उत्तर प्रदेश की मिश्रिख लोकसभा सीट सूबे की सीतापुर, हरदोई और कानपुर जिलों की विधानसभा सीटों को मिलाकर बनाई गई है
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश का लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र मिश्रिख में भारतीय हिंदू पौराणिक कथाओं में सबसे महान ऋषि महर्षि दधीचि का जन्म हुआ और उन्होंने अपना पूरा जीवन अंतिम सांस तक बिताया था. मिश्रिख का किला महमुदाबाद, महर्षि व्यास गाड़ी यहां के प्रसिद्ध पर्यटन और धार्मिक स्थल हैं. उत्तर प्रदेश की मिश्रिख लोकसभा सीट सूबे की सीतापुर, हरदोई और कानपुर जिलों की विधानसभा सीटों को मिलाकर बनाई गई है. उत्तर प्रदेश की मिश्रिख लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद भाजपा की अंजू बाला हैं.
2014 में क्या था जनादेश
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मिश्रिख संसदीय सीट पर 57.86 प्रतिशत मतदान हुआ था. इस सीट पर बीजेपी उम्मीदवार अंजू बाला ने बीएसपी के उम्मीदवार अशोक रावत को 87 हजार 363 वोटों से मात दी थी.
साल 2014 में बीएसपी दूसरे, सपा के जय प्रकाश तीसरे और कांग्रेस के ओम प्रकाश तीसरे स्थान पर रहे थे.
कैसे है मिश्रिख का राजनीतिक इतिहास
लोकसभा संसदीय इतिहास की बात की जाए तो 1962 में संसदीय सीट के रूप में वजूद में आई, तब से लेकर अभी तक अनुसूचित जाति के लिए यह सीट आरक्षित रही है. साल 1962 में यहां पहली बार हुए चुनाव में जनसंघ के गोकरण प्रसाद ने जीत हासिल की थी. साल 1967 में कांग्रेस में बीजेपी को हराया. 1971 में फिर कांग्रेस से इस सीट से परचम हासिल किया और कांग्रेस के संकटा प्रसाद दोबारा यहां से सांसद चुने गए. आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में भारतीय लोकदल से रामलाल राही ने जीत हासिल की, लेकिन बाद में कांग्रेस में वो शामिल हो गए. कांग्रेस ने साल 1984 में संकटा प्रसाद को टिकट दिया और सफल रहे. 1989 और 1991 में फिर कांग्रेस ने इस सीट पर कब्जा किया. साल 1996 में सालों के बाद बीजेपी इस सीट पर कमल खिलाने में सफल हुई.
साल 1999 ने एसपी ने इस सीट पर अपना खाता खोला. साल 2004 में अशोक रावत ने बीएसपी का खाता यहां से खोला. साल 2009 में जनता ने अशोक रावत पर फिर से भरोसा किया. 2014 में चली मोदी लहर में इस सीट पर लंबे समय के बाद बीजेपी कमल खिलाने में सफल रही. 2019 लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा गठबंधन के बाद इस सीट पर मुकाबता दिलचस्प हो गया है.