DNA ANALYSIS: अतीत का 'गौरव' वर्तमान में गायब? जानिए बिहार के इतिहास से जुड़ी ये रोचक बातें
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DNA ANALYSIS: अतीत का 'गौरव' वर्तमान में गायब? जानिए बिहार के इतिहास से जुड़ी ये रोचक बातें

बिहार के वैशाली में पहला लोकतंत्र स्थापित हुआ. तकरीबन 2600 साल पहले लिच्छवियों ने इसकी स्थापना की. वैशाली गणराज्य में राजा का चुनाव होता था. 

DNA ANALYSIS: अतीत का 'गौरव' वर्तमान में गायब? जानिए बिहार के इतिहास से जुड़ी ये रोचक बातें

नई दिल्‍ली: कल 22 मार्च को बिहार ने अपने जन्‍म के 109 वर्ष पूरे कर लिए हैं.  22 मार्च 1912 को बंगाल प्रेसिडेंसी से अलग होकर बिहार अलग राज्य बना था. हालांकि इसके बाद बिहार का दो बार विभाजन हुआ.  वर्ष 1935 में बिहार से अलग हो कर ओडिशा अलग राज्य बना और फिर वर्ष 2000 में झारखंड राज्य अस्तित्व में आया, लेकिन सोचिए बिहार आज कहां खड़ा है.  इसका वैभवशाली इतिहास इसकी सबसे बड़ी पूंजी तो है, लेकिन इसका पिछड़ापन इस इतिहास पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाता है. सबसे पहले आपको बिहार के इस इतिहास के बारे में बताते हैं. 

बिहार का रोचक इतिहास

भगवान बुद्ध को बिहार के गया में ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और बौद्ध धर्म की शुरुआत भी बिहार की धरती से ही हुई. यही नहीं जैन धर्म के भगवान महावीर का जन्म भी बिहार के वैशाली में हुआ था और नालंदा के पावापुरी में उन्हें मोक्ष हासिल हुआ. सिर्फ बौद्ध और जैन ही नहीं, बल्कि सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म भी बिहार के पटना साहिब में हुआ था.

इसी बिहार की धरती पर सीताजी का भी जन्म हुआ. बिहार के सीतामढ़ी में आज भी सीताजी का जन्मस्थान है, जहां एक भव्य मंदिर है. देश का सबसे पुराना हिन्दू मंदिर मां मुंडेश्वरी भी बिहार के कैमूर में है. कहा जाता है कि इसी जगह पर मां दुर्गा ने शुंभ-निशुंभ के सेनापति चंड और मुंड का वध किया था.

दुनिया को शून्य देने वाले आर्यभट्ट का जन्मस्थान बिहार का पाटलिपुत्र यानी आज का पटना ही माना जाता है. 

बिहार को वाल्मीकि आश्रम के लिए भी जाना जाता है. कहते हैं कि रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मिकी ने इसी आश्रम में अपना कुछ समय बिताया था. उनके नाम पर ही इस जगह का नाम भी वाल्‍मीकि नगर पड़ा था और आज ये बिहार के पश्चिमी चंपारण का हिस्सा है.

आज योग के लिए भले ही हरिद्वार का नाम सबसे पहले आता है लेकिन विश्व  की पहली योग यूनिवर्सिटी देने का गौरव भी बिहार के पास ही है. बिहार के मुंगेर जिले में वर्ष 1964 में सत्यानंद सरस्वती ने योग विश्वविद्यालय की स्थापना की थी.

दुनिया का पहला लोकतंत्र 

यही नहीं दुनिया को लोकतंत्र का पहला पाठ बिहार ने ही पढ़ाया. बिहार के वैशाली में पहला लोकतंत्र स्थापित हुआ. तकरीबन 2600 साल पहले लिच्छवियों ने इसकी स्थापना की. वैशाली गणराज्य में राजा का चुनाव होता था. जिसे गणराजा कहा जाता था. इसी तरह वैशाली से ही भारत का दूसरा शहरीकरण शुरू हुआ था. यानी जिस बिहार ने भारत को शहरों में बदलना सिखाया आज भी उस बिहार की 88 फीसदी आबादी गांव में रहती है.

बिहार अर्थशास्त्र की रचना करने वाले चाणक्य की भूमि है. चाणक्य के शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य ने मगध साम्राज्य की नींव रखी. चंद्रगुप्त मौर्य के पोते सम्राट अशोक ने भारत के अलग अलग साम्राज्यों को जोड़कर एक कर दिया और अखंड भारत पर राज किया. चाणक्य की वजह से ही पाटलिपुत्र से मगध साम्राज्य मजबूत हुआ.

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कर्मभूमि 

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जन्मभूमि भले ही गुजरात हो, लेकिन उनकी कर्मभूमि बिहार रही. एक किसान के बुलावे पर महात्मा गांधी 1916 में चंपारण पहुंचे और 1917 में नील की खेती करने वाले किसानों पर हो रहे जुल्म के खिलाफ चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत की.

