लोकसभा चुनाव 2019 के लिए अब सिर्फ दो चरणों का मतदान शेष है. 23 मई को नतीजे सामने आने के बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि इस बार केंद्र में किसकी सरकार. इस बीच, चुनावनामा में हम 1998 की उस बीजेपी सरकार की बात कर रहे हैं, जो महज 13 महीनों में गिर गई थी.
Trending Photos
नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव 2019 के लिए अब दो चरणों का मतदान बाकी है. 12 मई को आखिरी और 19 मई को आखिरी चरण का मतदान होगा. जिसके बाद 23 मई को यह स्पष्ट हो जाएगा कि मतदाताओं ने किस राजनैतिक दल के पक्ष में वोट कर सत्ता में काबिज होने का न्यौता दिया है. फिलहाल, चुनावनामा में आज हम बात कर रहे हैं 1998 में हुए लोकसभा चुनाव की. इस चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने बहुत साबित किया और एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री बन गए. अटल बिहारी वाजपेयी की यह सरकार महज 13 महीने चली. दरअसल, एनडीए के एक सहयोगी दल के एक सांसद की क्रास वोटिंग के चलते अटल बिहारी वाजपेयी की यह सरकार अल्पमत में आ गई थी, जिसके चलते उन्हें प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा. आइए आज आपको बताते हैं कि 1998 की जीत से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी के इस्तीफे तक की पूरी कहानी.
यह भी पढ़ें: चुनावनामा 1996: जब 16 साल संघर्ष के बाद मिली सत्ता 13 दिनों में चली गई...
1998 में हुआ था राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का गठन
देश की 11वीं लोकसभा के लिए 1996 में चुनाव हुए थे. यह लोकसभा महज दो साल तक चल सकी. 1998 में एक बार फिर देश की 12वीं लोकसभा के लिए चुनाव हुए. 1996 में लगी चोंट को ध्यान में रखते हुए बीजेपी ने इस चुनाव से ठीक पहले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) बनाया. जिसमें दो दर्जन से अधिक राजनैतिक दल बीजेपी के पक्ष में खड़े हुए. राजग में शामिल होने वाले राजनैतिक दलों में शिवसेना, समता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल, बीजू जनता दल, जयललिता की ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके), जम्मू और कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस, ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सहित अन्य राजनैतिक दल शामिल थे. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सभी दो दर्जन राजनैतिक दलों ने एक साथ चुनाव लड़ा और सरकार बनाने के लिए आवश्यक बहुमत का जादूई आंकड़ा हासिल करने में कामयाब रहे. अटल बिहारी वाजपेयी ने 19 मार्च 1998 को एक बार फिर देश के 16वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली.
यह भी पढ़ें: चुनावनामा 1996: जब 16 साल संघर्ष के बाद मिली सत्ता 13 दिनों में चली गई...
यह भी पढ़ें: चुनावनामा 1991: मंडल-मंदिर और सहानुभूति की लहर के बीच कांग्रेस की हुई सत्ता में वापसी
1998 के लोकसभा चुनाव में BJP ने जीती थीं 182 सीटें
1998 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी 182 संसदीय सीटें जीतकर एक बार फिर देश की सर्वाधिक संख्याबल वाली पार्टी बन गई. इस चुनाव में बीजेपी ने देश के 28 राज्यों में से 20 राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी. जिसमें कर्नाटक, बिहार, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब और उत्तर प्रदेश से बड़ी सफलता मिली थी. 1998 के लोकसभ चुनाव में बीजेपी ने आंध्र प्रदेश से 4, बिहार से 20, गुजरात से 19, हिमाचल प्रदेश से 3, जम्मू और कश्मीर से 2, कर्नाटक से 13, महाराष्ट्र से 4, मध्य प्रदेश से 30, उड़ीसा से 7, पंजाब से 3, राजस्थान से 5, तमिलनाडु से 3, उत्तर प्रदेश से 57, पश्चिम बंगाल से 1 और दिल्ली से 6 संसदीय सीटें जीती थीं. इसके अलावा, बीजेपी ने चंडीगढ़, दादर नगर हवेली और दमन दीव से एक-एक सीट पर जीत दर्ज की थी. इस चुनाव में बीजेपी को अरुणाचल प्रदेश, गोवा, केरल, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और अंडमान निकोबार से एक भी सीट हासिल नहीं हुई थीं.
