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नई दिल्ली: वर्ष 1891 से पहले भारत में महिलाओं और पुरुषों के लिए शादी की कोई उम्र निर्धारित नहीं थी और इस वजह से तब देश में बाल विवाह काफी प्रचलित था. पढ़े-लिखे लोग भी इसे बुरा नहीं मानते थे. उदाहरण के लिए वर्ष 1883 में जब भारत के पहले नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर का विवाह मृणालिनी देवी से हुआ, तब उनकी उम्र तो 20 वर्ष थी लेकिन उनकी पत्नी सिर्फ 10 साल की थी.
भारत में बाल विवाह को रोकने के लिए ब्रिटिश सरकार पहली बार वर्ष 1891 में एक कानून लाई थी. इस कानून के तहत ये निर्धारित किया गया कि अगर कोई व्यक्ति 12 साल या उससे कम उम्र की लड़की से शादी करता है तो उस पर रेप जैसे मामलों की कानूनी धारा लगाई जाएगी. इसके बाद वर्ष 1929 में ब्रिटिश सरकार एक और कानून लाई और इस उम्र को 12 वर्ष से 16 वर्ष कर दिया गया जबकि पुरुषों की विवाह के लिए कानूनी उम्र 18 वर्ष तय की गई. इस कानून के बाद देश को आजादी मिलने तक इसमें कोई बदलाव नहीं आया.
वर्ष 1951 में पहली बार देश के पहले कानून मंत्री डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल संसद में पेश किया, जिसे नेहरू ने पहले लोक सभा चुनाव की वजह से वापस ले लिया. उस समय नेहरू पर ये आरोप लग रहे थे कि जब देश धर्मनिरपेक्ष है, यहां हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के लोग रहते हैं, तो फिर विवाह, तलाक और सम्पत्ति बंटवारे के मामलों के लिए कानून सिर्फ हिन्दू के लिए ही क्यों बनाया जा रहा है. उस समय इस बिल के तहत हिन्दू लड़कियों की शादी की उम्र 16 से 18 और लड़कों की उम्र 18 से 21 तय की गई थी.
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नेहरू उस समय तो चुनाव की वजह से कानून नहीं लाए लेकिन सरकार बनने के बाद उन्होंने इस बिल को अलग-अलग टुकड़ों में पास कराने का काम किया. जबकि मुस्लिम समुदाय के लिए कोई कानून बना ही नहीं. उनके लिए Muslim Personal Law ही लागू रहा और ये आज तक लागू है. इसके तहत 15 साल की लड़की शादी योग्य है, ऐसा मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति की वजह से है.
वर्ष 1978 में जब तत्कालीन सरकार ने Child Marriage Act में संशोधन किया था, तब इस Act में जानबूझकर ये स्पष्ट नहीं किया गया कि ये कानून मुस्लिम और ईसाई धर्म के Personal Laws पर भी प्रभावी होगा या नहीं. और इस वजह से आज भी कई मामले कोर्ट में जाते हैं और हर कोर्ट ने इस पर अलग-अलग टिप्पणी की है.
लेकिन जो बड़ी बात आपको समझनी है, वो ये कि महिलाओं के बारे में बातें तो सभी सरकारों ने बड़ी-बड़ी की, लेकिन उनकी समस्याओं और मांगों को हमेशा वोट के चश्मे से ही देखा गया. यानी मुस्लिम तुष्टिकरण की तरह महिला तुष्टिकरण का कार्ड भी खूब चला. इससे आप समझ सकते हैं कि हम देश में Uniform Civil Code की मांग क्यों करते हैं. सोचिए जब देश एक है, संविधान सभी धर्मों को एक मानता है तो फिर कानून अलग-अलग क्यों हैं?
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आज आपको ये भी जानना चाहिए कि विवाह की उम्र को लेकर दुनिया के दूसरे देशों में क्या व्यवस्था है? दुनिया में आज भी 99 देश ऐसे हैं, जहां लड़कियों का विवाह 18 वर्ष से कम उम्र में हो जाता है. दुनिया के दो देश ऐसे भी हैं, जहां विवाह की न्यूनतम उम्र आज तक तय नहीं हो पाई है. ये देश हैं सऊदी अरब और यमन.
इसी तरह लेबनान में 9 साल, सूडान में 11 साल, ईरान में 13 साल, कुवैत में 15 साल और पाकिस्तान में लड़कियों के विवाह की न्यूनतम उम्र केवल 16 साल है. दुनिया में कुल 23 देश ऐसे हैं, जहां लड़कियों का विवाह 18 साल से कम उम्र में हो जाता है. ब्रिटेन में ये कानून है कि वहां असाधारण परिस्थितयों में लड़की की 16 वर्ष की उम्र में भी शादी हो सकती है.
इसके अलावा अमेरिका में कोई एक कानून नहीं है. वहां अधिकतर राज्यों में लड़कियां 18 साल के बाद ही शादी कर सकती हैं. हालांकि वहां भी असाधारण परिस्थितियों में 18 साल से कम उम्र के लड़के और लड़कियों की शादी को मान्यता मिल सकती है.
मोदी सरकार ने पिछले सात वर्षों में देश की महिलाओं के लिए क्रान्तिकारी फैसले लिए हैं. कच्चे चूल्हे पर जो महिलाएं धुएं के बीच खाना पकाती थीं, उन्हें उज्जवला योजना के तहत मुफ्त सिलिंडर दिए गए. तीन तलाक के खिलाफ सरकार कानून लाई है. वर्ष 2018 में देश में पहली बार मुस्लिम महिलाओं को परिवार के किसी पुरुष के बिना भी हज यात्रा पर जाने की अनुमति दी गई.
वर्ष 2019 में पहली बार National Defence Academy यानी NDA में महिलाओं के प्रवेश का फैसला किया गया. वर्ष 2019 में भारतीय सेना में महिलाओं के लिए Permanent Commission की स्थापना की गई. वर्ष 2016 से नौकरीपेशा महिलाओं के लिए Maternity Leave 12 हफ्तों से 26 हफ्ते कर दी गई थी. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान भी इसमें शामिल है.