इसी तरह जयप्रकाश नारायण का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ हो, लेकिन उनकी कर्मभूमि भी बिहार ही रही. पटना के गांधी मैदान से जेपी आंदोलन ने जो लहर पैदा की उसने तत्कालीन इंदिरा सरकार को हिला कर रख दिया था और उसी आंदोलन आज के कई नेता निकले.

इसी बिहार की धरती पर रामधारी सिंह दिनकर, फणीश्वरनाथ रेणु, बाणभट्ट और विद्यापति जैसे कवि हुए. ये वो सुनहरे पन्ने हैं जिसपर बिहार गर्व करता है, लेकिन बिहार की एक तस्वीर ऐसी है जिसे देखकर बिहार बीमार लगता है.

आज बिहार को किन बातों के लिए जाना जाता है?

सोचिए, आज बिहार को किन बातों के लिए जाना जाता है. खस्ताहाल सड़कें, खराब स्वास्थ्य व्यवस्था, खराब शिक्षा प्रणाली और अपराध, ये सब चीजें आज बिहार की पहचान बन गई हैं. सोचिए, क्या आज आप अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए उन्हें बिहार भेजना पसंद करेंगे. इसका जवाब शायद नहीं में होगा और ऐसा क्यों है? इसे हम आपको कुछ आंकड़ों के जरिए बताते हैं-

-बिहार में शिक्षा का हाल बहुत बुरा है.  पूरे देश की साक्षरता दर 74 फीसदी है, लेकिन बिहार में ये सिर्फ 63 प्रतिशत है.

-देशभर में 23 बच्चों पर एक प्राइमरी टीचर हैं, लेकिन बिहार में 36 बच्चों पर एक प्राइमरी टीचर है. इसी तरह पूरे देश में अपर प्राइमरी क्लास में 17 बच्चों पर एक टीचर है जबकि बिहार में 24 बच्चों पर एक टीचर है.

-बिहार में 18 से 23 साल के बीच के सिर्फ 15 प्रतिशत स्‍टूडेंट्स ही उच्‍च शिक्षा के लिए जाते हैं जबकि देश में ये औसतन 25 प्रतिशत है.

-2014-15 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में सरकार एक बच्चे की शिक्षा पर साल में सिर्फ 5 हजार रुपए खर्च करती है जबकि हिमाचल प्रदेश में तकरीबन 40 हजार रुपये खर्च किए जाते हैं.

-इन आंकड़ों के बाद हम आपसे एक बार और पूछते हैं कि क्या ऐसी परिस्थितयों में आप अपने बच्चों को बिहार में पढ़ने के लिए भेजना पसंद करेंगे.

यानी जो बिहार हर साल सबसे ज्यादा IAS, IPS और इंजीनियर देश को देता है. वहां की शिक्षा व्यवस्था ICU में नजर आती है.

-सदियों पहले बिहार में विक्रमशिला और नालंदा यूनिवर्सिटी,  बिहार की पहचान हुआ करती थी. अगर आज ये उस रूप में होती तो ऑक्सफोर्ड कैंब्रिज और हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी की श्रेणी में आ सकती थी. लेकिन सरकारों की अनदेखी ने ऐसा होने नहीं दिया.

ये तस्वीर बिहार के वैभवशाली इतिहास पर प्रश्न चिन्ह लगाती है.

स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं का अभाव

बिहार के अस्पतालों में जाने से पहले लोग भगवान को याद करते हैं. राज्य के सबसे बड़े अस्पताल PMCH में मरीजों को इलाज नहीं मिल पाता. डॉक्टर का अपॉइंटमेंट मिलने में महीनों लग जाते हैं. बिहार के ज्यादातर लोगों की इतनी कमाई नहीं है कि वो प्राइवेट डॉक्टर से इलाज करवाने का खर्च उठा सके.

बिहार में 29 हजार लोगों पर एक डॉक्टर है. 8645 लोगों पर सिर्फ एक बेड उपलब्ध है. वर्ल्‍ड हेल्‍थ ऑर्गनाइजेशन का आंकड़ा कहता है कि एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए. बिहार के पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में 10 हजार लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है. बिहार के उत्तर प्रदेश में 19 हजार लोगों पर एक डॉक्टर है. पूरे देश में 11 हजार लोगों पर एक डॉक्टर है. अगर इसमें पटना को माइनस कर दें, तो तस्वीर और बदतर हो जाती है.

