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नई दिल्ली: अब हम आपको देश के उन नायक और नायिकाओं से मिलवाएंगे, जो दिखने में तो बिल्कुल साधारण हैं, लेकिन उनकी सोच असाधारण है. आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने देश के ऐसे तमाम लोगों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया है, जिन्होंने कला, संगीत और दूसरे क्षेत्रों में देश का मान-सम्मान बढ़ाया है.
इन्हीं में से एक थे वाराणसी के 126 साल के स्वामी शिवानंद, जिन्हें आज पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया. जब वो राष्ट्रपति भवन के शानदार रेड कारपेट पर नंगे पैर चलकर आए तो पूरा देश गौरांवित हो गया. पुरस्कार लेने से पहले स्वामी शिवानंद ने प्रधानमंत्री मोदी को दंडवत प्रणाम भी किया. इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भी उनके सामने अपना सिर झुका कर उन्हें धन्यवाद दिया और उनका अभिवादन स्वीकार किया. स्वामी शिवानंद ने 126 साल की उम्र में कुल चार बार दंडवत प्रणाम करके अपनी फिटनेस से सबको चौंका दिया. वो राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के सामने भी घुटनों पर बैठ गए. जिसके बाद राष्ट्रपति ने उन्हें झुककर उठाया और उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया. स्वामी शिवानंद को भारतीय जीवन पद्धति और योग के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया है.
स्वामी शिवानंद की तरह हरियाणा के ओम प्रकाश गांधी की सादगी ने भी सबको आकर्षित किया. ओम प्रकाश गांधी दिखने में जितने साधारण हैं, उनकी उलब्धियां उतनी ही असाधारण हैं. वो पिछले तीन दशकों से महिलाओं की शिक्षा के लिए काम कर रहे हैं और कई स्कूलों और गुरुकुल की स्थापना कर चुके हैं. हालांकि ये विडम्बना है कि हमारे देश के बहुत सारे लोग, पाकिस्तान की सामाजिक कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई को तो जानते हैं, जो शिक्षा से वंचित महिलाओं के हक की बात करती हैं. लेकिन वो ओम प्रकाश गांधी को नहीं जानते, जिन्होंने अपने जीवन के कई वर्ष महिलाओं की शिक्षा को समर्पित कर दिए. आज जब उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया तो पूरा हॉल तालियों के शोर से गूंज रहा था.
पद्म पुरस्कारों की शुरुआत वर्ष 1955 में हुई थी और इनका मकसद था कला, खेल और सामाजिक क्षेत्र में विशिष्ट योगदान देने वाले लोगों का सम्मान करना और उन्हें प्रोत्साहित करना. लेकिन ये दुर्भाग्य ही था कि 1960 के दशक में ये पुरस्कार नेताओं और उनके परिवार के लोगों को खुश करने का एक जरिया बन गए. इसके बाद के वर्षों में भी ये पुरस्कार आम लोगों की पहुंच से दूर रहा. 1970 और 1980 के दशक में ये पुरस्कार या तो दिल्ली में रहने वाले लोगों को मिलता था, या मुम्बई के बड़े-बड़े Celebrities और दूसरे बड़े शहरों के प्रतिष्ठित लोगों को दिया जाता था.
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#DNA: देश के असली नायकों का सम्मान@sudhirchaudhary pic.twitter.com/LnTl8HcxOJ
— Zee News (@ZeeNews) March 21, 2022
उदाहरण के लिए वर्ष 1955 से 2016 के बीच कुल 4 हजार 284 लोगों को पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्मश्री पुरस्कार मिला. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इन 4 हजार लोगों में से 793 लोग ऐसे थे, जो दिल्ली में रहते थे और राजनीतिक रसूख वाले परिवारों के करीबी थे. दिल्ली के बाद इन पुरस्कारों के लिए दूसरी पसन्द महाराष्ट्र के लोग होते थे. क्योंकि इस समय अवधि में महाराष्ट्र के 748 लोगों को पद्म पुरस्कार मिला. लेकिन ऐसे लोगों का कभी नंबर नहीं आया, जो जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए काम करते हैं और इस देश के असली हीरो हैं. आज जिन लोगों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, वो सभी देश के असली नायक हैं. आज हमने इनमें से कुछ कहानियां आपके लिए निकाली हैं, जो आपको प्रेरणा और उम्मीद से भर देंगी.
