Janmashtami 2024 : यूपी के इस शहर में भगवान श्रीकृष्‍ण का ससुराल?, जन्‍माष्‍टमी पर रहती है मथुरा-वृंदावन जैसा धूम
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Janmashtami 2024 : यूपी के इस शहर में भगवान श्रीकृष्‍ण का ससुराल?, जन्‍माष्‍टमी पर रहती है मथुरा-वृंदावन जैसा धूम

Krishna Janmashtami 2024 : जन्माष्टमी का त्योहार 26 अगस्त सोमवार को मनाया जाएगा. मान्यता है इस दिन कृष्ण चालीसा का पाठ करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है और भगवान श्री कृष्ण की विशेष कृपा बनी रहती है. 

 

Krishna Janmashtami 2024

Krishna Janmashtami 2024 : इस बार श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का पर्व 26 अगस्‍त को मनाया जाएगा. जन्‍माष्‍टमी पर्व को हिन्‍दू धर्म में खास महत्‍व है. जन्‍माष्‍टमी पर भक्‍त व्रत रखते हैं और भगवान श्रीकृष्‍ण की पूजा अर्चना करते हैं. ऐसे में एक तरफ जहां श्रीकृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी पर मथुरा-वृंदावन में तैयारियां की जा रही हैं. वहीं, यूपी का औरैया भी पीछे नहीं है. औरैया के कुंदनपपुर में खास उत्‍सव मनाया जा रहा है.   

यह है पौराणिक मान्‍यता
पौराणिक मान्‍यता है कि कुंदनपुर में भगवान श्रीकृष्‍ण का ससुराल है. यहां भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मणी के हरण करने के प्रमाण भी मिलते हैं. बताया जाता है कि कुंदनपुर में पांडु नदी पार करके भगवान कृष्‍ण रुक्मणी का हरण कर द्वारका ले गए थे. यहीं पर रुक्‍मणी से विवाह कर अपनी रानी बना लिया था.  

क्षेत्र का विकास नहीं हुआ 
कुदरकोट में अलोप देवी का मंदिर भी है. बताया जाता है कि कुंडिनपुर का नाम कुंदनपुर किया गया. इसके बाद कुदरकोट कर दिया गया. क्षेत्र के लोगों का कहना है कि भगवान श्रीकृष्‍ण का ससुराल होने के बाद भी गांव का विकास नहीं हो रहा है. 

शिशुपाल से कराना चाह रहे थे शादी 
कुंडिनपुर में राजा भीष्‍मक धर्म प्रिय राजा रहते थे. उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम रुक्मणी था. वहीं पांच पुत्र रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली थे. बचपन में रुक्मी की दोस्‍ती शिशुपाल से हो गई. यही वजह रही कि रुक्‍मी ने अपनी बहन रुक्‍मणी का विवाह शिशुपाल से कराना चाह रहे थे. रुक्‍मणी की शादी शिशुपाल से तय कर दी गई. 

रुक्‍मणी ने भगवान श्रीकृष्‍ण को भेजा था संदेश 
मान्‍यता है कि रुक्‍मणी ने दूत भेजकर खुद का हरण करने के लिए भगवान श्रीकृष्‍ण को संदेश भेजवाया. इसके बाद भगवान श्रीकृष्‍ण रुक्‍मणी का हरण करने कुंदनपुर पहुंच गए और अपने साथ द्वारका ले आए. रुक्‍मणी के हरण के बाद देवी गौरी अलोप हो गई. इसके बाद वहां पर अलोप देवी मंदिर की स्‍थापना की गई. 

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