Lok Sabha Chunav: अंतिम आंकड़ों में देरी क्यों? हर बूथ के डेटा पर चुनाव आयोग ने समझाई 'भ्रम' वाली बात
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Lok Sabha Chunav: अंतिम आंकड़ों में देरी क्यों? हर बूथ के डेटा पर चुनाव आयोग ने समझाई 'भ्रम' वाली बात

Delay in Voter Turnout Data: विपक्षी दल वोटिंग के फाइनल आंकड़ों में हो रही देरी पर सवाल उठा रहे हैं. कांग्रेस ने कहा कि 11-12 दिन बाद अंतिम आंकड़े क्यों जारी हो रहे हैं. एक एनजीओ बूथवाइज आंकड़े जारी करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. अब आयोग ने जवाब दिया है. 

Lok Sabha Chunav: अंतिम आंकड़ों में देरी क्यों? हर बूथ के डेटा पर चुनाव आयोग ने समझाई 'भ्रम' वाली बात

Lok Sabha Election Turnout: ऐसे समय में जब वोटिंग के रियल टाइम आंकड़ों और अंतिम आंकड़ों में अंतर पर सवाल उठ रहे हैं, चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण बात कही है. दरअसल, कोर्ट में याचिका दाखिल कर लोकसभा के हर चरण की वोटिंग के बाद 48 घंटे के अंदर वेबसाइट पर पोलिंग स्टेशन के आधार पर आंकड़े अपलोड करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था. आयोग ने एक हलफनामे में कहा कि ऐसा नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है. 

लोकसभा चुनाव में अभी दो चरणों की वोटिंग बाकी है. इधर चुनाव आयोग के आंकड़ों पर सवाल उठ रहे हैं. कांग्रेस ने मतदान के रियल टाइम आंकड़ों और निर्वाचन आयोग की तरफ से जारी अंतिम आंकड़ों के बीच कथित बड़े अंतर को लेकर सवाल उठाया है. कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने दावा किया कि यह अंतर करीब 1.7 करोड़ मतों का है. इस संदेह को निर्वाचन आयोग को दूर करना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि वोटिंग के अंतिम आंकड़े जारी करने में 10-11 दिन क्यों लग जा रहे हैं? 

निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि पोलिंग स्टेशन के हिसाब से मतदान प्रतिशत डेटा देने और वेबसाइट पर पोस्ट करने से भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है. चुनाव आयोग ने कहा कि मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों की संख्या बताने वाले फॉर्म 17C का विवरण सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, इससे पूरे चुनावी तंत्र में अराजकता फैल सकती है क्योंकि तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ की संभावना बढ़ जाती है. आयोग ने एक गैर सरकारी संगठन की याचिका के जवाब में यह बात कही. 

5 प्वाइंट्स में समझिए चुनाव आयोग ने क्या कहा

1. हर मतदान केंद्र पर डाले गए वोटों के रिकॉर्ड यानी फॉर्म 17सी के आधार पर आंकड़े जारी होने से वोटरों में भ्रम पैदा होगा क्योंकि इसमें डाक मतपत्र भी शामिल होंगे.

2. ऐसा कोई कानूनी अधिकार नहीं है जिसके आधार पर सभी मतदान केंद्रों पर वोटिंग के अंतिम प्रमाणित आंकड़ों को प्रकाशित करने की मांग की जाए. 

3. वेबसाइट पर फॉर्म 17C को अपलोड करने से शरारत हो सकती है और तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ होने की संभावना है, जिससे अविश्वास पैदा हो सकता है. 

4. किसी चुनाव में जीत का अंतर बहुत कम हो सकता है. ऐसे मामलों में सार्वजनिक डोमेन में फॉर्म 17सी के खुलासे से मतदाताओं के मन में मतदान किए गए कुल मतों के संबंध में भ्रम पैदा हो सकता है क्योंकि बाद के आंकड़े में फॉर्म 17सी के अनुसार वोटों की संख्या के साथ-साथ डाक मतपत्रों के माध्यम से प्राप्त मत भी शामिल होंगे. 