एक साधारण सा दिखने वाला मनुष्य जब देश के राष्ट्रपति भवन में पूरे राष्ट्र के सामने तालियों की गड़गड़ाहट से सम्मान पाता है तो उसके असाधारण होने का पता चलता है. 126 वर्ष के वाराणसी के शिवानंद बाबा ने ना तो इस सम्मान की कल्पना की थी, ना कभी इसका इंतजार किया था. पद्म सम्मान खुद चलकर उन तक पहुंचा तो उन्होंने भी चार बार दंडवत करके इसे पूरा मान दिया.
स्वामी शिवानंद को भारतीय जीवन पद्धति और योग के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिये पद्मश्री से सम्मानित किया गया. बिना दवा के संतुलित जीवन जीकर भी कैसे निरोगी रहा जा सकता है, आप शिवानंद बाबा को इस विधा को ब्रैंड एंबेसडर भी कह सकते हैं. 8 अगस्त 1896 में जन्मे शिवानंद बाबा के लिये योग ही धर्म है और धर्म ही योग. उनकी दिनचर्या सुबह 3 बजे से शुरू हो जाती है. सुबह उठने के बाद एक घंटा योग और उसके बाद एक घंटा पूजा. सदी होने को आ रही है, शिवानंद बाबा ने ये नियम कभी नहीं तोड़ा.
फिटनेस को लेकर तमाम जतन करने वाले और फूड सप्लीमेंट पर निर्भर रहने वाले लोग शिवानंद बाबा से हेल्थ टिप्स ले सकते हैं. बाबा की डाइट में ना तो फल शामिल हैं ना दूध. भोजन पर सिर्फ उबला लेते हैं, उसमें ना तेल होता है, ना नमक, ना ही शक्कर. 126 की उम्र में शिवानंद बाबा को खाली बैठना भी पसंद नहीं. इनका मानना है कि रुक जाएंगे तो थक जाएंगे. इसलिये पढ़ते रहें, चलते रहें, दौड़ते रहें, कुछ करते रहें.
कर्म के प्रति आस्था हो और निस्वार्थ भाव हो तो पुरस्कार खुद व्यक्ति को चुन लेते हैं. राष्ट्रपति भवन में शिवानंद बाबा समेत जिन हस्तियों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. इसमें कई ऐसे थे जो लाइमलाइट से दूर रहे. इनमें से बहुतों के तो आज से पहले किसी ने नाम भी नहीं सुने होंगे. इन्हीं में एक हैं हरियाणा के प्रोफेसर ओमप्रकाश गांधी.
चेहरा-मोहरा कद-काठी और कपड़े भी साधारण. लेकिन काम असाधारण. 80 वर्ष के ओमप्रकाश गांधी का जीवन 38 वर्षों से सिर्फ बेटियों और महिलाओं की शिक्षा को समर्पित है. सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर जमा पूंजी से लड़कियों के लिये गुरुकुल बनाया तो इसके बाद बेटियों की पढ़ाई को ही जीवन का एकमात्र मिशन बना लिया. अब तक कई स्कूल और गुरुकुल खोल चुके हैं और कई पर काम जारी है.
हौसला हो, कुछ करने का जज्बा हो तो कोई भी कमजोरी आड़े नहीं आती. इसकी मिसाल हैं केरल की केबी राबिया जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. पोलियो के कारण राबिया के खुद के पैरों ने उनका साथ नहीं दिया. लेकिन फिर भी इरादा था कि दूसरों को पैरों पर खड़ा करना है. राबिया ने व्हीलचेयर पर रहते हुए ना सिर्फ अपनी पढ़ाई पूरी की, इसके बाद टीचर भी बनीं. लेकिन संघर्ष को यहीं तक नहीं रोका. केरल के मलप्पुरम में उन्होंने दिव्यांग बच्चों के लिये कई स्कूल खोले. मलप्पुरम में साक्षरता अभियान की कहानी राबिया का जिक्र किये बिना पूरी नहीं हो सकती.
