अध्‍यक्ष Vs अध्‍यक्ष की लड़ाई में अपना उल्‍लू सीधा करने में लगे हैं BJP-INC के टिकट दावेदार
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अध्‍यक्ष Vs अध्‍यक्ष की लड़ाई में अपना उल्‍लू सीधा करने में लगे हैं BJP-INC के टिकट दावेदार

बीजेपी और कांग्रेस के नेताओं को डर है कि लोकसभा चुनाव 2019 में प्रदेश अध्‍यक्ष उनकी विधानसभा में हारे तो आगामी दिल्‍ली विधानसभा चुनाव के दौरान उनकी विधायकी की दावेदारी खतरे में पड़ जाएगी.

दिल्‍ली की उत्‍तर-पूर्वी संसदीय सीट पर बीजेपी प्रदेश अध्‍यक्ष मनोज तिवारी और कांग्रेस की प्रदेश अध्‍यक्ष शीला दीक्षित के बीच सीधा मुकाबला है.

नई दिल्‍ली: लोकसभा चुनाव 2019 के छठे चरण में दिल्‍ली के उत्‍तर-पूर्वी संसदीय क्षेत्र में भी मतदान होना है. इस सीट से कांग्रेस की टिकट पर कांग्रेस की प्रदेश अध्‍यक्ष शीला दीक्षित और बीजेपी के प्रदेश अध्‍यक्ष मनोज तिवारी आमने-सामने हैं. वहीं इन दोनों को चुनौती देने के लिए आम आदमी पार्टी ने अपने पूर्व प्रदेश संयोजक दिलीप पांडेय को चुनावी मैदान में उतारा है. उत्‍तर-पूर्वी सीट से शीला दीक्षित के बाद से यह कहा जाने लगा है कि कांग्रेस इस सीट से एक बार फिर दिल्‍ली में वापसी कर सकती है. वहीं, अपने बीजेपी अध्‍यक्ष की प्रतिष्‍ठा को बचाने के लिए बीजेपी कार्यकर्ता भी इस चुनाव को अपने पक्ष में लाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहे हैं. वहीं दिल्‍ली को पूर्ण स्‍वराज का मुद्दा बनाकर आम आदमी पार्टी अपने उम्‍मीदवार दिलीप पांडेय के सहारे लोकसभा में दिल्‍ली के कोटे से प्रवेश करना चाहती है. 

  1. लोकसभा चुनाव के सहारे विधानसभा में जगह देख रहे कुछ उम्‍मीदवार
  2. विरोधियों के तीन से विरोधियों पर निशाना लगा रही हैं शीला दीक्षित
  3. अवैध कालोनियों को नियमित करने का मुद्दा भी है यहां पर हावी

लोकसभा चुनाव के सहारे विधानसभा में जगह देख रहे कुछ उम्‍मीदवार
उत्‍तर-पूर्वी दिल्‍ली संसदीय सीट का लोकसभा चुनाव कई मायनों में दिल्‍ली की दूसरी संसदीय सीट से बेहद अलग है. चूंकि यहां से न केवल कांग्रेस, बल्कि बीजेपी के वर्तमान प्रदेश अध्‍यक्ष चुनावी मैदान में हैं, लिहाजा दोनों पार्टी के कुछ नेता लोकसभा चुनाव के रास्‍ते विधानसभा में अपनी जगह तलाशने लगे हैं. दरअसल, इन सभी नेताओं को पता है कि लोकसभा चुनाव से कुछ महीनों बाद दिल्‍ली के विधानसभा का चुनाव होना है. उन्‍हें यह भी मालूम है कि विधानसभा चुनाव में दौरान विधायकी के लिए टिकटों के बंटवारे में दोनों प्रदेश अध्‍यक्षों की प्रमुख भूमिका रहने वाली है. ऐसे में दोनों पार्टी से विधायकी के लिए उम्‍मीदवार नेता अपने-अपने प्रदेश अध्‍यक्ष को जिताना चाहते हैं. इस चाहत में दोनों पार्टी के नेता अपने उम्‍मीदवार से भी अधिक मेहनत चुनावी मैदान में कर रहे हैं. वहीं, इस बात का एक नकारात्‍मक पहलू भी है. जिन नेताओं को पता है कि किसी भी सूरत में पार्टी उन्‍हें विधायकी का टिकट नहीं देगी, वे इस चुनाव में बेहद तटस्‍थ की भूमिका अदा कर रहे हैं. 

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विरोधियों के तीर से ही विरोधियों पर निशाना लगा रही हैं शीला दीक्षित  
दिल्‍ली कांग्रेस की प्रदेश अध्‍यक्ष और पूर्व मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षिण इस बार अपनी सशक्त छवि के साथ चुनावी मैदान में उतरी हैं. चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के कार्यकर्ता जहां एक तरफ शीला दीक्षित को विकास का पर्याय बता रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ शीला दीक्षित अपने चुनावी प्रचार में एक ही तीर से बीजेपी और आम आदमी पार्टी पर एक साथ निशाना लगा रही हैं. दरअसल, 2013 में जब शीला दीक्षित की दिल्‍ली से सरकार गई, उससे कुछ साल पहले ही दिल्‍ली में कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स का आयोजन हुआ था. लिहाजा, उस दौर की दिल्‍ली अब तक की सबसे खूबसूरत दिल्‍ली कहलाती है. वहीं आम आदमी पार्टी ने राजनीति में आने के बाद शीला दीक्षित पर लगातार भ्रष्‍टाचार के आरोप लगाए. बीते वर्षों में दिल्‍ली तो बदहाल हुई ही, शीला पर लगे भ्रष्‍टाचार के एक भी आरोप साबित नहीं हुए. लिहाजा अब शीला दीक्षित पूरी ताकत से इन मुद्दों पर आप पर हमला कर रही हैं. वहीं विकास के मुद्दे पर वे बीजेपी को भी कटघरे में खड़ा करना नहीं भू‍लती हैं. 

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अवैध कालोनियों को नियमित करने का मुद्दा भी है यहां पर हावी
2013 में अपनी सरकार जाने से पहले शीला दीक्षित ने बतौर मुख्‍यमंत्री अवैध अथवा अनियमित कालोनियों को नियमित कर सर्टिफिकेट बांटे थे. हालांकि, यह बात दीगर है कि इन कालोनियों के नियमन को लेकर कुछ कानूनी प्रक्रियाएं बाकी थी. छह साल बाद चुनाव में उतरी शीला दीक्षित इस मुद्दे के सहारे मतदाताओं के दिल में अपनी पुरानी जगह खोजने में लगी हुई हैं. शीला दीक्षित और उनके समर्थक लगातार क्षेत्र में यह प्रचार कर रहे हैं, कि इन कालोनियों को लेकर जो कुछ भी किया हमने किया. हमारे जाने के बाद इस मुद्दे पर नौ दिन चले अढ़ाई कोस की तर्ज पर काम हुआ. अब इस अधूरे काम को सरकार में आने के बाद सिर्फ कांग्रेस ही पूरा कर सकती है. इस तरह के मुद्दों को छेड़कर काग्रेस के कार्यकर्ता इस कोशिश में लगे हुए हैं कि 2013 के चुनाव में जिन मतदाताओं ने कांग्रेस का 'हाथ' छोड़कर आम आदमी पार्टी की 'झाडू' को समर्थन दिया था, उन्‍हें एक बार फिर घर वापस ले आया जाए. कांग्रेस अपने मुहिम में कितना सफल होती है, इसका फैसला तो अब 23 मई को लोकसभा चुनाव 2019 का अंतिम फैसला आने के बाद ही साफ हो सकेगा. 

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