ZEE जानकारी: लोकसभा चुनाव से पहले गर्मा रहा है अयोध्या का मुद्दा
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ZEE जानकारी: लोकसभा चुनाव से पहले गर्मा रहा है अयोध्या का मुद्दा

प्रयागराज में आज द्वारका-शारदापीठ और ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती की अगुवाई में धर्मसंसद ने मंदिर निर्माण की तारीख की घोषणा कर दी है .

ZEE जानकारी: लोकसभा चुनाव से पहले गर्मा रहा है अयोध्या का मुद्दा

लोकसभा चुनाव से पहले.. आजकल पूरे देश में अयोध्या वाली ऊर्जा का संचार हो रहा है . कल ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ये अर्जी लगाई है कि अयोध्या में विवादित स्थल के आसपास की करीब 67 एकड़ की अ-विवादित भूमि उनके मालिकों को सौंप दी जाए . और आज प्रयागराज से भी एक बहुत बड़ी खबर आई है . 

प्रयागराज में आज द्वारका-शारदापीठ और ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती की अगुवाई में धर्मसंसद की एक बैठक हुई है. इस धर्म संसद को परम धर्मसंसद कहा जा रहा है . और इस धर्मसंसद ने मंदिर निर्माण की तारीख की घोषणा कर दी है . संतों ने ऐलान किया है कि वो सुप्रीम कोर्ट और प्रधानमंत्री का सम्मान करते हैं . लेकिन 21 फरवरी को सभी साधु संत 4 शिलाएं लेकर अयोध्या ज़रूर जाएंगे . उस दिन सिर्फ 4 संत मिलकर 4 शिलाएं लेकर जाएंगे ताकि धारा-144 का उल्लंघन ना हो.

यहां आपको बता दें कि देश में विश्व हिंदू परिषद भी एक धर्मसंसद करने वाला है. इस धर्मसंसद की बैठक 1 और 2 फरवरी को होने वाली है. उस धर्मसंसद का फैसला, इससे अलग भी हो सकता है. हमारे देश में संसद तो एक है... लेकिन धर्मसंसद अनेक हैं. अलग अलग गुट के साधु संत, अपनी अपनी धर्मसंसद का आयोजन करते हैं और उनमें मंदिर निर्माण को लेकर अलग अलग फैसले लिए जाते हैं.

ऐसा लगता है कि राम मंदिर के मामले में देश के साधु संतों के बीच भी गुटबाजी हो रही है .
शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने आज इशारों में बीजेपी पर निशाना साधा है . 

इन बयानों से आपको समझ में आ गया होगा कि राम मंदिर निर्माण की सबसे बड़ी रुकावट क्या है ? आज कल हमारे देश में साधु संतों के बीच भी बंटवारा हो गया है . राम जन्मभूमि आंदोलन की शुरुआत वर्ष 1984 में विश्व हिंदू परिषद द्वारा की गई थी . बाद में देश भर के साधु संत इसमें जुड़ गए . बीजेपी को इस आंदोलन का ऐतिहासिक लाभ हुआ. इसके बाद देश के राजनीतिक दलों में ज्यादा से ज्यादा साधु संतों को अपने साथ लाने के लिए एक तरह का मुकाबला शुरू हो गया. आज प्रयागराज में शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के नेतृत्व में परम धर्मसंसद हुई है . इस परम धर्मसंसद का राम मंदिर आंदोलन से कोई लेना देना नहीं है . लेकिन चुनाव के ठीक पहले अयोध्या वाली ऊर्जा ने संतों को विशेष रूप से सक्रिय कर दिया है . 

द्वारका-शारदापीठ और ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती पर ये आरोप लगता है कि वो कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार के करीब हैं . UPA की Chair Person सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी स्वरूपानंद सरस्वती से आशीर्वाद प्राप्त करते रहे हैं . 

अब सवाल ये है कि क्या कांग्रेस पार्टी, शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती की परम धर्मसंसद के मंदिर निर्माण वाले फैसले के पक्ष में हैं ? 

कल प्रयागराज में अखिल भारतीय संत समिति भी एक धर्मसंसद करने वाली है . इस धर्मसंसद में RSS के सर-संघचालक मोहन भागवत हिस्सा लेंगे . धर्मसंसद में विश्व हिंदू परिषद आयोजक की भूमिका में है .

कल धर्मसंसद शुरू होने के ठीक पहले प्रयागराज में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सरसंघचालक मोहन भागवत की एक बैठक भी होगी . 

