ZEE जानकारी: लोकसभा चुनाव प्रचार में गिरता जा रहा है नेताओं की भाषा का स्तर
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ZEE जानकारी: लोकसभा चुनाव प्रचार में गिरता जा रहा है नेताओं की भाषा का स्तर

इस बार के लोकसभा चुनाव में प्रचार का स्तर इतना गिर गया है, कि हमारे नेता, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए भी अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं. 

ZEE जानकारी: लोकसभा चुनाव प्रचार में गिरता जा रहा है नेताओं की भाषा का स्तर

आज सबसे पहले हम आपको ये बताएंगे कि इस बार के चुनाव में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के लिए किन शब्दों का प्रयोग हो रहा है. जैसे-जैसे चुनाव का दबाव बढ़ता जा रहा है, वैसे वैसे हमारे देश के नेताओं की भाषा का स्तर गिरता जा रहा है.

इस बार के लोकसभा चुनाव में प्रचार का स्तर इतना गिर गया है, कि हमारे नेता, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए भी अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं. और इन संवैधानिक पदों की गरिमा का ख्याल किसी को नहीं है. इसलिए आज हम सबसे पहले देश के उन नेताओं की बात करेंगे, जिन्होंने चुनाव प्रचार करते हुए भाषा, शालीनता और मर्यादाओं की सारी सीमाएं लांघ दी हैं. 

सबसे पहले कांग्रेस पार्टी के नेता और पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की बात करते हैं. पिछले कुछ दिनों से वो जिस प्रकार की भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसे सुनकर ऐसा बिल्कुल नहीं लगता, कि कोई नेता जनता के साथ संवाद कर रहा है. बल्कि उनकी भाषा सुनकर ऐसा लगता है, जैसे कोई बाहुबली... लोगों को धमका रहा है. इस बार ऐसा लग रहा है, कि सिद्धू के भाषणों की Script, भारत में तैयार नहीं की गई है. बल्कि उसे पाकिस्तान से Import किया गया है. और इस Script में 'तू-तड़ाक' वाली असभ्य भाषा का जमकर प्रयोग हुआ है. 

सच तो ये है, कि हमारे देश की राजनीति का स्तर इतना गिर चुका है, कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के नेता, सार्वजनिक जीवन में रहते हुए, सार्वजनिक स्थान पर देश के प्रधानमंत्री को 'तू' कहकर संबोधित करते हैं. ऐसे नेता ये बात भूल जाते हैं, कि वो किसी व्यक्ति विशेष पर हमला नहीं कर रहे. बल्कि वो उस संवैधानिक पद का अपमान कर रहे हैं, जिसपर बैठने वाले व्यक्ति को देश की जनता ने चुना है. यानी आपने चुना है. इसलिए आज आपको ये तय करना ही होगा, कि क्या आप इस भाषा से सहमत हैं ? 

अगर आप पिछले कुछ वर्षों में नेताओं के आपत्तिजनक बयानों और उन पर राजनीतिक दलों के रुख़ को देखेंगे, तो समझ जाएंगे, कि अब हमारे देश में 'असभ्य भाषा' को अघोषित रूप से स्वीकार कर लिया गया है. नेता किसी भी पार्टी के हों, गाली देकर या अभद्र टिप्पणी करने के बाद माफ़ी मांग लेते हैं. पार्टी के साथी नेता, गाली देने वाले नेता की बात को उसका निजी बयान बताकर मामले से पल्ला झाड़ लेते हैं. किसी ख़ास मजबूरी की वजह से उन पर कार्रवाई नहीं की जाती. और चुनाव का समय उन्हीं मजबूरियों में से एक है. ऐसे नेताओं को चुनाव तो लड़ना है, लेकिन मर्यादा में रहना, उन्हें मंज़ूर नहीं है. .आज प्रधानमंत्री मोदी ने ऐसी सोच रखने वालों को सभ्य और लोकतांत्रिक भाषा में जवाब दिया है.

इस बीच आज राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी एक विवादित बयान दिया है. उनके मुताबिक, देश के मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को सिर्फ इसलिए राष्ट्रपति बनाया गया, क्योंकि बीजेपी, गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान जातीय समीकरण अपने पक्ष में करना चाहती थी. यानी एक ख़ास जाति का वोट पाने के लिए उन्हें देश का राष्ट्रपति बनाया गया. लेकिन ऐसा कहते वक्त वो ये भूल गए, कि वो देश के सर्वोच्च पद पर बैठे एक सम्मानित व्यक्ति पर अपमानजनक टिप्पणी कर रहे हैं.

