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1996 से BJP के कब्जे में है कच्छ लोकसभा सीट, क्या कांग्रेस तोड़ पाएगी 'कच्छ का किला'

कच्छ लोकसभा सीट पर बीजेपी का कब्जा 1996 से अब तक है.

कच्छ लोकसभा सीट पर बीजेपी 1996 से जीत रही है. (प्रतीकात्मक फोटो)
कच्छ लोकसभा सीट पर बीजेपी 1996 से जीत रही है. (प्रतीकात्मक फोटो)

कच्छः गुजरात का कच्छ जिला पर्यटन का बड़ा केंद्र है. गुजरात के सबसे बड़े जिले के रूप में कच्छ को जाना जाता है. हालांकि इसका अधिकांश हिस्सा रेत और दलदल से भरा है. कच्छ को पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है. यहां एतिहासिक इमारतें साथ में हिल स्टेशन काफी प्रसिद्ध है.

1270 में कच्छ एक स्वतंत्र प्रदेश हुआ करता था. लेकिन अंग्रेजों के आने के बाद इसे ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया गया. आजादी के बाद इसे गुजरात का जिला बनाया गया. हालांकि 1950 में कच्छ भारत का एक राज्य था. जिसे 1953 में महाराष्ट्र के अंतर्गत था लेकिन 1960 में महाराष्ट्र और गुजरात का विभाजन हुआ तो कच्छ गुजरात का हिस्सा बन गया.

कच्छ लोकसभा सीट पर काफी समय से बीजेपी का दबदबा रहा है. कच्छ सीट पर 1996 से अब तक बीजेपी का कब्जा रहा है. 1996 में पहली बार बीजेपी से पुष्पदन गढ़वी ने जीत हासिल की थी. जिसके बाद लगातार वह 2004 तक कच्छ से सांसद रहे. इसके बाद 2009 में पूनमबेन जाट ने बीजेपी से इस सीट पर जीत हासिल की थी.

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हालांकि 2014 में पूनमबेन को जामनगर सीट से टिकट दिया गया. वहीं, 2014 में कच्छ लोकसभा सीट पर विनोद चावड़ा को मौका दिया गया. जिसमें उन्होंने बड़ी जीत हासिल की और बीजेपी की कब्जे को बरकरार रखा. विनोद चावड़ा के खिलाफ दिनेश भाई परमार को कांग्रेस ने मैदान में उतारी थी.

कच्छ सीट पर कांग्रेस 1996 से अबतक एक बार भी जीत हासिल नहीं कर पाई है. ऐसे में कांग्रेस के लिए कच्छ सीट सबसे बड़ी चुनौती होगी. कच्छ में बीजेपी के किले को तोड़ने के लिए काफी मशक्कत करनी होगी. देखना यह है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ किसे चुनाव मैदान में उतारती है.

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