14 मार्च 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली यह देश की पहली ऐसी गैर-कांग्रेसी सरकार थी, जिसने 5 साल का कार्यकाल सफलता पूर्वक पूरा किया था.
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नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए छठे चरण का मतदान रविवार को पूरा हो गया. अब 19 मई को लोकसभा चुनाव 2019 के आखिरी चरण में आठ राज्यों के 59 संसदीय क्षेत्रों में मतदान होगा. छठे चरण के मतदान से ठीक पहले कांग्रेस के नेता नवजोत सिंह सिद्धू का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक विवादित बयान आया. इंदौर की एक जनसभा में दिए गए इस विवादित बयान में सिद्धू ने कहा कि कांग्रेस ने 'देश को गोरे अंग्रेजो से आजादी दिलाई, इंदौर वाले इस देश को काले अंग्रेजों से निजात दिलाएंगे'. बीजेपी ने सिद्धू के इस बयान को लपकटने में देर नहीं लगाई. बोफोर्स कांड में आरोपी ओतावियो क्वात्रोकी और भोपाल गैस कांड के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन के बहाने बीजेपी ने भारतीय बनाम विदेशी के मुद्दे को फिर से हवा देना शुरू कर दी. दरअसल, भारतीय बनाम विदेशी का यह मुद्दा पहली बार 1999 के लोकसभा चुनाव के दौरान आया था. चुनावनामा में आज आपको बताते हैं कि भारतीय बनाम विदेशी का मुद्दा क्यों सामने आया और इस मुद्दे का देश के 13वें लोकसभा चुनाव के नतीजों पर क्या असर पड़ा...
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सैफुद्दीन सोज की बगावत के बाद 13 महीनों में गिर गई थी अटल सरकार
1998 के 12वें लोकसभा चुनाव के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए भले ही सरकार बनाने में कामयाब रही, लेकिन जयललिता की राजनैतिक महत्वाकांक्षा और नेशनल कांफ्रेंस के सांसद सैफुद्दीन सोज की बगावत के चलते यह सरकार महज 13 महीने चल सकी. दरअसल, अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में जयललिता की एडीएमके भी शामिल थी. केंद्र में एनडीए की सरकार के गठन के साथ जयललिता लगातार यह दबाव बना रही थीं कि तमिलनाडु की करुणानिधि सरकार को बर्खास्त किया जाए. तत्कालनीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लगातार जयललिता की इस मांग को खारिज कर रहे थे. जिससे नाराज, जयललिता ने अटल सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी. जयललिता की इस घोषणा के बाद अटल सरकार के सामने संसद में बहुमत साबित करने की चुनौती थी. संसद में वोटिंग के दौरान जयललिता की पार्टी ने तो सरकार के विरोध में वोटिंग की ही, साथ ही नेशनल कांफ्रेंस के सांसद सैफुद्दीन सोज ने नेशनल कांफ्रेंस से बगावत कर क्रास वोटिंग की. जिसके चलते, अटल सरकार संसद में बहुमत साबित करने में असफल रही और उनकी 13 महीने पुरानी सरकार गिर गई.
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सोनिया के नेतृत्व में पहली बार कांग्रेस ने लड़ा 1999 का लोकसभा चुनाव
1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी न केवल देश की सबसे बडी पार्टी के रूप में सामने आई, बल्कि एक बार फिर सरकार बनाने में सफल रही. इस चुनाव में कांग्रेस एक बार फिर कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी थी. कांग्रेस की खराब होती स्थिति को देखकर सोनिया गांधी ने पार्टी की बागड़ोर संभालने का फैसला किया. इसी फैसले के तहत, 1998 में कोलकाता के राष्ट्रीय अधिवेशन में सोनिया गांधी ने पहले कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की. इसके बाद, कांग्रेस की बागड़ोर को सीतारात केसरी से लेकर 14 मार्च 1998 को सोनिया गांधी के हवाले कर दी गई. सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही बीजेपी ने विदेशी मूल के मुद्दे को तूल देना शुरू कर दिया. 1999 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी इस मुद्दे को राजनैतिक मुद्दा बना चुकी था. इस मुद्दे का शोर जितना देश में आमजनों के बीच था, उतना ही प्रभावी कांग्रेस के भीतर हो चला था. इसी का नतीजा था कि पार्टी के कद्दावर नेताओं में शामिल महाराष्ट्र के शरद पवार, बिहार के तारिक अहमद और उत्तर-पूर्वी राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले पीए संगमा ने कांग्रेस का दामन छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया. जिसका खामियाजा कांग्रेस को 1999 के लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा.
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तेलगु देशम की मदद से तीसरी बार सरकार बनाने में सफल रहे अटल
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली बीजेपी की पहली सरकार 13 दिन और दूसरी सरकार 13 महीनों में गिर गई थी. 1999 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस की फूट और कारगिल में भारतीय सेना की जीत का फायदा मिला. 1999 के इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी 182 संसदीय सीटों पर चुनाव जीतकर एक बार फिर संख्याबल में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने आई. वहीं एनडीए गठबंधन कुल 269 सीटें जीतने में कामयाब रहा. हालांकि यह बात दीगर थी कि एनडीर 269 सीटें जीतने के बावजूद बहुमत के आंकड़े से पीछे थी. ऐसे में एनडीए को तेलगू देशम का साथ मिला. तेलगु देशम पार्टी के 29 सांसदों ने एनडीए को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया. तेलगु देशम पार्टी का समर्थन मिलते ही एनडीए को जरूरी बहुमत का आंकडा मिल गया और अटल बिहारी वाजपेयी ने 13 अक्टूबर 1999 को तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने सफलता पूर्वक पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. बीजेपी ने अपने पांच साल के कार्यकाल को 'इंडिया शायनिंग' के रूप में देश के समक्ष रखा था.
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1999 के लोकसभा चुनाव में किस पार्टी को मिली कितनी संसदीय सीटें
13वीं लोकसभा के लिए 1999 में हुए चुनाव में कुल 169 राजनैतिक पार्टियां चुनावी मैदान में थी. इस चुनाव में 4648 उम्मीवारों ने अपनी किस्मत आजमाई थी. जिसमें 3400 उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा सके थे. इस चुनाव में कांग्रेस ने सर्वाधिक 453 उम्मीदवार चुनाव में उतारे थे. चुनाव उपरांत आए नतीजों में सर्वाधिक 182 संसदीय सीटों पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी. वहीं, 114 सीटें जीतकर कांग्रेस दूसरे पायदान पर खड़ी थी. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने वाली बीएसपी ने 14, सीपीआई ने 4, सीपीएम ने 33, जनता दल (सेकुलर) ने एक और जनता दल (यूनाइटेड) ने 21 सीटों पर जीत हासिल की थी. इसके अलावा, इस चुनाव में ऑल इंडिया अन्ना द्रविद मुन्नेत्रा कज़ागम (एडीएमके) ने 10, ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) ने 8, बीजू जनता दल (बीजेडी) ने 10, डीएमके ने 12, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने 8, राष्ट्रीय जनता दल ने 7, शिवसेना ने 15 और समाजवादी पार्टी ने 29 सीटों पर जीत दर्ज की थी.