इस बयान के बाद अशोक गहलोत ने Twitter पर अपनी सफाई दी. उन्होंने कहा, कि मीडिया में उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया. और उनके दिल में राष्ट्रपति पद के लिए और रामनाथ कोविंद के लिए बहुत इज्ज़त है. 

कुल मिलाकर नेताओं के बयान सुनकर ऐसा लगता है कि हमारे देश में धर्मनिरपेक्षता की आड़ में धर्म और जाति की राजनीति कभी खत्म नहीं होने वाली. भारत में राजनीतिक दल.. अक्सर धर्म और जाति के आधार पर ही टिकट बांटते हैं. यहां उम्मीदवार को टिकट उसकी योग्यता के आधार पर नहीं दिया जाता है... बल्कि टिकट इस आधार पर दिया जाता है कि उम्मीदवार के क्षेत्र के जातीय समीकरण क्या हैं? अगर उस क्षेत्र में मुसलमान ज्यादा हैं तो मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट मिलेगा, अगर सवर्ण ज्यादा हैं तो सवर्ण उम्मीदवार, अगर पिछड़ी जातियों की संख्या ज्यादा है, तो पिछड़ी जातियों का उम्मीदवार... कुल मिलाकर देश की राजनीतिक पार्टियों में टिकट इसी आधार पर बांटे जाते हैं. और इसी वजह से हमारे देश में वोट बैंक जैसे शब्दों का जन्म हुआ. 

आपने अक्सर ये भी देखा होगा कि पार्टियों के टिकट बंटवारे को मीडिया भी जाति और धर्म के एंगल से ही रिपोर्ट करता है. एक तरह से मीडिया भी धर्म और जाति पर आधारित संदेश को आगे बढ़ा देता है. कोई नई सरकार बनती है तो मीडिया मंत्रिमंडल के गठन की सूचना इस रिसर्च के साथ देता है कि मंत्रिमंडल में कितने दलित मंत्री हैं, कितने मुस्लिम मंत्री हैं और कितने ब्राह्मण हैं और कितने पिछड़ी जातियों के हैं.

कुल मिलाकर समस्या ये है कि राजनीतिक दलों ने तुष्टीकरण की राजनीति की है.. और लोगों को धर्म और जातियों में बांटकर.. कुछ विशेष वर्गों को फायदा पहुंचाने का फॉर्मूला इजाद किया है. राजनीतिक दल अपनी इस राजनीति को लेकर बहुत गर्व महसूस करते हैं.. और सोशल मीडिया और राजनीति के पंडित इसे सोशल इंजीनियरिंग कहते हैं.. लेकिन असलियत में ये पूर्वाग्रह से भरी हुई मौकापरस्त राजनीति है.. जिसकी आधुनिक भारत में कोई जगह नहीं होनी चाहिए. और अगर हम इस स्थिति को नहीं बदल पाए. तो हमें भारत को एक धर्म-निरपेक्ष देश कहना बंद कर देना चाहिए.

आज हमें अकबर और बीरबल के एक पुराने क़िस्से की भी याद आ रही है. एक बार, एक बहुत बड़ा विद्वान अकबर के दरबार में पहुंचा. उसे बहुत सारी भाषाएं आती थीं. उसने चुनौती रखी, कि अकबर के दरबार में कोई बताए कि उसकी मातृभाषा क्या है ? तब किसी को कुछ नहीं सूझा. सब चुप हो गये.. इस पर बीरबल ने कहा कि वो अगली सुबह इसका जवाब देंगे. इसके बाद ठिठुरने वाली ठंड की रात में बीरबल ने सोते समय उस विद्वान पर ठंडा पानी फेंक दिया. और वो विद्वान उठ कर अपनी मातृभाषा में गालियां बकने लगा. इस तरह विद्वान को उसकी चुनौती का जवाब मिल गया. 

कहने का अर्थ ये है, कि खीझ और ग़ुस्से में, आदमी अपनी सारी विद्वत्ता भूल कर, अपनी मातृभाषा बोलने लगता है. हमारे देश के नेताओं का हाल इस वक्त बिल्कुल ऐसा ही है.

