मेइज सिंड्रोम दो तरह के डिस्टोनिया का मिश्रण है. एक आंख से संबंधित डिस्टोरिया यानी कि ब्लेकरोस्पैजम और दूसरा मुंह, जीभ और जबड़े से जुड़ा डिस्टोनिया यानी ओरो मैडिब्यूलर.
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नई दिल्लीः मेइज सिंड्रोम डिस्टोनिया (Meige Syndrome) का एक बेहद दुर्लभ रूप है. इस बीमारी में व्यक्ति को इलेक्ट्रिक शॉक की तरह झनझनाहट होती है. यही नहीं व्यक्ति के लिए शरीर के मूवमेंट को भी नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है. बता दें डिस्टोनिया एक नर्वस सिस्टम से जुड़ा डिसऑर्डर है, जिसमें व्यक्ति को अधिकांश तौर पर आंख, जबड़े, जीभ और चेहरे की निचले हिस्से की मांसपेशियों में ऐंठन होती है. इस सिंड्रोम के बारे में पहली बार फ्रैंच न्यूरोलॉजिस्ट हेनरी मेइज ने बताया था. इस रोग में गंभीर स्थिति में नेत्रहीनता तक की समस्या हो सकती है साथ ही मुंह खोलने में भी परेशानी आ सकती है.
किस उम्र में हो सकता है सिंड्रोम
इस बीमारी का लक्षण 40 से 60 वर्ष के बीच शुरू होते हैं. यह 60 से अधिक उम्र वालों को भी हो सकती है. 40 साल से कम उम्र वालों को इसके होने की संभावना कम ही होती है.
मेईज सिंड्रोम में ये होती है परेशानी
मेइज सिंड्रोम दो तरह के डिस्टोनिया का मिश्रण है. एक आंख से संबंधित डिस्टोरिया यानी कि ब्लेकरोस्पैजम और दूसरा मुंह, जीभ और जबड़े से जुड़ा डिस्टोनिया यानी ओरो मैडिब्यूलर. इन डिसऑर्डस (disorder) में तेज दर्द होता है और ग्रसित व्यक्ति पलकें या जबड़ा खोलने में परेशानी महसूस करता है.
क्या होती है वजह
इसके पीछे कई आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारक हो सकते हैं. मस्तिष्क के अंदर पाई जाने वाली संरचनाओं के समूह में नुकसान होने पर भी यह स्थिति हो सकती है. कुछ मामलों में पार्किंसन जैसे रोग को ठीक करने के लिए इस्तेमाल होने वाली दवाओं को भी इसकी वजह माना गया है.
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लक्षण
इस रोग में आंखों पर सबसे अधिक असर पड़ता है. यहा तक कि गंभीर स्थिति में नेत्रहीनता तक की समस्या हो जाती है. ब्लेफरोस्पैजम की समस्या तनाव, चमकदार रोशनी, वायु प्रदूषण के कारण हो सकती है. इसमें पहले एक आंख प्रभावित होती है और फिर दूसरी आंख पर भी धीरे-धीरे असर होता है. मांसपेशियों के सिकुड़ने और ऐंठन से व्यक्ति को पलकें खोलने में परेशानी होती है. इसमें अंधेपन का जोखिम भी बढ़ जाता है.
ओरोमैंडिब्यूलर डिस्टोनिया में जबड़े और जीभ की मांसपेशियों में सिकुड़न आती है. इसकी वजह से मुंह खोलने या बंद करने में परेशानी हो सकती है.
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इलाज का ये है तरीका
वर्तमान में मेइज डिसऑर्डर का पता लगाने के लिए कोई टेक्नोलॉजिकल डायग्नोस्टिक टूल्स नहीं हैं. यह ब्लड केमिस्ट्री एनालिसिस या रेडियोलॉजिकल इमेजिंग जैसे एमआरआई या सीटी स्कैन का इस्तेमाल करके पहचाना नहीं जा सकता है. डिस्टोनिया से जुड़ी बीमारियों के लिए वर्तमान में कोई इलाज नहीं है लेकिन इसके उपचार का लक्ष्य लक्षणों को कम करना है.
चेहरे की मांसपेशियों से जुड़े डिसऑर्डर को ठीक करने के लिए बोटुलिनम टॉक्सिन इंजेक्शन को सबसे प्रभावी माना जाता है, लेकिन यह प्रभाव अस्थाई है. इसके अलावा तेज धूप से बचना भी इस बीमारी का एक इलाज है.
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(नोट: कोई भी उपाय अपनाने से पहले डॉक्टर्स की सलाह जरूर लें)