शहीद लांस नायक को आतंकियों के खिलाफ वीरता से लड़ने के लिए दो बार सैन्य पदक भी मिल चुका है.
Trending Photos
नई दिल्ली : जम्मू और कश्मीर में आतंकवाद का रास्ता छोड़कर भारतीय सेना में शामिल हुए शहीद लांस नायक नजीर अहमद वानी को इस साल मरणोपरांत अशोक चक्र के लिए चुना गया है. वह पिछले साल नवंबर में शोपियां में आतंकियों से हुई मुठभेड़ में शहीद हुए थे. उस दौरान सुरक्षा बलों ने 6 आतंकियों को मार गिराया था. बता दें कि अशोक चक्र भारत का शांति के समय दिया जाने वाला सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है. शहीद लांसनायक को आतंकियों के खिलाफ वीरता से लड़ने के लिए दो बार सैन्य पदक भी मिल चुका है.
जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए जान गंवाने वाले लांस नायक नजीर अहमद वानी की कहानी दिलचस्प है. नजीर अहमद वानी पहले आतंकवादी थे, लेकिन जब उन्हें इस बात का अहसास हुआ तो उन्होंने देश विरोधी ताकतों से नाता तोड़ दिया. इसके बाद वह भारतीय सेना में शामिल होकर राष्ट्र सेवा में जुट गए.
अधिकारियों के अनुसार 38 वर्षीय वानी कुलगाम के अश्मुजी के रहने वाले थे. वह 25 नवंबर को भीषण मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए थे. शुरू में आतंकी रहे वानी बाद में हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा में लौट आए थे. वह 2004 में सेना में शामिल हुए थे. अधिकारियों ने बताया कि वानी दक्षिण कश्मीर में कई आतंकवाद रोधी अभियानों में शामिल रहे. जिस मुठभेड़ में वह शहीद हुए, उस समय वह 34 राष्ट्रीय रायफल्स का हिस्सा थे. इसके अलावा वह जम्मू और कश्मीर लाइट इंफैंट्री रेजीमेंट में भी रहे थे.
जम्मू-कश्मीर के चेकी अश्मुजी गांव के रहने वाले शहीद लांसनायक नजीर वानी के परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं. नवंबर के आखिर में शोपियां में हुई मुठभेड़ में वह शहीद हुए थे. उनके सुपुर्द-ए-खाक के समय सेना के बड़े अफसर भी शामिल हुए थे. शहीद के पिता इस दौरान अत्यधिक दुखी थे. बेटे को खो देने का दुख उनकी आंखों से आंसू के रूप में बाहर आ रहा था.
एक सैन्य अफसर ने उनके पास पहुंचकर उन्हें गले लगा लिया था. उन्हें सांत्वना दी और ढांढस बंधाया था. उनको गले लगाने की तस्वीर सेना ने अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर की थी, जो काफी भावुक कर रही थी. इसमें सेना ने शहीद के पिता को ढांढस बंधाते हुए लिखा 'आप अकेले नहीं है.' वानी के सुपुर्द-ए-खाक में 500 से 600 ग्रामीण मौजूद थे. वानी को 21 तोपों की सलामी भी दी गई थी.