इस धर्मसंसद का महत्व काफी ज्यादा है . क्योंकि इसमें राम जन्मभूमि न्यास भी शामिल होगा. और केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दाखिल करके 67 एकड़ की जो ज़मीन वापस करने का मांग की है... उसमें से 42 एकड़ ज़मीन... राम जन्म भूमि न्यास की है . 

इस बीच निर्मोही अखाड़े ने ये मांग की है कि विवादित भूमि के आसपास मौजूद करीब 67 एकड़ जमीन सिर्फ उन्हें मिलनी चाहिए. क्योंकि अदालत में मुख्य पक्षकार वो हैं. इससे पता चलता है कि इस मुद्दे पर अलग अलग पक्षों के बीच कितना टकराव है.

यहां आपको ये भी समझना चाहिए कि हमारे देश में आधुनिक धर्म संसद की शुरुआत कब हुई?
हमारे देश में पहली धर्मसंसद वर्ष 1982 में हुई थी . ये धर्म संसद राम मंदिर आंदोलन को लेकर बुलाई गई थी . 1982 से लेकर आज तक राम मंदिर के मामले पर करीब 15 धर्मसंसदों का आयोजन हो चुका है . इनमें सबसे महत्वपूर्ण धर्म संसद का आयोजन 5 दिसंबर 1992 को हुआ था . जिसके अगले दिन अयोध्या में विवादित ढांचा गिरा दिया गया था . इस बात पर आज भी विवाद होता है कि 5 दिसंबर 1992 की धर्मसंसद में कौन सा प्रस्ताव पारित हुआ था . 

अब हम आपको ये समझाएंगे कि आखिर ये धर्मसंसद है क्या ? 

हिंदू धर्म से जुड़े मामलों पर विचार विमर्श के लिए.. धर्म संसद बुलाई जाती है. देश भर में हिंदू धर्म से जुड़े कुल 127 संप्रदाय और 13 अखाड़े हैं. 
हिंदू धर्म के 127 संप्रदायों की एक प्रतिनिधि संस्था भी है... जिसका नाम है... अखिल भारतीय संत समिति . सभी 127 हिंदू संप्रदायों के आचार्य इस समिति के सदस्य होते हैं . इस समिति में कुल 3 हजार सदस्य होते हैं और ये सभी मिलकर एक अध्यक्ष का चुनाव करते हैं . इसे अखिल भारतीय संत समिति का अध्यक्ष चुना जाता है . इसमें 40 सदस्यीय उच्चाधिकार समिति का भी चुनाव होता है . आम बोलचाल की भाषा में आप इसे संतों की कैबिनेट समिति भी कह सकते हैं . ज्यादातर महत्वपूर्ण फैसले उच्चाधिकार समिति ही लेती है . यही समिति धर्म संसद की बैठक बुलाती है . धर्मसंसद में हिंदू धर्म से जुड़े मामलों पर विचार विमर्श करके सर्वसम्मति से फैसला लिया जाता है . और जिन मामलों पर सहमति बनती हैं उन पर प्रस्ताव पारित किया जाता है . 

ये आधुनिक युग की धर्मसंसद है जो राम मंदिर के निर्माण के लिए संघर्ष कर रही है . लेकिन अयोध्या में राम मंदिर के लिए संघर्ष का इतिहास करीब 500 वर्ष पुराना है . 

आज से 500 वर्ष पहले हम लोगों में से कोई भी मौजूद नहीं था . जो इतिहासकार उस वक्त मौजूद थे . उनकी किताबों में भारत पर मुगल बादशाह बाबर के आक्रमण का ज़िक्र मिलता है . लेकिन क्या बाबर ने ही राम मंदिर को तोड़कर विवादित ढांचे का निर्माण करवाया ? इस सवाल का ठीक-ठीक जवाब किसी के पास नहीं है . 

भारत के इतिहास के तीन महत्वपूर्ण स्रोत हैं- 

पहला... लिखित स्रोत 
दूसरा... ऐतिहासिक प्रमाण और शोध
और तीसरा... मौखिक स्रोत

लिखित स्रोत में उन इतिहासकारों के लेख हैं... जिन्होंने बादशाहों को अपनी आंखों के सामने फैसले लेते हुए देखा था . 

सम्राट, सुल्तान और बादशाह.. सिक्कों का निर्माण करते थे . शिलालेख लिखवाते थे . और लिखित आदेश भी जारी करते थे . इस तरह के दस्तावेजों को ऐतिहासिक प्रमाण भी कहा जाता है . जिस पर शोध होते हैं .