वैसे नवजोत सिंह सिद्धू और पाकिस्तान का बहुत पुराना याराना है. सिद्धू 20 करोड़ की आबादी वाले पाकिस्तान के 'Poster Boy' और इमरान ख़ान के प्रिय मित्र हैं. लोकसभा चुनाव भले ही भारत में हो रहे हों. लेकिन, सिद्धू जैसे नेताओं और उनके भाषणों का इस्तेमाल करके पाकिस्तान सीधे-सीधे भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भी दखल दे रहा है. 

इसका एक बड़ा उदाहरण आपको Radio Pakistan के Twitter Handle पर दिखाई देगा. जहां नवजोत सिंह सिद्धू की एक तस्वीर लगाई गई है. और उस तस्वीर के नीचे उनके द्वारा दिए गए एक बयान को एजेंडे के तहत प्रचारित किया गया है. Radio Pakistan ने लिखा है....Indian Politician Urges Muslim Voters Of Lok Sabha Constituency In Bihar To Vote En bloc And Defeat PM Modi...

कल ही हमने आपको बताया था, कि कैसे कांग्रेस के नेता और पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने बिहार के कटिहार में मुसलमानों से अपील की थी. कि वो एक साथ इकट्ठे होकर वोट डालें और अपना वोट बंटने ना दें. उन्होंने सीधे धर्म के आधार पर मुसलमानों से वोट देने की अपील की थी. और पाकिस्तान ने उनकी इस अपील को हाथों-हाथ ले लिया. 

पाकिस्तान के संदर्भ में आप Radio Pakistan के Tweet को सिद्धू को दिया गया Cover Fire भी कह सकते हैं. आपने ध्यान दिया होगा, जब भी पाकिस्तान अपने यहां पाले गए आतंकवादियों की घुसपैठ भारत में कराता है, तो पाकिस्तान की सेना उन आतंकवादियों को Cover Fire देती है. यानी भारी गोलाबारी के बीच आतंकवादी बड़े आराम से भारत की सीमा में दाखिल हो जाते हैं. 

ठीक उसी तरह सिद्धू के बयान का इस्तेमाल करके पाकिस्तान ने उन्हें भारत विरोधी Cover Fire दी है. ताकि नवजोत सिंह सिद्धू ऐसे ही भड़काऊ बयान देते रहें. और पाकिस्तान उनका इस्तेमाल करे. सोशल मीडिया हो, रेडियो हो, या टीवी, पाकिस्तान... संचार के हर माध्यम के ज़रिए सिद्धू का इस्तेमाल कर रहा है.

वैसे ये वही नवजोत सिंह सिद्धू हैं, जिन्होंने पिछले वर्ष राजस्थान के अलवर ज़िले में एक चुनावी रैली की थी.और उस वक्त उनकी चुनावी सभा में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए गए थे. सिद्धू की चुनावी सभा में लगे इन नारों को पाकिस्तान ने अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया था. और इस बार भी बिल्कुल वैसा ही हो रहा है.

आपने गौर किया होगा कि जब भारत में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगते हैं तो तालियां पाकिस्तान में बजती हैं . जो लोग भारत में भारत के टुकड़े टुकड़े करने के नारे लगाते हैं.. उन्हें समर्थन, पाकिस्तान से मिलता है . ये भारत में मौजूद टुकड़े-टुकड़े गैंग और पाकिस्तान के बीच की एक जुगलबंदी है जो आज से नहीं पिछले 70 वर्षों से लगातार जारी है . 

आज हम इस गुप्त गठबंधन को Expose करना चाहते हैं. क्योंकि ये मामला राष्ट्रीय सुरक्षा का है . आज हमारे पास एक किताब है... इस किताब का नाम है... 'बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में भारत का योगदान' . इस किताब के लेखक हैं... सलाम आज़ाद . सलाम आज़ाद, बांग्लादेश के एक पत्रकार, लेखक और विद्वान हैं . 

ये किताब उन्होंने बांग्लादेश को आज़ादी दिलाने के लिए भारत को धन्यवाद देते हुए समर्पित की है . हमने इस किताब का अध्ययन किया है . 

वर्ष 1971 में जब पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान यानी आज का बांग्लादेश... इन दोनों के बीच तनाव चल रहा था . तब सलाम आज़ाद ने भारत का दौरा किया था . सलाम आज़ाद ने अपने अऩुभवों को इस किताब में दर्ज किया है . 