5. इस तरह के अंतर को मतदाताओं द्वारा आसानी से नहीं समझा जा सकता और कुछ लोगों को पूरे चुनावी प्रक्रिया पर आरोप लगाने का मौका मिल जाएगा. इससे चुनावी मशीनरी में उथल-पुथल की स्थिति पैदा हो सकती है. 

हलफनामे में आगे कहा गया है कि नियमों के अनुसार, फॉर्म 17 सी केवल मतदान एजेंट को दिया जाना चाहिए और नियम किसी दूसरे को फॉर्म 17 सी देने की अनुमति नहीं देते हैं. ECI ने शीर्ष अदालत को बताया कि नियमों के तहत फॉर्म 17सी का जनता के सामने खुलासा करने का नियम नहीं है. दरअसल, एनजीओ ADR ने चुनाव के पहले दो चरणों में अंतिम आंकड़ों के प्रकाशन में हुई देरी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. कहा गया कि शुरुआती आंकड़ों और अंतिम आंकड़ों में काफी अंतर देखा गया है. 

यह हो क्या रहा है...

कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘कुल मिलाकर 1.07 करोड़ के इस अंतर के हिसाब से प्रत्येक लोकसभा सीट पर 28,000 मत बढ़ जाते हैं जो कि बहुत बड़ा नंबर है. यह अंतर उन राज्यों में सबसे ज़्यादा है जहां भाजपा को अच्छी-खासी सीट के नुकसान होने की गुंजाइश है. आखिर यह हो क्या रहा है?’ कई विपक्षी दलों ने अंतिम मतदान प्रतिशत जारी करने में देरी पर सवाल उठाए हैं. लोकसभा चुनाव सात चरणों में हो रहे हैं और नतीजे 4 जून को घोषित किए जाएंगे.

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने भी चुनाव आयोग को घेरा है. उन्होंने कहा कि पारदर्शिता के अभाव में कई बार सही प्रक्रिया भी गलत दिखाई देने लगती है. निर्वाचन आयोग को सभी भ्रम और शंका दूर करने के लिए सामने आना चाहिए और स्पष्ट बताना चाहिए कि आखिर वोटों के आंकड़ों में इतना बड़ा अंतर कैसे आया और इसकी क्या वजह है?

देरी के आरोप पर चुनाव आयोग ने साफ बताया

चुनाव आयोग ने मतदान के आंकड़े जारी करने में देरी के आरोपों को साफ तौर पर खारिज किया है. चुनाव आयोग का कहना है कि वोटर टर्नआउट एप कोई भी फोन में डाउनलोड कर सकता है जिस पर लगातार आंकड़े अपडेट होते रहते हैं. मतदान कर्मियों के लौटने के बाद आंकड़े अपडेट किए जाते हैं. इस दौरान चुनाव अधिकारियों द्वारा दस्तावेजों की भी जांच होती है. यह सब सभी उम्मीदवारों, पर्यवेक्षकों के सामने होता है. ऐसे में शिकायत की कोई गुंजाइश नहीं बचती. आयोग का कहना है कि 90 प्रतिशत अपडेट आधी रात तक हो जाते हैं.

कुछ केस में डेटा अगले दिन अपडेट होता है क्योंकि मतदान कर्मियों के सुदूर क्षेत्रों से आने में टाइम लगता है. ऐसे में दूसरे दिन पूरा डेटा जारी कर दिया जाता है. हां, उस सीट पर डेटा फिर अपडेट होता है जहां कुछ बूथों पर दोबारा चुनाव कराए जाते हैं. जैसे ही री-पोल के डेटा आते हैं फाइनल आंकड़े जारी कर दिए जाते हैं. (एजेंसी इनपुट के साथ)

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