Assam: 'परेश बरुआ को ससम्मान लौटना चाहिए लेकिन...' असम सरकार से समझौते को लेकर भाई बिकुल ने क्या कहा
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Assam: 'परेश बरुआ को ससम्मान लौटना चाहिए लेकिन...' असम सरकार से समझौते को लेकर भाई बिकुल ने क्या कहा

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Assam: 'परेश बरुआ को ससम्मान लौटना चाहिए लेकिन...' असम सरकार से समझौते को लेकर भाई बिकुल ने क्या कहा

Paresh Baruah news: यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा-आई) के नेता परेश बरुआ के भाई बिकुल बरुआ ने कहा कि परेश को ‘सम्मान के साथ लौट आना चाहिए लेकिन असम के लोगों के लिए अपने लक्ष्यों और आकांक्षाओं को साकार किए बिना नहीं.’ बिकुल बरुआ ने डिब्रूगढ़ लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के तहत आने वाले जेराईगांव में दिए एक इंटरव्यू में कही. बिकुल ने कहा, ‘उनका एक लक्ष्य है, हम उससे सहमत नहीं हैं लेकिन उन्होंने अपने लक्ष्य को पाने के लिए करीब 45 साल लगाए हैं. हम चाहते हैं कि वे घर लौट आएं लेकिन वह हासिल किए बिना खाली हाथ नहीं जिसकी आकांक्षा उन्होंने लोगों के लिए की थी.’

असम सरकार से हुआ था समझौता

सरकार के साथ वार्ता समर्थक उल्फा गुट के समझौते के बारे में पूछे जाने पर उल्फा (आई) प्रमुख के सबसे छोटे भाई ने कहा, ‘हम नहीं चाहते कि वह अपने पहले के साथियों की तरह सिर्फ एक पुनर्वास पैकेज लेकर लौट आएं. राज्य के लोगों के हित में सभी पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए.’

परेश बरुआ के भाई ने दावा किया, ‘जिस समझौते पर हस्ताक्षर हुए हैं वह राज्य की जनता के हित में नहीं है और एक आम आदमी भी जानता है कि ये उनके निजी हित में है. वार्ता समर्थक गुट के नेताओं को बहुत आलोचना का सामना करना पड़ रहा है और वे लोगों और असमिया समाज के सामने अपना पक्ष नहीं रख पा रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि दशकों पुराने उल्फा मामले में हजारों लोगों ने अपनी जान गंवाई है और ‘इन नेताओं ने बस एक पैकेज स्वीकार कर लिया. अगर उन्हें यही स्वीकार करना था तो यह बहुत पहले ही कर लेना चाहिए था,बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती थी. उनके तथाकथित आंदोलन का उद्देश्य क्या यह पैकेज भर था?’

खून बहा है.... उसके बदले कुछ तो मिलना चाहिए

बिकुल बरुआ ने कहा कि परेश बरुआ ‘राज्य के लोगों के प्रति जवाबदेह हैं क्योंकि बहुत से लोग मारे गए हैं और उनके रक्त के बदले कुछ तो मिलना चाहिए.’ पिछले साल दिसंबर में वार्ता समर्थक उल्फा गुट, केंद्र और राज्य सरकार के बीच एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे और इसके बाद जनवरी में यह गुट भंग हो गया था. 

45 साल पहले छोड़ा था घर, 30 साल से संपर्क नहीं

भाई ने ये भी बताया कि परेश बरुआ ने 1979 में घर छोड़ दिया था और उस वक्त उनका छोटा भाई आठवीं कक्षा में था. परेश अपने भाई बिकुल बरुआ को तिनसुकिया और डिब्रूगढ़ जिलों के कई फुटबॉल मैच में ले गए थे. अपने भाई से जुड़ें इन मैच की यादें अब भी बिकुल के जेहन में ताजा हैं.

उन्होंने कहा, ‘उन्हें घर छोड़े हुए काफी समय हो गया है. मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई है, मेरे बड़े भाई दिनेश बरुआ की 1994 में हत्या कर दी गई थी. हमारा उनसे (परेश) कोई संपर्क नहीं है और यह दुखद है.’

1940 में स्थापित जेराई चोकोली भोरिया प्राइमरी स्कूल के शिक्षक ने उस स्कूल का दौरा भी कराया जहां उल्फा (आई) प्रमुख ने शुरुआत में पढ़ाई की थी और प्रवेश रजिस्टर में उनका नाम अभी भी लिखा है जहां उनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल 1957 और प्रवेश की तारीख 2 फरवरी 1962 दर्ज है.

(इनपुट: न्यूज़ एजेंसी पीटीआई भाषा)

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