शर्मा ने कहा, ‘‘मुझे पूरा यकीन है कि अगर यह विधेयक पारित नहीं हुआ तो असमी हिंदू महज पांच साल में ही अल्पसंख्यक हो जाएंगे. यह उन तत्वों के लिए फायदेमंद होगा जो चाहते हैं कि असम दूसरा कश्मीर बन जाए.’’
नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन के लिए लोकसभा में यह विधेयक पेश किया गया है. इस विधेयक में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत आए अल्पसंख्यक समुदाय के ऐसे लोगों को भारत में छह वर्ष निवास करने के बाद ही नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है. ऐसे लोगों के पास कोई उचित दस्तावेज नहीं होने पर भी उन्हें नागरिकता दी जा सकेगी. अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग अल्पसंख्यक हैं.
शांत रहने की अपील
राज्य में कई संगठन विधेयक का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है कि इससे सांस्कृतिक पहचान को नुकसान पहुंचेगा. असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने शनिवार को लोगों से शांत रहने की अपील की और कहा कि राज्य सरकार ऐसा कुछ नहीं करेगी जिससे उनके हितों को नुकसान पहुंचे. यह भी पढ़ें: असम में बीजेपी को लगा बड़ा झटका, इस साथी दल ने वापस लिया सरकार से समर्थन
मुस्लिम लीग का था ये प्लान
असम के वित्त मंत्री ने कहा कि जो भी असम के इतिहास से अवगत हैं वे जानते हैं कि मुस्लिम लीग चाहती थी कि असम पाकिस्तान का हिस्सा बने. लेकिन राज्य के पहले मुख्यमंत्री गोपीनाथ बारदोलोई और तत्कालीन कांग्रेस नेताओं ने उसकी इस कोशिश को नाकाम कर दिया. उन्होंने कहा, ‘‘यह सिर्फ मुस्लिम लीग की बात नहीं थी जो अपनी योजना में असम को शामिल करना चाहती थी, बल्कि उस वक्त यही मांग राज्य के अंदर से भी उठ रही थी. ए तत्व अब भी मौजूद हैं.’’
असम ‘जिन्ना’ के रास्ते पर चल पड़ेगा
शर्मा ने कहा, ‘‘अगर मैं ऐसा कहता हूं तो मैं इसे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में कहता हूं और असम में जो कुछ भी हुआ उसके आधार पर कहता हूं. इसलिए इसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है.’’ असम के वरिष्ठ मंत्री ने रविवार रात को कहा कि अगर राज्य में नागरिकता विधेयक पारित नहीं किया जाता है, तो असम ‘जिन्ना’ के रास्ते पर चल पड़ेगा. उन्होंने कहा कि लोग प्रतिक्रिया में आकर इसका विरोध कर रहे हैं, जबकि बौद्धिक लोग गलत अफवाहें फैलाने की कोशिश कर रहे हैं.
जिन्ना के विचार...
शर्मा ने कहा, ‘‘इस विधेयक के बगैर हम लोग जिन्ना के विचार को ही पोषित करेंगे. अगर ऐसे लोग वहां नहीं हों तो सारभोग सीट जिन्ना के विचार के पक्ष में चली जाएगी. क्या हम ऐसा चाहेंगे? यह जिन्ना की विरासत और भारत की विरासत के बीच की लड़ाई है.’’
बारपेट जिले में सारभोग एक विधानसभा सीट है. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष रंजीत कुमार दास सारभोग से विधायक हैं. उन्होंने यहां पत्रकारों से बातचीत में कहा, ‘‘विधेयक को पारित होने दीजिए फिर हम देखेंगे कि क्या इसमें बांग्लादेशियों के स्वागत का भी प्रावधान है? और मुझे यकीन है कि इसमें ऐसी कोई बात नहीं होगी.’’
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ताकतवर ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) और कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस) ने शर्मा की टिप्पणियों को लोकसभा चुनाव से पहले असमी समाज के ध्रुवीकरण का प्रयास बताया है.
(इनपुट-भाषा)