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नई दिल्ली: देश में हाल ही में आर्यन खान की गिरफ्तारी के बाद गांजा और नशीले पदार्थों के सेवन का मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है. ये तो हम सभी जानते हैं कि नशा करना सेहत के लिए हानिकारक होता है. लेकिन फिर भी आपने गौर किया होगा कि कुछ नशीले पदार्थों को तो सरकार खुद लाइसेंस देकर बेचती हैं तो वहीं कुछ चीजों पर खासा प्रतिबंध लगाकर रखा जाता है. ऐसे में लोगों की दिलचस्पी ये जानने में रहती है कि गांजा और भांग दोनों एक ही फैमिली के होते हैं. लेकिन, फिर भी भांग के लिए तो सरकार ठेके खोलती है, लेकिन गांजा बेचना अपराध माना जाता है. आखिर ये इतना बड़ा अंतर क्यों है?
दरअसल, भांग और गांजा एक ही प्रजाति कि पौधे से बनते हैं. ये प्रजाति नर और मादा के रुप में विभाजित (Divide) की जाती है, भांग नर प्रजाति से बनती है और गांजा मादा प्रजाति से बनता है. लेकिन गांजा और भांग को बनाने का तरीका भी काफी अलग है. दरअसल गांजा पौधे के फूल से तैयार किया जाता है और फिर इसे सुखाया जाता है और फिर इसका धूम्रपान किया जाता है. स्मोकिंग की वजह से गांजा जल्दी नशा करता है. वैसे कई लोग अलग तरीके से इसे खाने या पीने के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं. ठीक वैसे ही भांग, जिस पौधे की पत्तियों से बनती है, उन्हें कैनेबिस की पत्तियां (Cannabis Indica) कहा जाता है और बीजों को पीसकर इसे तैयार किया जाता है. ऐसे में आसान भाषा में समझा जाए तो गांजा फूल से तैयार होता है और भांग पत्तियों से बनती है.
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दरअसल देश में एक समय पर गांजे का इस्तेमाल भी खुले-तौर पर किया जाता था, लेकिन साल 1985 में भारत ने नारकोटिक्स और साइकोट्रॉपिक सब्सटैंस एक्ट (Narcotic Drugs and Psychotropic Substances Act) में भांग के पौधे यानी कैनबिस के फल और फूल के इस्तेमाल को अपराध की श्रेणी में रखा था. लेकिन इसकी पत्तियों को नहीं. हालांकि इससे पहले नारकोटिक्स ड्रग्स पर हुए सम्मेलन में, 1961 में, भारत ने इस पौधे को हार्ड ड्रग्स की श्रेणी में रखने का विरोध किया था. हालांकि कुछ राज्यों में भांग अभी भी अवैध है. उदारहण बतौर आप असम को ही देख लीजिए, वहां भांग का इस्तेमाल गैर कानूनी है, तो महाराष्ट्र में भांग को उगाना, रखना, इस्तेमाल करना या उससे बने किसी भी पदार्थ का सेवन बगैर लाइसेंस के करना गैर कानूनी है. दूसरी तरफ, गुजरात ने साल 2017 में ही भांग को कानूनी किया था.
चरस कैनेबिस के पौधे से निकले रेजिन से तैयार होती है. यह रेजिन भी इस पौधे का ही हिस्सा है, रेजिन पेड़-पौधों से निकलने वाला एक चिपचिपा मैटेरियल है. इसे ही चरस, हशीश और हैश कहा जाता है.
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हिमालय पर्वत के आसपास के राज्यों जैसे उत्तराखंड और हिमाचल में यह पौधा जगह-जगह पर उगता है. धार्मिक के अलावा इस पौधे का व्यापक इस्तेमाल भारत की चिकित्सा पद्धति में कई वर्षों से होता रहा है. आयुर्वेद में कई किस्म की दवाओं और इलाज के लिए इस पौधे के तमाम हिस्सों का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा, इसका व्यापारिक पहलू भी है. आपको बता दें टिम्बर और टेक्सटाइल इन्डस्ट्री में भी इस पौधे का खासा इस्तेमाल होता है. लेकिन कानून के बाद लाइसेंसधारी गिनी-चुनी कंपनियों ने इस पौधे के उत्पादन पर कब्जा कर लिया है और वे ही इसे इस्तेमाल करते हैं.
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