भ्रष्ट बाबूओं के खिलाफ मुकदमा चलाए जाने के मामले में बढ़े डीओपीटी के अधिकार, जानिए इसके बारे में
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भ्रष्ट बाबूओं के खिलाफ मुकदमा चलाए जाने के मामले में बढ़े डीओपीटी के अधिकार, जानिए इसके बारे में

एक अधिकारी ने गुरुवार को बताया कि पिछले वर्ष भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 में संशोधन के बाद यह आदेश जारी किया गया है.

(फाइल फोटो)

नई दिल्ली : भ्रष्टाचार में लिप्त बाबुओं के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने में यदि केन्द्र सरकार के किसी विभाग तथा केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की राय भिन्न होती है तो इस पर अंतिम निर्णय कार्मिक एवं प्रशिक्षण (डीओपीटी) विभाग लेगा. एक आधिकारिक आदेश में यह जानकारी दी गई.

एक अधिकारी ने गुरुवार को बताया कि पिछले वर्ष भ्रष्टाचार निरोधक कानून 1988 में संशोधन के बाद यह आदेश जारी किया गया है.

संशोधित कानून में केन्द्र सरकार से ऐसे दिशानिर्देशों की व्यवस्था करने को कहा गया है, क्योंकि उसका मानना है कि किसी जनसेवक के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी के लिए यह आवश्यक है.

उन्होंने बताया कि इसके बाद डीओपीटी ने दिशा निर्देश जारी किए, जिसमें कहा गया है कि मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के मामले में अनुशासनात्मक प्राधिकार (केन्द्र सरकार का कोई भी विभाग) और सीवीसी के बीच किसी तरह की मतभिन्नता के मामले को वह देखेगा.

दिशानिर्देशों के अनुसार ऐसे मामलों में जहां सीवीसी मुकदमा चलाने की मंजूरी देता है, लेकिन मंत्रालय/संबंधित विभाग उस प्रस्ताव को नहीं मानता तो मामले को अंतिम निर्णय के लिए डीओपीटी के पास भेजा जाएगा. प्रधानमंत्री इस विभाग का मुखिया होता है. 

सीवीसी के नए आंकड़ों के अनुसार, केन्द्र तथा राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के कथित रूप से 98 भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति संबंधित 45 मामले चार महीने से भी अधिक समय से लंबित हैं.

(इनपुट भाषा से)

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