यह भी पढ़ें: चुनावनामा 1989: पांच साल में देश की तीसरी सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी बनी बीजेपी
यह भी पढ़ें: चुनावनामा 1989: बोफोर्स खरीद में घोटाले से घिरे राजीव, महज 197 सीटों पर सिमट गई कांग्रेस
पहली बार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को नहीं मिली एक भी सीटें
आजादी के बाद, 1998 का पहला ऐसा लोकसभा चुनाव था, जिसमें कांग्रेस को उत्तर प्रदेश से एक भी सीटें नहीं मिली थीं. उत्तर प्रदेश के अलावा, कांग्रेस को अरुणाचल, मणिपुर, मिजोरम, पंजाब, सिक्किम, तमिलनाडु, त्रिपुरा, चंडीगढ, दादर नगर हवेली, दमन दीव और पुदुचेरी से भी कोई सीट नहीं मिली थी. इस चुनाव में कांग्रेस कुल 141 सीटों पर ही सिमटी रह गई थी. इस चुनाव में कांग्रेस को सबसे बड़ी जीत महाराष्ट्र से मिली थी. महाराष्ट्र में कांग्रेस ने कुल 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें वह 33 सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब रही थी. कांग्रेस के अलावा, इस चुनाव में बीएसपी ने 5, सीपीआई ने 9, सीपीएम ने 32, जनता दल ने 6, समता पार्टी ने 12, एडीएमके ने 18, डीएमके ने 6, शिरोमणि अकाली दल ने 8, सपा ने 20, टीडीपी ने 12 और तृणमूल कांग्रेस ने 3 सीटें जीती थीं. चुनाव आयोग के दस्तावेजों के अनुसार, इस चुनाव में कुल 4750 उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमाने के लिए चुनावी मैदान में उतरे थे, जिसमें 3486 उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा सके थे.
यह भी पढ़ें: चुनावनामा 1984: राजनीति की बॉलीबुड की हुई इंट्री, INC की टिकट पर अभिताभ और दत्त बने सांसद
यह भी पढ़ें: चुनावनामा 1984: सहानूभूति की 'आंधी' के बीच कांग्रेस ने दर्ज की अब तक की सबसे बड़ी जीत
इस सांसद की क्रास वोटिंग के चलते गिर गई अटल सरकार
बहुमत का जादुई आंकड़ा हासिल करने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने 19 मार्च 1998 को देश के 16वें प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली. महज एक साल के भीतर राजनैतिक कारणों से जयललिता की ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने न केवल राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का साथ छोड़ दिया, बल्कि इस पार्टी के 6 सासंदों ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. डीएमके की समर्थन वापसी के बाद अटल सरकार को एक बार फिर संसद में बहुमत साबित करने की चुनौती मिली. बहुमत को लेकर आश्वस्त अटल बिहारी वाजपेयी ने यह चुनौती स्वीकार कर ली. संसद में विस्वास मत के दौरान, जम्मू और कश्मीर नेशनल कांफ्रेस के सांसद सैफुद्दीन सोज ने अपनी पार्टी के खिलाफ जाकर क्रास वोटिंग की. जिसके चलते, अटल बिहारी वाजपेयी महज एक वोट से अपनी सरकार बचाने में नाकाम रहे. जिसके बाद 13 अक्टूबर 1999 को अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इस तरह अटल बिहारी वाजपेयी की यह सरकार महज 13 महीनों में ही गिर गई.