पाक को कड़ा संदेश देने के लिए सैन्य ऑपरेशन और कूटनीतिक पहल सबसे अहम विकल्प: जनरल बिक्रम सिंह
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पाक को कड़ा संदेश देने के लिए सैन्य ऑपरेशन और कूटनीतिक पहल सबसे अहम विकल्प: जनरल बिक्रम सिंह

पाकिस्तान को कड़ा संदेश देना होगा ताकि वह दोबारा ऐसे दुस्साहस की हिम्मत न करे .

पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह (फोटो साभारः Facebook)

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों पर हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमलों में से एक में सीआरपीएफ के कम से कम 40 जवान शहीद हो गए. पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. आतंकी हमले को लेकर पूरे देश में भावनाओं का ज्वार उबाल पर है और सरकार पर जवाबी कार्रवाई का दबाव भी है. पेश हैं इसी मुद्दे पर पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह से सवाल और उनके जवाबः

प्रश्न : पुलवामा आतंकी हमले पर पूर्व सेना प्रमुख के रूप में पहली प्रतिक्रिया क्या है और अभी वक्त की जरूरत क्या है ? 
उत्तर : यह पिछले दो दशकों से भी अधिक समय में कश्मीर घाटी में सबसे जघन्य आतंकी हमला है . यह आतंकवादियों का, हताशा में किया गया कायराना कृत्य है. फिलहाल एक राष्ट्र के रूप में हमारा एकजुट रहना जरूरी है ताकि इस बर्बर कृत्य का बदला लेने की प्रतिबद्धता पूरी की जा सके . ऐसे में ऑपरेशन बहुत सोच समझकर चलाना पड़ता है, ताकि लक्ष्य भी सधे और अपना नुकसान भी न हो . पाकिस्तान को कड़ा संदेश देना होगा ताकि वह दोबारा ऐसे दुस्साहस की हिम्मत न करे . 

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प्रश्न : पुलवामा हमले का कारण खुफिया विफलता है या मानक परिचालन प्रक्रिया का पालन न होना है ? 
उत्तर : मैं समझता हूं कि हमें विभिन्न एजेंसियों द्वारा की जा रही जांच के पूरा होने का इंतजार करना चाहिए. कई बार पाया गया है कि ऐसी घटनाओं के पीछे कुछ हद तक लापरवाही जिम्मेदार रही है, लेकिन इस समय हमें मीडिया ट्रायल से बचना चाहिए. घाटी में काम के अपने अनुभव के आधार पर मैं कह सकता हूं कि हमें सेना का मनोबल ऊंचा बनाए रखने की दिशा में काम करना चाहिए. सुरक्षा एवं अन्य एजेंसियां खामियां दूर करने के लिये जांच के तथ्यों के आधार पर सुधारात्मक कदम उठायेंगी. इस हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, यह स्पष्ट है. ऐसे में सबसे पहले जम्मू-कश्मीर के जिन इलाकों में हमारी सेना तैनात है, उन इलाकों की समीक्षा करनी चाहिए.

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प्रश्न : देश में आतंकी हमले को लेकर आक्रोश है. ऐसे में सरकार क्या तात्कालिक कार्रवाई कर सकती है ? 
उत्तर : देश के समग्र राजनीतिक नेतृत्व की ओर से प्रदर्शित राजनीतिक इच्छाशक्ति के आधार पर यह कहा जा सकता है कि आतंकवाद को सरकारी नीति के रूप में इस्तेमाल करने के लिए पाकिस्तान को सबक सिखाये जाने की जरूरत है. हमारी रणनीति में यह उद्देश्य हासिल करने की इच्छाशक्ति प्रदर्शित होनी चाहिए. कूटनीतिक स्तर पर, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारी दबाव बनाने के साथ सैन्य ऑपरेशन निश्चित तौर पर इस रणनीति का हिस्सा होंगे. इसमें सीमापार विशिष्ट प्रभावी लक्ष्यों को निशाना बनाना शामिल है. 

पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देने की कई योजनाएं सेना के पास हैं. सरकार जानती है कि कब और कैसे इसका जवाब देना है. सीमापार आतंकी संगठन को निशाना बनाना, उसके ट्रेनिंग कैंप, लॉन्च पैड पर कार्रवाई करना भी विकल्प हैं. यह सरकार को तय करना है कि वह कैसे कार्रवाई करेगी. हो सकता है कार्रवाई तुरंत न हो, क्योंकि पाकिस्तान इस समय चौकन्ना होगा. हमें कार्रवाई के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ सकता है. 

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प्रश्न : पुलवामा हमले को घाटी में आतंकवादियों की बदली रणनीति के रूप में देखा जा रहा है. आप इसे कैसे देखते हैं ? 
उत्तर : इस घटना से साफ है कि आतंकी संगठनों ने रणनीति बदली है . जहां एक तरफ घाटी में कट्टरपंथी विचारों से युवाओं के प्रभावित होने की समस्या उभरी है. वहीं दूसरी तरफ आतंकी घटनाओं में स्थानीय युवकों की संलिप्तता बढ़ी है. घाटी में युवाओं का कट्टरपंथ की ओर रूझान नये चलन के रूप में उभरा है. और यही कारण है कि इस घटना में एक युवक फिदायीन बना. इसका उपाय खोजना होगा. 

प्रश्न : करगिल युद्ध के बाद गठित समिति ने चीफ़ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति की सिफारिश की थी. अब तक इस पर अमल नहीं हुआ.
उत्तर : यह जरूरी है कि सरकार चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ 'सीडीएस' की नियुक्त की सिफारिश पर गंभीरता से अमल करे. तीनों सेनाओं के बीच तारतम्य स्थापित करने और तीनों सेनाओं की संयुक्त कमान की व्यवस्था बनाने के लिये चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की नियुक्ति पूर्व शर्त है. इससे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार को एकीकृत सलाह देने की व्यवस्था भी बन सकेगी.

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