लोकसभा चुनाव 2019: मोहनलालगंज, जहां साल 1989 से जीत को तरसी कांग्रेस, इस बार कौन होगा किंग मेकर?
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लोकसभा चुनाव 2019: मोहनलालगंज, जहां साल 1989 से जीत को तरसी कांग्रेस, इस बार कौन होगा किंग मेकर?

इस सीट के तहत ज्यादातर क्षेत्र ग्रामीण होने के बावजूद यहां का लिंगानुपात देश के कई बड़े शहरों से भी बेहतर है. यहां प्रति 1,000 पुरुषों पर 906 महिलाएं हैं.

साल 2014 में इस सीट पर बीजेपी के कौशल किशोर यहां कमल खिलाने में सफल हुए थे.

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ और उन्नाव से सटी हुए मोहनलालगंज लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. एक दौर में इस सीट को कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था, लेकिन समय के साथ-साथ ये बदला और समाजवादी पार्टी ने इस सीट पर अपना प्रभुत्व बना दिया. लेकिन, साल 2014 में चली मोदी लहर ने सपा की जीत को हार में बदलकर इस सीट पर फूल खिला दिया. इस सीट के तहत ज्यादातर क्षेत्र ग्रामीण होने के बावजूद यहां का लिंगानुपात देश के कई बड़े शहरों से भी बेहतर है. यहां प्रति 1,000 पुरुषों पर 906 महिलाएं हैं. साल 2014 में इस सीट पर बीजेपी के कौशल किशोर यहां कमल खिलाने में सफल हुए थे. 

मोहनलालगंज के लोकसभा संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत 5 विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिनके नाम हैं सिधौली, मलीहाबाद, बक्षी का तालाब, सरजोनी नगर और मोहनलालगंज है. 

साल 2014 का ये था जनादेश
उत्तरप्रदेश की मोहनलालगंज लोकसभा सीट से मौजूदा सांसद बीजेपी के कौशल किशोर हैं. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कौशल किशोर ने बीएसपी के आरके चौधरी को हराया था. इस सीट पर दूसरे नंबर पर बीएसपी तीसरे पर एसपी, चौथे पर कांग्रेस और पांचवें पर आम आदमी पार्टी रही थी. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोहनलालगंज संसदीय सीट पर 60.75 प्रतिशत मतदान हुआ था.

मोहनलालगंज का राजनीतिक इतिहास
मोहनलालगंज सीट पर पहली बार साल 1962 में चुनाव हुआ था और कांग्रेस की गंगा देवी ने जीत के साथ इस सीट पर कब्जा किया. इसके बाद तीन बार लगातार उन्होंने इस सीट पर जीत दर्ज की. साल 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में भारतीय लोकदल के राम लाल कुरील यहां से जीते. साल 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में फिर कांग्रेस के कैलाश पति ने कांग्रेस को इस सीट से फिर विजय दिलाई और फिर लगातार तीन बार इसी सीट से सांसद बनें. साल 1984 में कांग्रेस नेता जगन्नाथ प्रसाद सासंद चुने गए. साल 1989 के लोकसभा चुनाव में जनता दल ने सरजू प्रसाद सरोज को मैदान में उतारकर कांग्रेस के लगातार जीत के सिलसिले को रोक दिया.

 

साल 1991 में बीजेपी के छोटे लाल ने यहां से चुनाव जीता. साल 1996 में फिर लोगों ने उन पर भरोसा जताया. 1998 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी ने अपना खाता खोला. साल 1998 से 2009 तक यहां एक छत्र समाजवादी पार्टी डंका बजाती रही. कई सालों के विजयी रथ को साल 2014 में सपा के इस विजयी रथ को बीजेपी के कौशल किशोर ने रोका और संसद तक पहुंचे. 

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