देश में जहां प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य का खर्च 1 हजार 112 रुपए हैं, तो बिहार में सिर्फ 491 रुपए है. बिहार में परमानेंट डॉक्टर के कुल 6261 पद हैं जिसमें 2440 पद खाली पड़े हैं. बिहार में ठेके पर रखे जाने वाले डॉक्टर के कुल 2314 पद हैं. फिलहाल महज 531 डॉक्टर काम कर रहे हैं यानी बिहार में जरूरत से आधे डॉक्टर ही मौजूद हैं जबकि नर्सों के लिए 5331 पद हैं जिसमें मात्र 2302 नर्स बहाल हैं और बाकी के 3029 पद खाली हैं. लगभग 57 प्रतिशत की वैकेंसी है. पिछले 15 सालों से यही हालत है. आप खुद सोचिए, बिहार क्यों नहीं बदल पा रहा? बिहार दिवस मनाकर सिर्फ कोरम पूरा करने से बिहार नहीं बदलने वाला.

पलायन के पीछे बड़ा कारण

क्या बिहार में कभी वो दिन आ सकता है जब लोग दिल्ली, मुंबई से छोड़कर वापस बिहार की ओर लौटेंगे. असल में बिहार के लोगों के पलायन के पीछे एक बहुत बड़ा कारण है. ये कारण है, नौकरी का नहीं होना और लोगों को मजदूरी का सही दाम नहीं मिलना..

-देश में सड़क निर्माण में प्रति व्यक्ति खर्च का आंकड़ा 118 रुपए है, लेकिन बिहार में सिर्फ 44 रुपए यानी 74 रुपए का फर्क और इसके पीछे की एक बड़ी वजह बिहार में मिलने वाले सस्ते मजदूर ही हैं.

-पूरे देश में सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण के लिए प्रति व्यक्ति औसत खर्च 200 रुपए का है. लेकिन बिहार में ये सिर्फ 105 रुपए के आसपास है.

-करीब 6 महीने पहले ही बिहार चुनाव खत्म हुआ जिसमें बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा था. किसी ने 20 लाख किसी ने 10 लाख नौकरी देने का वादा किया था, लेकिन बिहार में नौकरी कहां है.

-कभी बिहार हैंडलूम का हब हुआ करता था. भागलपुर सिल्क सिटी के नाम से जाना जाता था. जहां 10 हजार से ज्यादा हैंडलूम और पावरलूम चलते थे. इनमें से 90 फीसदी से ज्यादा बंद हो गए.

-बेगूसराय में खाद कारखाना हुआ करता था. अब ये कारखाना बंद पड़ा है. रोहतास का डालमिया नगर सीमेंट उद्योग के लिए जाना था. अब बंद पड़ा है. मुंगेर में 39 में सिर्फ 9 बंदूक की फैक्ट्री बची है. सीमांचल के इलाके में जूट मिल हुआ करते थे. ये भी वर्षों पहले बंद हो चुके हैं. गोपालगंज, सीवान, छपरा जैसे इलाकों में ज्यादातर चीनी मिलें बंद हो चुकी हैं.

60 फीसदी आबादी युवा 

बिहार की 60 फीसदी आबादी युवा है, लेकिन पढ़ाई पूरी करने के बाद उसे ये पता ही नहीं होता कि नौकरी कहां और कैसे मिलेगी या मिलेगी भी या नहीं. इसलिए वो बिहार छोड़कर दिल्ली, मुंबई जैसे शहरों की तरफ भागते हैं.

आरबीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार के 50 लाख लोग पलायन करके मजदूर बन चुके हैं. बिहार के 7 जिलों के 58 फीसदी लोग माइग्रेंट वर्कर बन चुके हैं. बिहार को लोग आज भी लोग उसकी बेरोजगारी, पलायन, गरीबी और खराब सड़कों की वजह से ही जानते हैं. यहां के खराब स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत 2019 में लोगों ने देखी जब मुजफ्फरपुर में इंसेफ्लाइटिस से बच्चे दम तोड़ रहे थे. कोरोना में सबसे बड़े अस्पताल PMCH में ऑक्सीजन तक नहीं मिल पा रहा था.
बिहार भले ऐतिहासिक विरासत से समृद्ध हो, लेकिन ये भी उतना ही सच ही कि बिहार आज देश में सबसे पिछड़ा है और अपराध के लिए बदनाम हो चुका है.

क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो के आंकड़े

बिहार क्राइम रिकॉर्ड ब्‍यूरो के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में 2020 में 2400 से ज्यादा लोगों की हत्या हुई और 1100 से ज्यादा रेप के मामले सामने आए. इसके बाद भी बिहार का एक एक इंसान अपनी मेहनत से अपनी जगह और अपनी पहचान बना रहा है. अभी हाल ही में राजगीर में देश का दूसरा ग्लास ब्रिज बनकर तैयार हुआ, जिसे देखने दूर दूर से लोग आए. आज हम इतना ही कहना चाहेंगे कि बिहार दिवस मनाना भी जरूरी है, लेकिन बिहार के विकास के लिए दूसरे पहलूओं पर भी ध्यान देने की जरूरत है.

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