चंबल के बीहड़ में आज भी गुलजार है चौंसठ योगिनी मंदिर, जिसकी तर्ज पर बना है संसद भवन
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चंबल के बीहड़ में आज भी गुलजार है चौंसठ योगिनी मंदिर, जिसकी तर्ज पर बना है संसद भवन

लोकतंत्र के महापर्व के रूप में चल रहे आमचुनाव में शरीक होने वाले इस क्षेत्र के तमाम उम्मीदवार संसद भवन पहुंचने की हसरत पूरी करने के लिये इस मंदिर की दहलीज पर भी मत्था टेकने आते हैं. 

चंबल के 64 योगिनी मंदिर की ही तर्ज पर बना है संसद भवन (फोटो साभारः twitter/@in_incredible)

मुरैनाः मध्य प्रदेश के भिंड मुरैना क्षेत्र में चंबल घाटी के बीहड़, भले ही डाकुओं की शरणस्थली के रूप में कुख्यात हैं, लेकिन इसी बीहड़ पट्टी के एक गुमनाम इलाके में गुलजार है संसद भवन की प्रतिकृति. जी हां, हम बात कर रहे हैं, सियासी कोलाहल से दूर, चंबल घाटी के वीराने में मौजूद 'चौंसठ योगिनी मंदिर' की. हकीकत में तो यह शिवालय है, लेकिन भारतीय लोकतंत्र के मंदिर अर्थात दिल्ली स्थित संसद भवन की इमारत इसी मंदिर की हूबहू प्रतिकृति है. लोकतंत्र के महापर्व के रूप में चल रहे आमचुनाव में शरीक होने वाले इस क्षेत्र के तमाम उम्मीदवार संसद भवन पहुंचने की हसरत पूरी करने के लिये इस मंदिर की दहलीज पर भी मत्था टेकने आते हैं. मुरैना से भाजपा उम्मीदवार और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर सहित तमाम अन्य नेता इस फेहरिस्त में शामिल हैं. 

तोमर कहते हैं कि मुरैना के मितावली गांव में स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर ही नहीं बल्कि यहां आसपास के इलाके में मौजूद ऐतिहासिक महत्व के अन्य विरासत स्थल, अभी भी दुनिया की नजरों से ओझल हैं. इन्हें विश्व पटल पर लाने के लिये इस इलाके को यूनेस्को विश्व विरासत सूची में लाने की योजना प्रस्तावित है. उन्होंने बताया कि पुरातत्व विभाग के भोपाल और दिल्ली क्षेत्र के पूर्व प्रमुख के. के. मोहम्मद की देखरेख में इन मंदिरों का 2005 में जीर्णोद्धार किया गया था. इस हकीकत को भी वह स्वीकार करते हैं कि मोहम्मद के सेवानिवृत्त होने के बाद यह काम अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है. 

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मोहम्मद ने बताया कि चंबल घाटी के दुर्गम इलाके में महज पांच किलोमीटर के दायरे में मौजूद दो गांव, मितावली और पढ़ावली में एक हजार साल पुराने ऐतिहासिक महत्व के विरासत स्थल मौजूद हैं. किसी जमाने में विदेशी आतताईयों के विध्वंस की मार इन विरासत स्थलों ने झेली. फिर जमींदोज होती ये इमारतें चंबल के दुर्दांत डाकुओं की पनाहगाह होने के कारण सहेजी नहीं जा सकीं और अब, अवैध खनन के बारूदी धमाके इनकी दरकती दीवारों को हिला रहे हैं. 

दूर से संसद भवन की याद दिलाता है मंदिर
मोहम्मद ने बताया कि करीब सात सौ साल पहले, 1323 ई. में जब राजा देवपाल ने तंत्र साधना के शिक्षा केन्द्र के रूप में चौंसठ योगिनी मंदिर का निर्माण कराया होगा, तब दूर दूर तक किसी के जेहन में यह बात नहीं रही होगी कि 20वीं सदी में ब्रिटिश वास्तुकार एडवर्ड लुटियन, इस मंदिर के वास्तुशिल्प को भारत के लोकतंत्र के मंदिर में हूबहू उकेरेंगे. ऊबड़ खाबड़ रास्तों से यहां आने वाले सैलानियों को मितावली पहुंचते ही लगभग 200 फुट ऊंची पहाड़ी पर निर्मित यह मंदिर, दूर से संसद भवन की याद दिला देता है.

