ZEE जानकारी: लोकसभा चुनाव में क्याें अहम हो गया है ओडिशा
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ZEE जानकारी: लोकसभा चुनाव में क्याें अहम हो गया है ओडिशा

बीजेपी इस बात को बहुत अच्छी तरह जानती है कि उत्तर भारत में अगर उसे कुछ सीटों का नुक़सान होता है...तो उसकी भरपाई वो ओडिशा, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर भारत की लोकसभा सीटों से कर सकती है. 

ZEE जानकारी: लोकसभा चुनाव में क्याें अहम हो गया है ओडिशा

ओडिशा पर पूरे देश की नज़र.. इसलिए है.. क्योंकि ये राज्य लोकसभा चुनाव में वो भूमिका अदा कर सकता है...जो एक फुटबॉल टीम में जोश से भरा रिज़र्व खिलाड़ी करता है. ये रिज़र्व खिलाड़ी अपने खेल से थकी हुई विरोधी टीम को हैरान कर सकता है.

आज भुवनेश्वर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रोड शो के ज़रिये ओडिशा के इसी रिज़र्व खिलाड़ी को जगाने की कोशिश की है. बीजेपी इस बात को बहुत अच्छी तरह जानती है कि उत्तर भारत में अगर उसे कुछ सीटों का नुक़सान होता है...तो उसकी भरपाई वो ओडिशा, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर भारत की लोकसभा सीटों से कर सकती है. 

बीजेपी पूर्वोत्तर राज्यों में बड़ी सफलता की उम्मीद जगा रही है . हालांकि NRC यानी National Register of Citizens को लेकर पूर्वोत्तर भारत और....ख़ासतौर पर 14 सीटों वाले असम में बीजेपी का विरोध भी हुआ है.

42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में बीजेपी का इस बार 20 से ज़्यादा सीटें जीतने का लक्ष्य है...जबकि पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ़ 2 सीटें जीत पाई थी. ओडिशा की 21 सीटों में से बीजेपी ने कम से कम 10 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. यानी पूर्वोत्तर भारत, पश्चिम बंगाल और ओडिशा को मिलाकर बीजेपी ने क़रीब 50 सीट जीतने के लिये पूरा ज़ोर लगा दिया है . ताकि अगर कोई नुकसान होता है तो वो इसकी भरपाई इन 50 सीटों से कर सके.

इसलिये इस बार ओडिशा एक किंगमेकर राज्य बन सकता है... 2014 में दिल्ली में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के बाद बीजेपी ओडिशा में बराबर दस्तक दे रही है. ओडिशा में इस बार लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ हो रहे हैं. और बीजेपी को इस बार ओडिशा में त्रिपुरा वाली उम्मीदें नज़र आ रही है. 

पिछले साल त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव जीतकर बीजेपी ने सबको हैरान कर दिया था. बीजेपी गठबंधन ने त्रिपुरा की 60 विधानसभा सीटों में 44 सीटें जीतकर क़रीब ढाई दशक पुरानी लेफ़्ट की सत्ता को उखाड़ फेंका था.

आज ओडिशा में भी बीजेपी इसी रणनीति के साथ चुनाव लड़ रही है. बीजेपी के सामने BJD यानी बीजू जनता दल की दो दशक पुरानी सरकार है...जिसका नेतृत्व 72 साल के नवीन पटनायक कर रहे हैं.

ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटें हैं, जबकि विधानसभा की 147 सीटें हैं. 2014 में BJD ने 21 में से 20 लोकसभा सीटें जीती थीं. जबकि एक सीट बीजेपी को मिली थी.

विधानसभा चुनाव में भी BJD ने 147 सीटों में से 117 सीटें जीती थीं...जबकि बीजेपी को 10 और कांग्रेस को 16 सीटें मिली थीं. ये एक क्षेत्रीय दल की ताक़त थी जिसके सामने बीजेपी और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दल बौने साबित हुए थे.

लेकिन वक़्त के साथ ओडिशा में बहुत कुछ बदल गया है. पांच साल बाद बीजेपी को ओडिशा में त्रिपुरा वाला मॉडल नज़र आ रहा है. 2017 में ओडिशा में पंचायत चुनाव हुए थे. इन चुनावों के नतीजों ने नवीन पटनायक को दो दशकों में पहली बार ये ऐहसास दिलाया था कि उनका क़िला कमज़ोर हो चुका है. 2017 के पंचायत चुनाव में बीजेपी ने बड़ा कमाल करके दिखाया था.

पंचायत चुनाव में बीजेपी ने 846 में से 297 सीटें जीती थीं, जबकि बीजू जनता दल को 473 सीट मिली थीं.
इससे पहले 2012 में BJD ने 654 सीट जीती थीं जबकि BJP को सिर्फ़ 36 सीट मिली थीं.

तब बीजेपी को ऐहसास होने लगा कि ओडिशा में कमल वाले वोटों की फसल उगाने के लिये मौसम तेज़ी से अनुकूल हो रहा है. 

ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा के लिये 4 चरणों में वोटिंग हो रही है.
वहां इस बार 3 करोड़ 20 लाख लोग मतदान कर रहे हैं.
11 अप्रैल को पहले चरण की वोटिंग के बाद 18 अप्रैल, 23 अप्रैल और 29 अप्रैल को भी वहां वोट डाले जाएंगे.

कुल मिलाकर ओडिशा में नवीन पटनायक के सामने 19 साल की सत्ता विरोधी लहर है और बीजेपी के पास अपनी सीटें बढ़ाने का सुनहरा मौका है. 

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