सांसद तबस्सुम हसन से है. 1962 में सीट के गठन से बाद से ही कैराना चौधरी चरण सिंह और उसके राष्ट्रीय लोकदल का बड़ा गढ़ रहा है. वहीं, हुकुम सिंह भी क्षेत्र में बड़े नेता रहे हैं. अब उनकी मौत के बाद मृगांका सिंह के लिए ये चुनाव बड़ी चुनौती है. मृगांका सिंह अपने जुझारूपन और देहरादून पब्लिक स्कूल की चेन के लिए गाजियाबाद से मुजफ्फरनगर तक पहचान रखती हैं.

  1. कैराना लोकसभा सीट से भाजपा की प्रत्याशी हैं मृगांका सिंह
  2. मृगांका सिंह पूर्व सांसद और दिवंगत हुकुम सिंह की बेटी हैं
  3. मृगांका सिंह सिर्फ नेता नहीं हैं वह एक बिजनेसवुमन भी हैं

बिजनेसवुमन हैं मृगांका सिंह
मृगांका सिंह का जन्म मेरठ में हुआ. वह हुकुम सिंह की सबसे बड़ी बेटी हैं. उनकी पहचान एक बिजनेसवुमन, समाजसेविका और शित्राविद की है. सक्रिय राजनीति में वो 2014 के बाद आईं. 2014 में हुकुम सिंह कैराना लोकसभा से सांसद हुए तो उन्होंने कैराना विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. तब उपचुनाव में मृगांका सिंह का नाम सामने आया और माना गया कि अपनी सीट पर हुकुम सिंह बेटी को चुनाव लड़ाएंगे. हालांकि, तब टिकट मृगांका सिंह को नहीं बल्कि हुकुम सिंह के भतीजे अनिल सिंह को मिला. लेकिन, वो सपा उम्मीदवार से चुनाव हार गए. इसके बाद 2017 में मृगांका सिंह को भाजपा से टिकट मिला और वो पहली चुनाव लड़ीं. हालांकि, भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मजबूत लहर के बावजूद वो सपा के नाहिद हसन के इलेक्शन हार गईं.

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मृगांका पर विरासत संभालने की जिम्मेदारी
59 साल की मृगांका सिंह लगातार कहती रही हैं कि वह राजनीति के मामले में कोई अनाड़ी नहीं हैं. उन्होंने सात बार विधायक रहे अपने पिता के साथ काफी काम किया है. मृगांका सिंह की चार और बहने हैं लेकिन हुकुम सिंह की राजनीतिक विरासत उनको मिली है. बहनों में सबसे बड़ी मृगांका सिंह को हुकुम सिंह ने खुद 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ाया था. अब मृगांका सिंह के पास पिता की विरासत को संभालने की जिम्मेदारी है. ये चुनाव ही तय करेगा कि उनकी राजनीतिक भविष्य क्या होगा. हुकुम सिंह को कैराना और आसपास के क्षेत्र में लोग बाबूजी के नाम से जानते थे. वहीं, मृगांका को युवा कार्यकर्ता बुआ जी कहकर बुलाते हैं.

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ससुर के साथ संभाला कारोबार
मृगांका एक बड़े नेता की बेटी हैं, लेकिन उनकी जिंदगी में कई मुश्किलें आईं. अपनी काबिलियत से एक अलग पहचान बनाई. आर्ट्स में एमए और बीएड की पढ़ाई करने वाली मृगांका की शादी 1983 में गाजियाबाद के कारोबारी सुनील सिंह से हुई. कुछ समय बाद ही उन्होंने अपने ससुर का बिजनेस संभालना शुरू किया. हालांकि, इस दौरान उनके ससुराल के कुछ लोग इससे खफा थे. लेकिन, मृगांका आगे बढ़ती गईं. उन्होंने 200 बच्चों के स्कूल को नई ऊंचाई दी. लेकिन, फिर उनकी जिंदगी में एक बड़ा हादसा हुआ. 1999 में उनके पति की एक कार दुर्घटना में मौत हो गई. 

तीन बेटियां, 1 बेटे की मां हैं मृगांका
मृगांका के पति की मौत के बाद उनके बच्चों की जिम्मेदारी उन पर आ गई. उनकी तीन बेटिंया और एक बेटा है. उनकी सबसे बड़ी बेटी वकील है, दूसरी बेटी इंजीनियर और तीसरी डॉक्टर. उनका बेटा वकालत की पढ़ाई कर रहा है. पति की मौत के बाद न उन्होंने सिर्फ खुद को संभाला बल्कि अपने बच्चों और परिवार को भी संभाला. 

खड़ा किया बड़ा कारोबार
अपने ससुर के एक स्कूल को चलाने की शुरुआत करने वाली मृगांका ने अपने बलबूते पर स्कूल चेन शुरू की. 1987 में अपने ससुर से महज एक छोटा सा स्कूल उन्हें मिला. लेकिन, आज इस स्कूल की बड़ी चेन है. देहरादून पब्लिक स्कूल के नाम से मशहूर इस स्कूल की गाजियाबाद में चार और मुजफ्फरनगर में एक स्कूल है. इन स्कूलों में करीब 9000 बच्चे पड़ते हैं. 700 से ज्यादा एम्प्लॉई हैं. 

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पिता ने लड़ी थी पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई
मृगांका सिंह की पहचान भले ही राजनेता हुकुम सिंह की बेटी के तौर पर है. लेकिन, कम लोग जानते हैं कि उनके पिता हुकुम सिंह पहले इंडियन आर्मी में थे. विकिपीडिया के मुताबिक, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से लॉ करने के बाद उन्होंने 1963 में PCS (J) का एग्जाम किया. लेकिन, जुडिशियल ऑफिसर बनने के बजाए उन्होंने, कमीशन्ड ऑफिसर के तौर पर इंडियन आर्मी ज्वाइन की. उन्होंने 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ कश्मीर के पूंछ और राजोरी में बतौर कैप्टेन अहम भूमिका निभाई. हालांकि, इसके बाद उन्हें वॉलंटरी रिटायरमेंट ले लिया और मुजफ्फरनगर में लॉ की प्रैक्टिस करने लगे. 1974 में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और पहले कांग्रेस के MLA बने.

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