राजस्थान में कोरोना संक्रमितों (Coronavirus) की बढ़ती संख्या के बीच ऑक्सीजन के बाद यदि किसी चीज की सबसे ज्यादा मांग है तो वह है रेमडिसिविर इंजेक्शन.
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Jaipur : राजस्थान में कोरोना संक्रमितों (Coronavirus) की बढ़ती संख्या के बीच ऑक्सीजन के बाद यदि किसी चीज की सबसे ज्यादा मांग है तो वह है रेमडिसिविर इंजेक्शन. क्या हर संक्रमित मरीज को रेमडिसिविर इंजेक्शन (Remdesivir Injection) लगवाना जरूरी है? क्या रेमडिसिविर के बिना कोई कोरोना संक्रमित मरीज सही नहीं हो सकता? क्या रेमडिसिविर इंजेक्शन ही कोरोना संक्रमित मरीजों की जान बचा सकता है? ऐसे कई सवाल हैं, जो कोरोना संक्रमित और उनके परिजनों को इन दिनों परेशान कर रहे हैं. कुछ ऐसे ही सवालों का जवाब जानने के लिए हमने बात की विशेषज्ञ से और उनसे जाने कोरोना के दौरान रेमडिसिविर इंजेक्शन की जरूरत के बारे में. विशेषज्ञों का मानना है कि हर कोरोना संक्रमित मरीज (Covid Latest Update) को रेमडिसिविर इंजेक्शन लगवाने की जरूरत नहीं है.
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-पहले सप्ताह में कोविड कम्वेलेशेन्ट प्लाज्मा वायरल लॉड कम करने में काफी मदद करता है.
-अतः रेमडेसिविर कोविड मैनेजमेन्ट का एक हिस्सा है, जिसकी उपयोगिता पहले 7 दिन में सबसे अधिक है एवं आवश्यकता होने पर इसे 10 दिन तक उपयोग में लिया जा सकता है.
-रेमडेसिविर कोरोना बीमारी की अवधि को कम करता है, पर यह जीवन रक्षक दवाई नहीं है एवं मौत की दर को घटा नहीं सकता.
-यह एक एंटी वायरल ड्रग है और संक्रमण के शुरुआती दिनों में कारगर साबित होता है. संक्रमण अधिक फैलने पर लंग्स खराब होने की स्थिति में इसका इस्तेमाल किया जा सकता है. कोरोना के हर मरीज को इस इंजेक्शन की आवश्यकता नहीं लगती है.
-सामान्य लक्षणों वाले मरीजों को रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं लगाना होता है वे घर पर डी आइसोलेशन और सही देखरेख से ठीक हो सकते हैं, लेकिन वे मरीज जिनमें गंभीर लक्षणों के साथ-साथ ऑक्सीजन लेवल की कमी पाई जाती है उन्हें यह इंजेक्शन देना जरूरी होता है.
-यदि पहले सप्ताह में ऑक्सीजन लेवल कम (90 से 91) होने के साथ-साथ 6 मिनट चलने (6 मिनट वॉक टेस्ट) से सेचुरेशन 4 से 5 प्रतिशत घटता है, तेज बुखार होता है, लंग्स में सीटी स्कोर 8 से अधिक हो, साइटोकाइन मारकर्स बढ़े हुए हों, लिम्फोसाइट व पोलीमोर्फ का अनुपात 3.5 से अधिक हो, इओसिनोफिल 0 प्रतिशत हो, जो कि हाई वायरल इंफेक्शन इंडीकेट करती है, तो रेमडेसिविर देना चाहिए अन्यथा यह जीवन रक्षक दवाई नहीं है.
-दूसरे सप्ताह में स्टीरॉइड्स (जो कि जीवन रक्षक दवाई का कार्य करती है), खून पतला करने की दवाईयां एवं एंटीबायोटिक्स का अधिक उपयोग होता है. अगर मरीज को साइटोकाइन स्टॉर्म है जिसमें कि स्रू6 व ब्त्च् नामक कैमिकल बढ़ जाते हैं, तो उन्हें मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज दी जा सकती है.
-रेमडेसिविर का रोल पहले सप्ताह में वायरल लोड कम करने में है, एसिम्प्टोमेटिक व माइल्ड डिजीज में इसको इस्तेमाल करने की आवश्यकता नहीं है और 10 दिन बाद भी इसकी कोई महत्ता नहीं है. जो मरीज वेन्टीलेटर पर हैं या एक्मो पर हैं, उन्हें रेमडेसिविर की आवश्यकता नहीं होती है.
रेमडेसिविर को आवश्यकता होने पर ही प्रोटोकॉल के तहत प्रयोग करना चाहिए. सभी मरीजों को इसकी आवश्यकता नहीं होती है.
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