बलकेश के पिताजी काम करने के लिए घर से निकलते थे, तब पता नहीं होता था कि वे कब लौटेंगे. कई दिनों तक ट्रक चलाने के बाद वे लौटते थे, मां 30 बीघा जमीन पर खेती करती थीं. हर दिन का काम करने के बाद खेतों में काम करना मुश्किल होता था.
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नई दिल्लीः राजस्थान के चूरू जिले में रहने वाले बलकेश ISRO में अब रॉकेट डिजाइन करते पाए जाएंगे. बलकेश ने ISRO में साइंटिस्ट के लिए हुए एग्जाम को पास किया, इसके लिए उन्होंने पांच सालों तक पढ़ाई की. 44वीं रैंक हासिल करने वाले बलकेश को जल्द ही पोस्टिंग भी मिल जाएगी.
ड्राइवर थे बलकेश के पिताजी
चूरू के रहने वाले बलकेश चहर का यहां तक का सफर बड़ा ही रोचक रहा. नरवासी गांव के रहने वाले बलकेश ने ट्रक ड्राइवर के रूप में काम किया था. इस दौरान जब भी ट्रक के इंजन में छोटी-मोटी खराबी को उनका पिता ठीक करते तो वे उन्हें ठीक करते हुए देखते, इंजन को समझने की कोशिश करते. उन्होंने बताया कि करते-करते ही उन्हें पता लगा कि कैसे एक छोटे से इंजन के दम पर इतना बड़ा ट्रक चलता है.
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स्कूल-कॉलेज के इवेंट में लेते थे हिस्सा
अपने पिताजी से सीख कर उन्होंने स्कूल और कॉलेज में आयोजित होने वाले इनोवेटिव साइंस इवेंट में हिस्सा लिया. तभी उन्होंने साइंटिस्ट बनने का फैसला कर लिया, उन्होंने तैयारी की और ISRO का एग्जाम दिया, जिसका रिजल्ट पिछले दिनों ही आया.
खेती करती थी मां
बलकेश ने बताया कि जब उनके पिताजी काम करने के लिए घर से निकलते थे, तब पता नहीं होता था कि वे कब लौटेंगे. कई दिनों तक ट्रक चलाने के बाद वे लौटते थे, मां 30 बीघा जमीन पर खेती करती थीं. हर दिन का काम करने के बाद खेतों में काम करना मुश्किल होता था. इतनी मेहनत मां-पिता उन्हीं के लिए करते थे.
बलकेश ने बताया कि उन्होंने राजगढ़ में पढ़ाई की, इसीलिए कुछ बनना उनका दायित्व था. दोनों भाई इंजीनियर हैं और अब वह भी साइंटिस्ट बन गए.
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सालों तक कमरे में रहे बंद
बलकेश ने बताया कि उन्हें पहली बार में ही सफलता नहीं मिली. इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने सालों तक मेहनत की, दो बार एग्जाम में फेल हुए. हिम्मत नहीं हारी और जो कमियां थीं, उन्हें दूर करते हुए तीसरी बार एग्जाम दी. करीब पांच सालों तक उन्होंने एक ही कमरे में रहकर पढ़ाई की और आखिरकार सफलता हासिल कर ही ली.
ISRO में करना होगा ये काम
उन्होंने बताया कि ISRO देश का सबसे बड़ा स्पेश रिसर्च सेंटर है, अंतरिक्ष में जाने वाले यान की इंजीनियरिंग डिफरेंट तरीके से होती है. रॉकेट के किस पार्ट से कितना फ्यूल देने पर रॉकेट अंतरिक्ष तक पहुंच सकता है. रॉकेट का कम से कम भार हो और ज्यादा से ज्यादा गति हो. रॉकेट का कौनसा हिस्सा कब और कहां लगेगा, ये सब इसरो के साइंटिस्ट ही बताते हैं.
देश की प्रतिष्ठा से जुड़े इस संस्थान में साइंटिस्ट चयन करने के लिए देशभर में सिविल सर्विसेज की तरह ही एग्जाम होते हैं. बलकेश ने बताया कि कई सालों की मेहनत के बाद न सिर्फ उनका चयन हुआ, बल्कि उन्होंने देशभर में 44वीं रैंक भी हासिल की.
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छोड़ दिया लाखों का पैकेज
इस एग्जाम में B Tech करने वाले युवाओं को ISRO और BARC (Bhabha Atomic Research center) का एग्जाम देने का मौका मिलता है. कड़ी मेहनत के बाद एग्जाम क्लीयर होती है और चयन होने के बाद दोनों ही सेंटर्स पर काम करने का मौका मिलता है. राष्ट्र सेवा का यह भी एक माध्यम है. बलकेश ने बताया कि यहां से पहले वह जयपुर स्थित एक प्राइवेट कंपनी में इंजीनियर के रूप में जॉब भी कर रहे थे. अच्छे पैकेज के बावजूद उन्होंने इसे छोड़ दिया.
नवंबर तक होगी जॉइनिंग
ISRO ने खुद की एक रिक्रूटमेंट एजेंसी बना रखी है, इसमें हिस्सा लेने के लिए हर साल एग्जाम आयोजित होते हैं. एक पोस्ट के लिए करीब 10 लोगों के इंटरव्यू लिए जाते हैं, 2019 में करीब 134 पोस्ट के लिए एग्जाम हुए थे. इसके लिए 60 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स ने एग्जाम दिए थे, जिसमें उनकी 44वीं रैंक आई. नवंबर में उनकी जॉइनिंग हो जाएगी. पहले ISRO ट्रेनिंग देगा, फिर ही उन्हें किसी प्रोजेक्ट से जोड़ा जाएगा.
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