उस दौर में सलाम आज़ाद इस बात को लेकर बहुत निराश थे कि जब पश्चिमी पाकिस्तान की सेना, पूर्वी पाकिस्तान के मुसलमानों पर अत्याचार कर रही थी, तब भारत के मुसलमानों का एक वर्ग बांग्लादेश का साथ ना देकर पाकिस्तान का साथ दे रहा था . 

इस किताब के पेज नंबर 177 पर लिखे सलाम आज़ाद के विचार आज हम पूरे देश के सामने रखना चाहते हैं .

सलाम आज़ाद ने 1970 के दशक की घटनाओं पर ये टिप्पणी की है . लेकिन आज भी हम देखते हैं कि जब किसी खेल में पाकिस्तान की विजय होती है तो भारत के कुछ इलाकों में कुछ लोग जश्न मनाते हैं, पटाखें जलाते हैं और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हैं . पाकिस्तान, एक आतंकवादी देश है और वो भारत में होने वाली ऐसी घटनाओं से बहुत खुश होता है . 

आपने देखा होगा हम अक्सर इतिहास में हुई घटनाओं के बारे में आपको बताते हैं . इसके पीछे हमारा मकसद बहुत साफ है . एक आम इंसान, किसी घटना को वर्तमान में घटित हुई एक घटना के रूप में देखता है . लेकिन वो सभी लोग जो इतिहास, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र और धर्म शास्त्रों के विद्वान हैं... वो हर घटना को एक व्यापक नज़रिए के साथ देख पाते हैं . 

और एक बात सबको याद रखनी चाहिए. इतिहास दुनिया की सबसे बड़ी अदालत है . क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाता है . और फिर वक्त अपने आप इस बात की समीक्षा करता है कि फैसला सही था या फिर गलत ? इसीलिए हम आपसे हमेशा कहते हैं कि किसी विषय पर टिप्पणी करने से पहले आपको इतिहास का अध्ययन ज़रूर करना चाहिए क्योंकि इतिहास हमेशा आपको सबक देता है . इतिहास की घटनाएं और उनके प्रभाव आपको ये समझाते हैं कि भविष्य में क्या होने वाला है ? और भारत के लिए कौन सा फैसला सही है ?

जब सच सामने आता है तो झूठ घबरा जाता है और आज़ादी, आज़ादी के नारे लगाने लगता है. JNU के वातानुकूलित वामपंथी माहौल में पाकिस्तान जिंदाबाद और आज़ादी के नारे लगाना बहुत आसान होता है . लेकिन जब 71 साल से आज़ाद भारत में आज़ादी मांगने वाले लोग, देश के गांव, कस्बों और मोहल्लों में जाते हैं और जनता सवाल पूछती है तो वहां जवाब देना बहुत मुश्किल होता है. और तब ये लोग कहते हैं कि आप बीजेपी के हो क्या ?

बिहार की बेगुसराय लोकसभा सीट से लेफ्ट के उम्मीदवार कन्हैया कुमार से कल उनके ही इलाके में कुछ लोगों ने ये सवाल पूछ लिया कि वो कौन सी आज़ादी चाहते हैं ? क्या वर्ष 1947 में गरीबों को आज़ादी नहीं मिली थी ? 

अक्सर ये देखा गया है कि नेता.. जनता के मन की बातों को पढ़ नहीं पाते और उनकी गणनाएं गलत साबित हो जाती हैं. ऐसे नेताओं को लगता है कि आज़ादी-आज़ादी के नारे और भारत को टुकड़ों में तोड़ देने वाली भाषा जनता को बहुत अच्छी लगती है . लेकिन जैसे ही ये लोग ज़मीन पर भारत के आम लोगों के बीच जाते हैं... तो इन्हें भारी विरोध झेलना पड़ता है . और जब जनता इनसे सवाल पूछती है तो इनके पास सिर्फ एक ही जवाब होता है... कि बीजेपी के हो क्या? 

आपने गौर किया होगा जब विरोध करने वाले व्यक्ति ने ये कहा कि भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाल्लाह... इंशाल्लह के नारे लगाने से वोट नहीं मिलेगा . तब कन्हैया कुमार ने जवाब देने की बजाय उल्टे सवाल पूछा कि बीजेपी के हो क्या ? 