लेकिन भारत के इतिहास का एक और महत्वपूर्ण स्रोत भी है. इसे मौखिक स्रोत कहा जाता है . पीढ़ी दर पीढी... जो इतिहास हम... अपने पूर्वजों से सुनते हैं... उसे मौखिक इतिहास या लोकगाथाएं कहा जाता है . इसे पूरी तरह सच तो नहीं माना जा सकता. लेकिन इसे भी महत्व दिया जाता है. 

अयोध्या में राम मंदिर को तोड़े जाने का एक मौखिक इतिहास मौजूद है . आज भी वो गांव मौजूद हैं . जहां के लोगों ने बाबर की सेनाओं से लड़ाई लड़ी थी . विवादित ढांचे के आसपास.. पूरे इलाके में बाबर के सेनापति मीर बांकी द्वारा अयोध्या पर हमला करने की लोकगाथाएं आज भी लोगों की जुबान पर हैं . 

वो लोग.. जिनके पूर्वजों ने मुगल सैनिकों से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की . उन लोगों के वंशज आज भी अपने वीर पूर्वजों को याद करते हैं . इस मौखिक इतिहास को देश के मान्यता प्राप्त इतिहासकारों ने पूरी तरह नज़र अंदाज़ कर दिया . 

देश के मुगल प्रेमी इतिहासकारों ने इसे मौखिक इतिहास कहकर खारिज कर दिया . लेकिन इन मुगल प्रेमी इतिहासकारों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि अमीर खुसरो और जियाउद्दीन बरनी जैसे इतिहासकारों ने सैकड़ों वर्षों का इतिहास कैसे लिख दिया ? क्या उनकी उम्र सैकड़ों वर्ष थी . इन इतिहाकारों ने भी अपने ज़माने में मौजूद बुजुर्ग लोगों से बात करके ही इतिहास लिखा है . 

ब्रिटिश इतिहासकार कनिंघम ने लखनऊ गज़ेटियर नामक दस्तावेज़ में लिखा था कि 1 लाख 74 हज़ार हिंदुओं की लाशें गिर जाने के बाद ही बाबर का सेनापति मीर बांकी मंदिर पर कब्ज़ा कर सका.

हमने इसी तथ्य के आधार पर अपना शोध शुरू किया . हम ये जानना चाहते थे कि वो लोग कौन थे जिन्होंने मंदिर को बचाने के लिए लड़ाई लड़ी . Zee News की Team ने अयोध्या के विवादित स्थल के आसपास मौजूद सैकड़ों गांवों का दौरा करके अयोध्या के इतिहास को समझने की कोशिश की है . 

इस दौरान हमें अयोध्या में बाबर की सेनाओं और स्थानीय लोगों के बीच हुए संघर्ष का पूरा इतिहास मिला है . आज हम पूरे देश को.. इस इतिहास से परिचित करवाना चाहते हैं . 

वर्ष 1528-1530 तक बाबर के जीवन काल में ही मंदिर को वापस पाने के लिए अयोध्या के स्थानीय लोगों और राजाओं ने 4 बार बाबर की सेना से युद्ध किया . 

अयोध्या में विवादित भूमि से करीब 14 किलोमीटर दू एक गांव मौजूद है...
जिसका नाम है... सालिक पंडित पुरवा गांव . 

आज से 491 वर्ष पहले इसी गांव के निवासी पंडित देवीदीन पाण्डेय ने मंदिर को बचाने के लिए अवध के क्षेत्र में आने वाली एक रियासत... भीटी के राजा महताब सिंह से मदद मांगी थी . भीटी रियासत के राजा महताब सिंह, देवीदीन पाण्डेय और इस इलाके के क्षत्रियों ने मिलकर... मीर बांकी की सेना के साथ करीब 2 हफ्ते तक युद्ध किया था . 

इस लड़ाई में देवीदीन पाण्डेय ने 700 से ज्यादा मुगल सैनिकों का संहार किया था . 

युद्ध के दौरान सिर फट जाने के बाद भी सिर पर पट्टी बांधकर देवीदीन पांडे, मुगल सैनिकों से लड़ते रहे . उनकी वीरगति के बाद मीर बांकी ने मंदिर पर कब्जा कर लिया था . 

हमें लगता है कि अयोध्या में राम मंदिर मामले से जुड़े इन तथ्यों पर इतिहासकारों को शोध करना चाहिए . बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि अयोध्या में राम मंदिर को दोबारा प्राप्त करने के लिए सिखों के गुरु गोविंद सिंह जी ने भी लड़ाई लड़ी थी . आज भी अयोध्या में एक गुरुद्वारा मौजूद है जहां पर इसके प्रमाण मिलते हैं . 
आज आप ये देखना चाहिए कि अयोध्या के स्थानीय लोगों ने कैसे बाबर की सेना से जंग लडी थी. 

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