एक ऐसी सीट जहां सूरमाओं की है भिड़ंत, चाचा-भतीजे लड़ेंगे और मलाई खाएगी BJP?
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एक ऐसी सीट जहां सूरमाओं की है भिड़ंत, चाचा-भतीजे लड़ेंगे और मलाई खाएगी BJP?

लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Election 2019) में ताजनगरी आगरा से सटे फिरोजाबाद में इस बार चाचा-भतीजे के बीच जोरदार मुकाबला हो सकता है. हैरान करने वाली बात यह है कि इस चाचा-भतीजे की इस लड़ाई में देश की सबसे बड़ी पार्टी के बीजेपी के प्रत्याशी अपनी उम्मीद तलाश रहे हैं.

2014 के लोकसभा चुनाव में अक्षय यादव को जीत दिलाने के लिए चाचा शिवपाल यादव ने जी जान लगाई थी, 2019 में चाचा-भतीजे में ही लड़ाई है.

फिरोजाबाद: लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Election 2019) के भी अजब-गजब रंग हैं. दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र में जनता की सेवा करने का मौका पाने के लिए लोग तरह-तरह से जोर आजमाश कर रहे हैं. यूं 543 लोकसभा सीटों पर चुनाव हो रहे हैं, लेकिन हम आपका ध्यान उत्तर प्रदेश के एक ऐसे लोकसभा सीट की ओर खींचना चाहते हैं जहां बेहद दिलचस्प मुकाबला होने की उम्मीद है. ताजनगरी आगरा से सटे फिरोजाबाद में इस बार चाचा-भतीजे के बीच जोरदार मुकाबला हो सकता है. हैरान करने वाली बात यह है कि इस चाचा-भतीजे की इस लड़ाई में देश की सबसे बड़ी पार्टी के बीजेपी के प्रत्याशी अपनी उम्मीद तलाश रहे हैं.

भतीजे से सीट छीनने की कोशिश में चाचा
समाजवादी पार्टी (सपा) की गढ़ मानी जाने वाली फिरोजाबाद सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबला है. वर्ष 2014 के मोदी लहर में भी यह सीट सपा के महासचिव रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव को मिल गई थी, लेकिन इस बार परिस्थितियां थोड़ी बदली हुई हैं.

यहां से सैफाई परिवार के दो दिग्गज आमने-सामने हैं. समाजवादी पार्टी से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले शिवपाल यादव अपने भतीजे और निवर्तमान सांसद अक्षय यादव से ताल ठोकने को तैयार हैं. सैफई परिवार में इन दो दिग्गजों की भिड़ंत का बीजेपी ने भी पूरा लाभ उठाने का प्रयास किया है और अपने पुराने कार्यकर्ता डॉ़ चंद्रसेन जादौन को उम्मीदवार बनाकर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है.

बीजेपी ने भी पुराने चावल पर जताया भरोसा
जनसंघ के जमाने से जुड़े डॉ़ जादौन ने वर्ष 1996 में घिरोर विधानसभा से बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़ा था, मगर जीत नहीं पाए थे. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक विनय चतुर्वेदी फिरोजाबाद सीट को सपा की परंपरागत सीट मान रहे हैं. इनका कहना है कि सपा के रामजी लाल सुमन ने वर्ष 1999 और 2004 में लगातार सांसदी का चुनाव जीता, लेकिन वर्ष 2009 में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने चुनाव लड़कर जीत हासिल की और अब यह एक परिवार के प्रभुत्व वाली सीट बन गई.

यादव वोटरों के मूड पर तय होगी हार जीत
अखिलेश के सीट छोड़ने से हुए उपचुनाव में सैफई परिवार की बहू और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव चुनाव मैदान में थीं, लेकिन कांग्रेस के राज बब्बर से चुनाव हार गई थीं. बावजूद इसके वर्ष 2014 में हुए चुनाव में एक बार यह सीट सैफई परिवार में आई. अक्षय यादव ने बीजेपी के एस.पी. सिंह बघेल को करीब 1 लाख 14 हजार 59 वोटों से हराया था.

यहां यादव वोटर निर्णायक भूमिका में हैं. जसरना और सिरसागंज में उनकी तदाद लगभग 1.5 लाख है. लेकिन उनमें बिखराव भी होगा. शिवपाल यादव संगठन की राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं. सपा के पुराने कार्यकर्ताओं में उनकी आज भी पकड़ है. विपक्ष के नेता और अलग-अलग सरकारों में मंत्री रहे शिवपाल को भी यहां भारी समर्थन मिल रहा है. यह बात अलग है कि कुछ उनके विरोध में भी हैं. अब शिवपाल के मैदान में उतरने से यह सीट सपा के लिए आसान नहीं रह गई है.

