दिवाली पर जहां देशभर में किया जाता है लक्ष्मी-पूजन, वहीं, इस जगह पर होता श्राद्ध तर्पण
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दिवाली पर जहां देशभर में किया जाता है लक्ष्मी-पूजन, वहीं, इस जगह पर होता श्राद्ध तर्पण

समाज के वरिष्ठजनों के मुताबिक, पितृ अर्पण मीणा समाज में गोवर्धन के दिन क्षेत्रीय मान्यता के मुताबिक किए जाते हैं. 

प्रतीकात्मक तस्वीर

Jaipur: दिवाली (Diwali 2021) पर्व पर जहां लक्ष्मी-पूजन का विशेष महत्व है. वहीं मीणा और गुर्जर समाज (Meena and Gurjar Samaj) के पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण किए जाने की पुरानी परंपरा का निर्वहन कई साल से किया जा रहा है. पितृ अर्पण की ऐतिहासिक परंपरा दीपोत्सव के पर्व पर होती आ रही है. 

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समाज के वरिष्ठजनों के मुताबिक, पितृ अर्पण मीणा समाज में गोवर्धन के दिन क्षेत्रीय मान्यता के मुताबिक किए जाते हैं. समाज के लोग सामूहिक रूप से इकट्ठे होकर पारिवारिक मुखियाओं द्वारा नदी, तालाब, कुंआ, बावड़ियों पर जल अर्पण दूब के पौधे के पत्तों द्वारा दक्षिण दिशा में अपने पूर्वजों, वंशजों, पुरखों को नमन करते हुए उन्हें याद कर करते हैं. 

राष्ट्रीय मीणा महासभा वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजपाल मीणा (Rajpal Meena) ने बताया कि अलग-अलग जगहों पर कई सालों से इस परंपरा का निर्वहन परिवार के सभी सदस्य करते आ रहे हैं. इसके साथ ही युवा पीढ़ी को इस खास परंपरा से रूबरू भी करवा रहे हैं. आदिवासी मीणा समाज में कुलदेवताओं के रूप में भौमिया, भेरुजी आदि को भी भोग लगाया जाता है, जो की पूर्वजों, पुरखों के रूप में पूजे जाते हैं. समाज की पितृ अर्पण की परंपरा श्राद्ध पक्ष के विपरीत बिना किसी पूजा-पाठ के शुक्ल पक्ष में की जाती है. 

निर्दलय विधायक, आदिवासी मीणा समाज अध्यक्ष रामकेश मीणा ने बताया कि खोहगंग में मीणा समाज शासक आलन सिंह लंबे समय तक खोह गंग में शासन रहा. मीणा समाज की एक परम्परा रही है कि अपने पूर्वजों और पुरखों को तर्पण करने के लिए स्थित खोहगंग तलाई में इकट्ठे होकर तर्पण करते थे. तलाई में तर्पण के दौरान शस्त्रवहीन रहते गुप्तचरों द्वारा सूचना पर उन पर हमला कर दिया गया. खोहगंग पर दुश्मन शासक ने कब्जा कर लिया. हजारों सालों से परम्परा यह चली आ रही है. आज के समय में इकट्ठा नहीं होकर अपने-अपने सुविधा के अनुसार तर्पण  किया जाता है. 

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युवा गुर्जर महासभा राजस्थान के प्रदेश महासचिव विक्रम सिंह गुर्जर (Vikram Singh Gurjar) ने बताया कि नदी में पूर्वजों के लिए खीर और पूड़ी छोड़ने के बाद सभी लोग हाथ जोड़कर अपने पूर्वजों से वर्षभर जाने अनजाने में हुए अपराधों के लिए क्षमा मांगते हैं. दिवाली पर गुर्जर समाज जन एक साथ इकट्ठा होकर तर्पण करते हैं. समाजजन घरों से पूजन सामग्री लेकर आते हैं और लोकगीत गाते हुए नदी और तालाब के पास पहुंचते हैं. यहां विशेष प्रकार का पौधा ओजीझाड़ा की बेल लगाई जाती है. 

अखिल भारतीय गुर्जर महासंघ (All India Gujjar Federation) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविशंकर धाभाई ने बताया कि दिवाली पर जहां सभी लोग माता लक्ष्मी का पूजा करते वहीं गुर्जर समाजजन अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं. इसे तर्पण भी कहा जाता है. नदी में पूर्वजों के लिए खीर और पूड़ी छोड़ने के बाद सभी हाथ जोड़कर अपने पूर्वजों से वर्ष भर जाने-अनजाने में हुए गलती के लिए क्षमा मांगते हैं. समाज के लोगों का मानना है कि ऐसा करने से पूर्वजों का तर्पण करने के बाद सभी लोग पड़वा को गाय का पूजन करते हैं. 

 

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