आजकल हमारे देश में यही हो रहा है जब कोई कहता है कि देश को एक करना है तो जवाब मिलता है कि बीजेपी के हो क्या ? 

जब कोई ये कहता है कि कश्मीर भारत का अंग है तो जवाब मिलता है कि बीजेपी के हो क्या ? 

जब कोई ये कहता है कि देश के टुकड़े-टुकड़े नहीं होने देंगे, तो जवाब मिलता है कि बीजेपी के हो क्या ? 

क्या देश और राष्ट्र से जुड़ी बात करने वाला हर व्यक्ति किसी पार्टी विशेष से जुड़ा हुआ है ? क्या कोई व्यक्ति भारत की सुरक्षा, एकता और अखंडता की बात इसलिए करता है क्योंकि वो किसी पार्टी से जुड़ा हुआ है ? संविधान कहता है कि देश की एकता और अखंडता की सुरक्षा हर नागरिक की ज़िम्मेदारी है तो इसमें किसी पार्टी की बात कहां से आ गई ? 

लेकिन कन्हैया कुमार के पास इन सवालों का कोई जवाब नहीं था इसलिए उन्होंने सिर्फ ये बोलकर मामले को रफा दफा कर दिया कि क्या बीजेपी के हो ?

आपको याद होगा... वर्ष 2016 में जब JNU के अंदर देशद्रोही नारे लगाए गए. तब Zee News ने इस खबर को सबसे पहले... प्रमुखता के साथ दिखाया था. Zee News के Video को एजेंडे के तहत Doctored बताया गया, ज़ी न्यूज़ के खिलाफ दुष्प्रचार किया गया.. लेकिन जांच में हमारा Video सही पाया गया . 

उस वक्त जब JNU में टुकड़े-टुकड़े गैंग ने भारत की बर्बादी तक जंग करने के नारे लगाए थे. तब भारत के कुछ बुद्धिजीवी और नेता, इस गैंग के समर्थन में खड़े हो गए थे .

आज देश के उन बुद्धिजीवियों को भी ये देखना चाहिए कि भारत में आज भी ऐसे लोग हैं जो देशद्रोहियों की मनमानी नहीं चलने देंगे .

बेगुसराय के एक गांव में आम लोगों ने ही कन्हैया कुमार के खिलाफ कल खूब नारेबाजी की . लोगों ने कन्हैया कुमार वापस जाओ और मुर्दाबाद के नारे भी लगाए. 

देशद्रोही नारेबाज़ी की घटनाओँ के बाद देश भर में कन्हैया कुमार की खूब मार्केटिंग की गई और अब वो बेगुसराय लोकसभा सीट का सांसद बनने का सपना देख रहे हैं. लेकिन यहां जीत का रास्ता आसान नहीं है . 

एक ज़माना था जब लोग बेगुसराय को Mini Moscow कहते थे. यहां के गरीब लोग कम्यूनिस्ट पार्टी को वोट देते थे . लेकिन RJD के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने यहां के सारे गरीब वोट, कम्यूनिस्ट पार्टी से छीन लिए . कम्यूनिस्ट पार्टी अब यहां उतनी मजबूत नहीं है . फिर भी यहां कम्यूनिस्ट पार्टी को वोट देने वालों का एक वर्ग आज भी मौजूद है . 

पुराने ज़माने में कम्यूनिस्ट पार्टी के लोग प्रचार के लिए जनता से ही चंदा लेकर चुनाव लड़ते थे . लेकिन आज कम्यूनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार चुनाव में गाड़ियों के काफिले के साथ चलते हैं . और चुनाव प्रचार पर ज़बरदस्त खर्च किया जाता है . ये तरीका अपने आप में वामपंथी विचारधारा के आदर्शों के खिलाफ है .

अक्सर ये देखा गया है कि नेता.. जनता के मन की बातों को पढ़ नहीं पाते और उनकी गणनाएं गलत साबित हो जाती हैं. ऐसे नेताओं को लगता है कि आज़ादी-आज़ादी के नारे और भारत को टुकड़ों में तोड़ देने वाली भाषा जनता को बहुत अच्छी लगती है . लेकिन जैसे ही ये लोग ज़मीन पर भारत के आम लोगों के बीच जाते हैं... तो इन्हें भारी विरोध झेलना पड़ता है . और जब जनता इनसे सवाल पूछती है तो इनके पास सिर्फ एक ही जवाब होता है... कि बीजेपी के हो क्या? 

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