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चाचा को पटखनी देने में BSP हो सकती है मददगार
विश्लेषक विनय चतुर्वेदी के मुताबिक, अक्षय यादव के पास सपा के साथ अब बसपा की भी ताकत है जो उन्हें मजबूत बनाती है. कांग्रेस ने यहां पर अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है. ऐसे में यादवों के साथ कुछ वोट उन्हें जाटवों और मुसलमानों का मिलता दिख रहा है, लेकिन सपा से बागी हुए तीन बार के विधायक हरिओम यादव और पूर्व विधायक अजीम भाई ने सपा का दामन छोड़ा है. अब शिवपाल खेमे में हैं. शिवपाल के साथ देने वाले अजीम की शहर के मुसलामानों में अच्छी पकड़ मानी जाती है. मुसलामानों के वोट का एक हिस्सा शिवपाल के पक्ष में आने से इनकार नहीं किया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि शिवपाल के कारण बीजेपी की ओर से डमी उम्मीदवार उतारने की अफवाह थी, लेकिन चंद्रसेन जादौन के चुनाव मैदान में आने से अफवाह पर पूर्णविराम लग गया है. लड़ाई रोचक हो गई है. अमित शाह उनके पक्ष में जनसभा कर परिवारवाद के खिलाफ हमला बोल चुके हैं.

चाचा की चली तो भतीजे की हार संभव
चतुर्वेदी की नजर में चंद्रसेन अनुभवी हैं. उन्हें मोदी के नाम का फायदा भी मिलेगा. बावजूद इसके सपा के गढ़ वाले विधानसभा क्षेत्रों में वोट पाना चुनौती है. वजह, सपा के साथ प्रसपा भी मैदान में है. पार्टी के मूल वोट बैंक को सभी अपनी-अपनी तरफ बिठाने में जोर-आजमाइश कर रहे हैं.

चंद्रसेन के साथ बघेल बिरादरी का वोट उनके पक्ष में आ सकता है. साथ ही कुछ और भी बैकवर्ड वोट में सेंधमारी कर सकते हैं. अगर शिवपाल ने थोड़ी भी मजबूती से लड़ाई लड़ी और बसपा का वोट सपा के पक्ष में तब्दील नहीं हुआ तो बीजेपी को फायदा हो सकता है.

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सांसद रहते हुए भतीजे ने कराए ये सारे काम
सांसद अक्षय यादव ने शहर में जेडा झाल परियोजना शुरू करवाकर पानी की समस्या कुछ हद तक दूर की है. मेडिकल कॉलेज भी बनवाया है. आगरा लखनऊ एक्सप्रेस-वे से फिरोजाबाद जुड़ा है. कांच उद्योग के चलते यहां ट्रांसपोर्ट महत्वपूर्ण है.

इस लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं. फिरोजाबाद, टूंडला, शिकोहाबाद और जसराना में बीजेपी के विधायक हैं. सिरसागंज में सपा के विधायक हैं.

टूंडला के रामसेवक का कहना है कि यहां पर सबसे बड़ी समस्या पानी की है. जसवंत नगर के रामप्यारे की मानें तो यहां पर सरकारी अस्पताल तो बना खड़ा है लेकिन डॉक्टर आते ही नहीं हैं.

नोटबंदी से इलाके में बढ़ी बेरोजगारी
फिरोजाबाद के अंसार की मानें तो नोटबंदी के बाद कांच उद्योग के करीब 1.35 लाख कामगरों का रोजगार छिन गया था. वहीं, कांच व्यापारी अकरम ने बताया कि नोटबंदी से अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई. लगभग 65 फैक्ट्रियां नोटबंदी के कारण बंद हो गई थीं. आलू किसान रामसेवक भी फसल का उचित मूल्य ना मिलने से परेशान नजर आए.

क्षेत्र में यादव वोटर की संख्या 4.31 लाख के करीब है. 2़ 10 लाख जाटव, 1़65 लाख ठाकुर, 1़ 47 लाख ब्राह्मण, 1़56 लाख मुस्लिम और 1़21 लाख लोधी मतदाता हैं. कुल मतदाताओं की संख्या 17,45,526 है. महिला मतदाता 734,206 और पुरुष मतदाता 902,532 हैं.

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