हाड़ कंपा रही ठंड, अब तक नहीं मिल पाई पीड़ितों को 'दीनदयाल पुरम' की छत
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हाड़ कंपा रही ठंड, अब तक नहीं मिल पाई पीड़ितों को 'दीनदयाल पुरम' की छत

जातीय हिंसा के बाद गांव से विस्थापित हुए परिवारों को अब तक आसरा नहीं मिल पाया है.

हिसार में मिर्चपुर पीड़ितों की झोपड़ियां.

हिसार: हरियाणा के हिसार जिला के मिर्चपुर गांव में साल 2010 में हुई जातीय हिंसा का नासूर दर्द आज भी पलायन करने वाले परिवारों पर बना हुआ है. जातीय हिंसा के बाद गांव से विस्थापित हुए परिवारों को अब तक आसरा नहीं मिल पाया है. हम सभी वाकिफ ही हैं कि हरियाणा सहित उत्तर भारत में इन दिनों हांड कंपा देने वाली सर्दी पड़ रही है, लेकिन मिर्चपुर से विस्थापित हुए 100 से ज्यादा परिवारों को करीबन 10 साल बाद भी पॉ​लीथिन की छत वाली झुग्गी में गुजर-बसर करना पड़ रहा है.

इससे आप सहज ही अंदाजा लगा सकते है कि किन हालातों में यह परिवार रह रहे होंगे. पलायन के बाद मिर्चपुर से विस्थापित परिवारों ने हिसार के कैमरी रोड़ पर स्थित तंवर फार्महाउस पर ही पड़ाव डाला हुआ है. प्लास्टिक के पॉलीथिन वाली छत है, झोपड़ियों में दूरी इतनी है कि आवाजाही हो सके. इन्हीं झोपड़ियों के आस पास गुजर बसर के साधन भी रखे हुए नज़र आये.

अब सवाल उठता है कि आखिर सरकार ने इनके लिए क्या किया, तो वो भी आपको बता देते हैं. पंडित दीन दयाल उपाध्य का नाम आपने सुना है? शायद कहीं ना कहीं सुना ही होगा, क्योंकि बीजेपी नेताओं के लिए यह नाम बहुत बड़ा नाम है. बस इन्हीं के नाम पर हरियाणा की बीजेपी सरकार के पार्ट वन कार्यकाल में 7 जुलाई 2018 को हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने हिसार के ही ढंढूर गांव में मिर्चपुर प्रकरण के बाद गांव छोड़ने वाले ग्रामीणों के पुनर्वास हेतु बनाई गई योजना की लॉन्चिंग की. उस वक्त उनके साथ तत्कालीन वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु और तत्कालीन सामाजिक न्याय अधिकारिता राज्यमंत्री कृष्ण कुमार बेदी भी मौजूद थे. ये सभी हिसार के ढंढूर गांव में पहुंचे थे, मिर्चपुर पीड़ित भी आये थे. मंच से बड़ी बड़ी बातें हुईं, सभी ने मंच से मिर्चपुर प्रकरण को राजनीतिक साजिश बताया था और कहा था कि दूसरी सरकारों ने कुछ नहीं किया था, बीजेपी ने इनकी सम्भाल की है.

गांव ढंढूर में रैली कर 258 परिवारों को ढंढूर में जमीन देकर बसाने की तैयारी की गई. लेकिन आप इसी बात से अंदाजा लगा सकते है कि 1 साल में केवल परिवारों को रजिस्ट्रियां ही मिल पाई. तब कहा गया था कि 4 करोड़ 56 लाख की लागत से 8 एकड़ की भूमि पर योजना की शुरुआत हो गई है, जल्द बस्ती बन जाएगी. बस्ती का नाम दीन दयाल पुरम होगा. लेकिन हालात वैसे नहीं हो पाएं, जैसा कहा गया था.

झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले 70 साल के गुलाब सिंह ने कहा ''मैंने मिर्चपुर मामले में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की तारीखें भुगती है. 10 साल होने वाले हैं, हम यहां रह रहे हैं, सरकार की तरफ से किश्तों पर जमीन देने और निर्माण का आश्वासन दिया गया था, रजिस्ट्री मिल चुकी है. पहली किस्त भी जमा करवा चुके है. मगर अभी तक हमें यह ही नहीं पता कि हमारा प्लॉट कौन-सा है.

दोनों ही मौसम में परेशानी
बस्ती में झोपड़ी में ही किराने की दुकान वाला समान बेच कर गुजर बसर रहने वाली लिली देवी का कहना था कि ठंड ज्यादा हो या गर्मी, दोनों ही मौसम में परेशानी होती है. नज़र सरकार की तरफ है, बच्चे रात को रोने लगते हैं. अब बार-बार कितने नेताओं के पास चक्कर काटे. 72 साल के बणी सिंह ने कहा कि हम परिवारों ने न्याय की मांग करते हुए जल्द समाधान की मांग की है. राजनीति नेताओं ने कुछ किया नही, सिर्फ आश्वासन मिले. 1 साल पहले आस जगी, रजिस्ट्री मिली लेकिन छत अब तक नसीब नहीं हुई. बारिश में तो झुग्गियों की पॉलीथिन वाली छत टपकने लगती है.

2010 में मिला था दर्द, राहुल गांधी भी आये थे
साल 2010 में हिसार के मिर्चपुर गांव में हुई जातीय हिंसा के दौरान गांव में 70 साल के दलित बुजुर्ग और उसकी बेटी को जिंदा जिला दिया गया था. इसके बाद गांव के दलितों ने पलायन कर लिया और वो हिसार आकर तंवर फार्म हाउस में रहने लगे. जब यह प्रकरण हुआ तब मामले पर सियासत भी बहुत हुई थी, खुद कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी मिर्चपुर पहुंचे थे. कुत्ते को मारने के बाद हुई इस घटना के बाद जांच चली, केस चला और  आरोपियों को कोर्ट द्वारा सजा भी सुनाई गई. हिंसा के बाद पलायन करने वाले लोग अब भी तंवर फार्म हाउस में ही डटे हुए है. उनका उस वक्त कहना था कि गांव में भय के माहौल से उन्होंने पलायन किया है. मांग थी कि सरकार इन्हें कहीं और बसा दें.
 
हिसार के सांसद बोले, समाधान करेंगे
इस पूरे प्रकरण को लेकर हमने हिसार लोकसभा के सांसद बृजेंद्र सिंह से भी बातचीत की. लेकिन बृजेंद्र सिंह ने ज्यादा कुछ ना कहते हुए यही आश्वासन दिया कि जल्द जिला प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर समस्या का समाधान करवाएंगे.

फिलहाल वाकए में यह योजना कब सिरे चढ़ेगी यह तो वक्त ही बताएगा. लेकिन इतना जरूर है कि मिर्चपुर से विस्थापित परिवारों को परेशानियों के दौर से जरूर गुजरना पड़ रहा है. वहीं दीनदयाल पुरम के नाम की अगर बात करें तो यह नाम बीजेपी के लिए काफी इज्जत से लिया जाने वाला नाम यानि पंडित ​दीन दयाल उपाध्य से लिया गया है. अब देखना यही होगा कि सरकार इस पूरे प्रोजेक्ट को कब तक सिरे चढ़ाती है और कब वास्तव में मिर्चपुर पीड़ितों के दर्द पर मरहम लगता है.

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