राष्ट्रपति भवन के रेड कार्पेट पर कुछ वर्षों में ये धारणा टूटी है कि सम्मान पाने के लिये लॉबिंग अनिवार्य शर्त है या फिर जिसपर कृपा होगी, वही पुरस्कार का पात्र होगा. पद्मश्री से सम्मानित होने वालों में एक नाम महाराष्ट्र के डॉक्टर हिम्मतराव बावस्कर का भी है. मेट्रो सिटी में रहने वाले नहीं समझ सकते कि बिच्छू और सांप का काटने का खतरा क्या होता है. लेकिन महाड के सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में रहते हुए डॉक्टर बावस्कर ने इस संकट को करीब से देखा, उसके बाद इसी पर शोध करते हुए अचूक इलाज भी ढूंढा. डॉक्टर बावस्कर की रिसर्च को दुनिया से मान्यता मिली है. उनके शोध पर दुनिया भर के मेडिकल जर्नल में शामिल हैं. उनके ट्रीटमेंट को दुनिया के डॉक्टरों ने फॉलो किया है.
राष्टपति भवन में पद्म पुरस्कारों से सम्मानित होने वालों में जहां शिक्षाविद, ब्यूरोक्रेट, समाजसेवी, रंगकर्मी और फिल्म कलाकार शामिल थे, वहीं किसान भी थे. यूपी के सहारनपुर के रहने वाले सेठपाल सिंह को आप किसान कह सकते हैं लेकिन उनका जज्बा और उनका योगदान किसी कृषि वैज्ञानिक से कहीं कम नहीं है. सेठपाल सिंह का खेत एक प्रयोगशाला है. खेती में नए-नए प्रयोग और तकनीक से कैसे तरह तरह की फसल उगाकर मुनाफा कमाया जा सकता है, ये सेठपाल सिंह ने सिर्फ सोचा नहीं बल्कि करके भी दिखाया.
पद्म पुरस्कार पाने वालों की फेहरिस्त में एक नाम देवेंद्र झांझरिया का भी है. झांझरिया पहले पैरालंपिक खिलाड़ी हैं जिन्हें ये सम्मान मिला. साधारण किसान परिवार में जन्मे देवेंद्र झांझरिया ने बचपन में ही एक हादसे में एक हाथ गंवा दिया था. लेकिन इसके बाद भी जीवन में कभी हार नहीं मानी, तो पैरालंपिक में जेवलिन थ्रो में तीन मेडल जीतकर इतिहास रच दिया. इन गुमनाम नायकों ने साबित किया है कि कोशिश करने वालों की हार नहीं होती. अगर आपमें जज्बा है, जुनून है तो फिर सम्मान की, पुरस्कार की, अवॉर्ड की चिंता ना करें. वो खुद आपके पीछे आएंगे, आज नहीं तो कभी न कभी.
अब आने वाले दिनों में इनमें से कई लोगों के ऊपर फिल्में बनेंगी और इन फिल्मों में बॉलीवुड के बड़े बड़े कलाकार पर्दे पर इन लोगों की भूमिका निभाएंगे और हमारे देश के लोग उन्हें ही अपना असली हीरो समझने लगेंगे. लेकिन ये हमारे देश की बहुत बड़ी विडम्बना है कि हम फिल्मी पर्दों पर ऐक्टर्स को शानदार किरदार में देखते हैं तो उन्हें अपना नायक समझ लेते हैं और असली नायक को आम आदमी समझ लेते हैं. इसलिए अपनी सोच बदलिए. हमारे देश के वीर सैनिकों की कहानी देखने के लिए आपको किसी एक्टर के पास जाने की जरूरत नहीं है. आजादी के बाद से अब तक की हमारी जो पीढ़ी बढ़ी हुई है, वो एक्टर्स को ही नायक मानती आई है. लेकिन हम चाहते हैं कि अब आप अपनी अगली पीढ़ी को नायक और एक्टर का फर्क बताइए.
आज कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद को भी पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. पुरस्कार लेने से पहले उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी का हाथ जोड़ कर अभिवादन किया और प्रधानमंत्री मोदी ने भी यही भाव उनके प्रति दिखाया. आज ये तस्वीरें कांग्रेस और गांधी परिवार को शायद पसन्द नहीं आई होंगी. भारत के पहले Chief of Defence Staff जनरल बिपिन रावत को भी मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया है. राष्ट्रपति ने ये पुरस्कार उनकी दोनों बेटियों को दिया.