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चौंसठ योगिनी से प्रभावित है संसद भवन का डिजाइन
मोहम्मद का दावा है कि संसद भवन का डिजाइन चौंसठ योगिनी मंदिर से प्रभावित है. संसद भवन की दीवारों पर अंकित वैदिक मंत्र इस बात के प्रमाण हैं कि इसके वास्तुशिल्प में ब्रिटिश वास्तुकारों ने भारतीय भवन निर्माण कला का पूरा ध्यान रखा. मोहम्मद ने बताया कि मुरैना के चंबल क्षेत्र में छठी शताब्दी से 15 वीं शताब्दी तक गुर्जर प्रतिहार वंश के तमाम महत्वपूर्ण ऐतिहासिक विरासत स्थल मौजूद हैं. इन्हें सहेजने का काम 2004 तक चला. इसके बाद उन्होंने मितावली, पढ़ावली और बटेसर को जोड़कर विश्व विरासत क्षेत्र (वर्ल्ड हेरिटेज जोन) बनाने की योजना को आगे बढ़ाया था. 

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200 मंदिरों का भव्य परिसर
ऐतिहासिक स्थलों के पुनरुद्धार और चंबल के डकैतों का पुनर्वास करते हुये इस क्षेत्र को वैश्विक पर्यटन मानचित्र में शुमार करने वाली इस योजना को अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा के सहयोग से शुरु किया गया. उन्होंने बताया कि इस क्षेत्र में सबसे प्राचीन स्थल बटेसर है, जहां छह से नौवीं शताब्दी के बीच लगभग 200 मंदिरों का भव्य परिसर उत्खनन में मिलने के बाद, 2004 तक 80 मंदिरों का जीर्णोद्धार किया गया. इसके पास ही मौजूद गढ़ी पढ़ावली गांव में 10वीं शताब्दी के शिव मंदिर मिले. इनमें सिर्फ एक मंदिर का जीर्णोद्धार हो सका. मंदिर में मौजूद सैकड़ों कामुक भित्ति चित्रों के कारण इस मंदिर को 'मिनी खजुराहो' भी कहते हैं.

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पढ़ावली के पास गुर्जर शासक देवपाल द्वारा निर्मित चौंसठ योगिनी मंदिर वस्तुत: तंत्र विद्या का शिक्षा केन्द्र था. इस वृत्ताकार इमारत में शिव जी के 64 मंदिर मौजूद हैं. इनमें तंत्र शास्त्र की 64 योगिनियों के साथ शिव की प्रतिमायें मौजूद हैं. अखिल भारतीय वीर गुर्जर महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुराग गुर्जर ने बताया कि पूरे क्षेत्र को विश्व विरासत क्षेत्र के रूप में विकसित करने की कार्ययोजना को प्रधानमंत्री कार्यालय से संस्कृति मंत्रालय को भेजा जा चुका है. अभी तक यह मंत्रालय के पास विचाराधीन है. 

मंदिरों की देखभाल
डाकुओं के पुनर्वास की योजना के तहत 2004 में आत्मसमर्पण कर चुके जसवंत सिंह गूजर, फिलहाल 19 साल से बटेसर के मंदिरों की देखरेख कर रहे हैं. सैलानियों को वह इस इलाके की खूबियों और खामियों से रूबरू कराते हैं. मायूसी भरे अंदाज में जसवंत कहते हैं कि दुर्दांत डाकू निर्भय गूजर, मलखान सिंह, पुतली बाई और सुल्ताना डाकू तो अब नहीं रहे, लेकिन इस युग के खनन माफिया इस विरासत के लिये नये खतरे के रूप में उभरे हैं. जसवंत सिंह को 19 साल से मोहम्मद की योजना के परवान चढ़ने का इंतजार है. (इनपुटः भाषा)

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