निराश लोगों के लिए मिसाल हैं ये महिला, अकेले दम पर बंजर खेत को बनाया उपजाऊ
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निराश लोगों के लिए मिसाल हैं ये महिला, अकेले दम पर बंजर खेत को बनाया उपजाऊ

लताबेन अपने खेतों में कोई भी रासायनिक खाद नहीं डालती हैं जिसकी वजह से उनके खेतों की सब्जी को लोग वहीं से खरीदकर ले जाते हैं.

लताबेन

सूरत: गुजरात (Gujarat) में सूरत (Surat) के ओलपाड तालुका के समुद्री इलाके के गांव की बात होती है तो समुद्र और बंजर खारी जमीन (Barren Land) याद आती है. बता दें कि इस बंजर खारी जमीन पर खेती करना नामुमकिन है क्योंकि मिट्टी में नमक की मात्रा ज्यादा होती है. लेकिन इस नामुमकिन कार्य को भी मुमकिन करने वाली किसान बेटी लताबेन पटेल हैं. लताबेन पटेल के पास ओलपाड तालुका के मुन्द्रै गांव में 20 बीघा जमीन है. इस जमीन में एक समय ऐसा था जब घास भी उगती नहीं थी तो फिर खेती करने की तो बात ही बहुत दूर थी.

  1. लताबेन की गौशाला में हैं 40 गाय
  2. लताबेन ने 20 बीघा बंजर खेत को बनाया उपजाऊ
  3. लताबेन गौशाला को एग्रो टूरिज्म बनाना चाहती हैं

लेकिन जब लताबेन ने जब पहली बार ये जमीन देखी, तब धरती माता से बस इतना ही कहा, "हे माता मैं लाचार महिला नहीं हूं. मैं किसान की बेटी हूं. मैं यहां खेती करना चाहती हूं. मुझे आशीर्वाद दो." बस इतना कहकर लताबेन ने जमीन से मिट्टी उठाकर अपने कपड़ों पर लगा ली और खेती की शुरुआत कर दी. लताबेन ने लगातार 3 साल तक कड़ी मेहनत की लेकिन कामयाबी नहीं मिली. लोग हंसने लगे, घर में भी झगड़ा होने लगा. सभी लोग लताबेन से खेती छोड़कर दूसरा काम करने के लिए कहने लगे लेकिन लताबेन ने हार नहीं मानी. मुश्किल परिस्थितियों में भी काम करती रहीं.

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एक बार लताबेन खेती पर आयोजित एक शिविर में गईं. जहां उनको बताया गया कि गाय के गोबर और गोमूत्र को खाद की तरह खेत में डालने से जमीन को उपजाऊ बनाया जा सकता है. लेकिन उस समय लताबेन की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी कि वो एक गाय खरीद पाएं. फिर उन्हें राममढ़ी आश्रम से एक गाय का बच्चा यानी बछिया दान में मिली. फिर लताबेन ने मेहनत करके एक बछिया को पाला और आज उनके पास गोशाला में कुल 40 गाय हैं. इन गायों के गोबर और गोमूत्र से खेतों की जमीन भी उपजाऊ हो गई.

आज 8 साल बाद लताबेन के पास ना सिर्फ रोजगार है बल्कि वो गोशाला और खेत के माध्यम से कई लोगों को रोजगार दे रही हैं. लताबेन की गोशाला से हर दिन 150 लीटर दूध सूरत भेजा जाता है. इस दूध का भाव 70 रूपए प्रति लीटर है. लताबेन की गोशाला में गोबर और गोमूत्र मुफ्त मिलता है.

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गौरतलब है कि लताबेन अपने खेतों में कोई भी रासायनिक खाद नहीं डालती हैं जिसकी वजह से उनके खेतों की सब्जी को लोग वहीं से खरीदकर ले जाते हैं. लताबेन को मार्केट में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती है. लताबेन अपने खेत में गेहूं, चना, फूल गोभी, पत्ता गोभी और कई प्रकार की सब्जियां बोती हैं. लताबेन ने खेत में आम के पेड़ भी लगाए हैं.

लताबेन पटेल अपनी गोशाला और फार्म में एग्रो टूरिज्म बनाना चाहती हैं. दरअसल इससे लताबेन गांव की संस्कृति से लोगों को वाकिफ करवाना चाहती हैं. शहर के लोगों को बैलगाड़ी की सवारी करवाना चाहती हैं और गाय माता के चमत्कार से वाकिफ करवाना चाहती हैं. लताबेन का मानना है कि शहर के बच्चे केवल यही जानते हैं कि दूध थैली में आता है लेकिन मैं उन्हें दिखाना चाहती हूं कि गोशाला से घर तक दूध पहुंचने की पूरी प्रक्रिया क्या होती है? इसके अलावा लताबेन दावे के साथ कहती हैं कि वो कैंसर, पैरालिसिस जैसी बीमारियों को दूर करने की दिशा में काम कर रही हैं.

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