लोकसभा चुनाव 2019: हरदोई में क्या जारी रह पाएगा बीजेपी का विजयी रथ !
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लोकसभा चुनाव 2019: हरदोई में क्या जारी रह पाएगा बीजेपी का विजयी रथ !

साल 2014 में मोदी लहर के बूते 1998 के बाद बीजेपी यहां कमल खिलाने में सफल रही. हालांकि यहां की सियासत नरेश अग्रवाल के इर्द-गिर्द घूमती है.

हरदोई शब्द 'हरिद्रोही' से बना है.

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीट- 31 हरदोई है, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. उत्तर प्रदेश के हरदोई लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद अंशुल वर्मा हैं, जिन्होंने हाल ही में अपना इस्तीफा लखनऊ में बीजेपी दफ्तर के चौकीदार को सौंपकर, समाजवादी पार्टी को ज्वाइंन किया है. साल 2014 में मोदी लहर के बूते 1998 के बाद बीजेपी यहां कमल खिलाने में सफल रही. हालांकि यहां की सियासत नरेश अग्रवाल के इर्द-गिर्द घूमती है.

ऐसे मिला शहर को नाम 
हरदोई शब्द 'हरिद्रोही' से बना है. कहते हैं कि हिर्ण्याकश्यप ने अपने नगर का नाम हरि-द्रोही रखवा दिया था. उसके पुत्र ने विद्रोह किया. पुत्र को दण्ड देने के लिए बहिन होलिका अपने भतीजे को ले कर अग्नि में प्रवेश कर गई और अपवाद घटा. प्रह्लाद का बाल भी बांका न हुआ और होलिका जल मरी. कहा जाता है कि जिस कुण्ड में होलिका जली थी, वो आज भी श्रवणदेवी नामक स्थल पर हरदोई में स्थित है, जिसे प्रह्लाद कुण्ड कहते है.

2014 में ये था जनादेश
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के अंशुल वर्मा ने बीएसपी के शिवे प्रसाद को 81,343 वोटों से हराया था. इस चुनाव नें बसपा दूसरे नंबर, सपा तीसरे नंबर और कांग्रेस चौथे नंबर पर रही। भाजपा ने 1998 के बाद इस सीट पर वापस कमल खिलाया. बीजेपी के अंशुल वर्मा को 3,60,501 वोट मिले, बीएसपी के शिवप्रसाद वर्मा को 2,79,158 वोट मिले थे. वहीं, सपा की उषा वर्मा को 2,76,543 वोट मिले और कांग्रेस के शिव कुमार को 23,298 वोट मिले थे. 

 

ये है राजनीतिक इतिहास
साल 1980 और 1984 में यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की, लेकिन इसके बाद कांग्रेस आज तक यहां खाता भी नहीं पाई. साल 1989 में जनता दल के परमई लाल यहां के सांसद बने थे और अगले चुनाव में भी जनता दल के ही पास ये सीट रही. साल 1991 में बीजेपी ने यहां पहली बार खाता खोला और जय प्रकाश सांसद चुने गए. इसके बाद ये लगातार दो बार सांसद रहे. साल 1998 समाजवादी पार्टी की उषा वर्मा ने बीजेपी के हेट्रिक को रोक इस सीट पर कब्जा किया. साल 1999 में यहां अखिल भारतीय लोक तांत्रिक कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, लेकिन साल 2004 में यहां पर बड़ा उलटफेर हुआ और यहां पर बीएसपी को जीत मिली और इलियास आजमी यहां के सांसद की कुर्सी पर बैठे. साल 2009 में सपा नेता उषा वर्मा दोबारा यहां से सांसद बनीं. साल 2014 में 16 साल बाद यहां बीजेपी कमल खिलाने में सफल हुई. 

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