मानवता का अभूतपूर्व उदाहरण पेश करते हुए आईटीबीपी ने उस ऊंचाई पर इस ऑपरेशन को शुरू किया था, जहां पर हेलीकॉप्टर भी लैंड होने में असक्षम महसूस कर रहे थे.
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नई दिल्ली: मानवता का अभूतपूर्व उदाहरण पेश करते हुए इंडो-तिब्बतन बार्डर पुलिस (आईटीबीपी) फोर्स ने करीब एक महीने पहले हिमालय में करीब 21 हजार फीट की ऊंचाई पर एक ऑपरेशन की शुरूआत की थी. यह ऑपरेशन पर्वतारोहण के लिए गए गए एक दल के रेस्क्यू से जुड़ा हुआ था. इस पर्वतारोही दल में कुल 12 लोग शामिल थे. जिसमें 11 विदेशी नागरिक थे और एक भारतीय नागरिक था. इन विदेशी नागरिकों में 8 ब्रिटिश, 2 अमेरिका और एक आस्ट्रेलिया मूल के नागरिक शामिल थे.
आईटीबीपी के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, 26 मई को हुए एक हादसे में 12 में से 8 विदेशी नागरिकों की 21 हजार फीट की ऊंचाई पर मृत्यु हो गई थी. जिनके शवों को नीचे लाने के लिए आईटीबीपी ने इस ऑपरेशन को शुरू किया था. करीब एक महीने से अधिक की जद्दोजहद के बाद आईटीबीपी आठ में से सात शवों को न केवल खोजने में कामयाब रही, बल्कि चार विदेशी नागरिकों के शवों को मंसूरी कैंप तक लाने में सफल रही है. बाकी बचे तीन तीन शवों को लेकर आईटीबीपी के जवान नंदा देवी से नीचे आ रहे हैं.
आईटीबीपी के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कल सुबह तक बाकी बचे तीन शवों को पिथौरागढ़ बेस कैंप तक पहुंचा दिया जाएगा. उन्होंने बताया कि 12 मई को 12 सदस्यीय पर्वतारोही दल पर्वतारोहण के लिए निकाला था. तय कार्यक्रम के अनुसार, यह पर्वतारोही दल 25 मई को नंदादेवी बेस कैंप तक पहुंचने में कामयाब रहा. नंदादेवी बेस कैंप पहुंचने के बाद यह पर्वतारोही दो टीमों में बंट गए. जिसमें चार सदस्यीय एक टीम नंदा देवी से नए रास्ते की खोज पर निकल पड़ा. वहीं दूसरा दल ने हिमालय की एक वर्जिन पीक पर चढ़ने का फैसला किया.
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आईटीबीपी के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि 25 जून की रात में दोनों टीमों ने अपने निर्धारित कार्यक्रम के तहत दोनों दिशाओं में अपनी चढ़ाई शुरू की. उन्होंने बताया कि जो दल वर्जिन पीक की चढ़ाई पर निकला था, वह 21 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद एक हादसे का शिकार हो गया. जिसमें यह दल करीब 1 हजार फीट की गहराई तक गिरते हुए नीचे पहुंच गया. जिसके बाद, इस टीम का कुछ पता नहीं चला. 26 मई को जब दोनों टीमों के बीच कोई संपर्क नहीं हुआ तो पहली टीम ने दूसरी टीम को खोजना शुरू किया.
उन्होंने बताया कि 28 मई तक जब पहली टीम अपने बाकी साथियों को खोजने में असमर्थ रही तो उन्होंने इसकी जानकारी देने के लिए एक शख्स को नीचे बेस कैंप के लिए रवाना कर दिया. इस शख्स ने 30 मई को बेस कैंप को जानकारी दी. जिसके बाद, लापता हुए पर्वतारोहियों की तलाश में ऑपरेशन शुरू किया गया. इस ऑपरेशन की शुरूआत में एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर की मदद से चार विदेशी पर्वतारोहियों को नीचे बेस कैंप ले आया गया और लापता दूसरे पर्वतारोहियों की तलाश शुरू की गई.
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आईटीबीपी के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि भारतीय एयरफोर्स के हेलीकॉप्टर अगले दिन विदेशी पर्वतारोहियों के पांच शवों को तलाशने में कामयाब रही. लेकिन, अधिक ऊंचाई होने के चलते ये हेलीकॉप्टर वहां पर लैंड नहीं हो पा रहे थे. जिसके चलते, एयरफोर्स से आईटीबीपी को जिम्मेदारी सौंपी कि इन शवों को 15 हजार फीट की ऊंचाई तक लेकर आए. इसके बाद ही वे इन शवों को एयर लिफ्ट करा सकते हैं. जिम्मेदारी मिलने के बाद, आईटीबीपी की टीम ने हिमालय पर चढ़ाई करने की तैयारियां शुरू कर दीं.
15 जून को आईटीबीपी के जवानों ने यह ऑपरेशन शुरू किया और 22 जून तक वे लापता हुए 7 शवों को खोजने में कामयाब रहे. लेकिन समस्या यही थी कि इन शवों को इतनी ऊंचाई से एयर लिफ्ट नहीं कराया जा सकता था. जिसके चलते, आईटीबीपी के जवानों ने इन शवों को पूरे सम्मान के साथ अपने कंधों पर लेकर नीचे आने का फैसला किया. यहां पर एक चुनौती यह भी थी कि इन शवों को बेस कैंप तक लाने के लिए आईटीबीपी को करीब पहले 18900 फीट तक चढ़ाई करनी थी, फिर के इसके बाद नीचे उतरना था.
आईटीबीपी के जवानों ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए सभी शवों को स्ट्रेचर के सहारे अपने कंधे पर रखा. पहले इन जवानों ने शवों के साथ 18900 फीट ऊंची एक चोटी की चढ़ाई पूरी की और फिर नीचे उतरना शुरू किया. इस तरह आईटीबीपी के जवान दुनिया के सबसे मुश्किल रेस्क्यू ऑपरेशन को अंजाम देने में कामयाब रहे और चार शवों को लेकर मंसूरी तक पहुंच गए. बाकी बचे तीन शवों को भी आज रात तक बेस कैंप तक पहुंचा दिया जाएगा.