ये सीट कभी कांग्रेस की हुआ करती थी, लेकिन अमेठी और रायबरेली की तरह कांग्रेस करिश्मा नहीं कर सकी और ये सीट हाथ से निकल गई.
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नई दिल्ली: सुल्तानपुर की गिनती देश के प्राचीन शहरों में होती है. कहा जाता है कि भगवान राम के पुत्र कुश ने इसे बसाया था और अपने नाम पर कुशपुर नाम रखा था लेकिन, मुगलों के अधीन होने के बाद इसका नाम सुल्तानपुर रख दिया गया. ये सीट कभी कांग्रेस की हुआ करती थी, लेकिन अमेठी और रायबरेली की तरह कांग्रेस करिश्मा नहीं कर सकी और ये सीट हाथ से निकल गई. साल 2014 के चुनावी रण में बीजेपी के वरुण गांधी पर लोगों ने अपना विश्वास जताया और उन्हें अपनी प्रतिनिधि बनाकर संसद तक पहुंचाया.
2014 में ऐसा था मत
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सुल्तानपुर सीट पर 56.64 प्रतिशत मतदान हुआ था. साल 2014 में यहां बीजेपी और बीएसपी के बीच टक्कर रही. लेकिन, वरुण गांधी ने बीएसपी के पवन पाण्डेय को चुनावी दंगल में मात दी. वरुण गांधी ने बीएसपी उम्मीदवार को 1 लाख 78 हजार 902 वोटों से मात दी थी. साल 1998 के बाद बीजेपी इस सीट पर कमल खिलाने में कामयाब हुई थी.
ऐसा है राजनीतिक इतिहास
सुल्तानपुर लोकसभा सीट पर अभी तक 16 लोकसभा चुनाव और तीन बार उपचुनाव हुए हैं. पहली बार साल 1951 में बी.वी. केसकर यहां से पहले सांसद चुने गए. कांग्रेस ने इस क्षेत्र में लगातार 5 बार जीत हासिल की. साल 1977 में जनता पार्टी के जुलफिकुंरुल्ला कांग्रेस को हराकर सांसद बने. हालांकि, इस सीट पर 1980 में कांग्रेस ने एक बार फिर वापसी की और 1984 में दोबारा जीत मिली. साल 1991 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां अपनी जीत का आगाज किया और लगातार 3 बार बीजेपी के नेता यहां से सांसद बने. लेकिन साल 1999 में इस सीट से बीएसपी ने बाजी मारी और साल 2004 में भी इस सीट पर बीएसपी ने खाता खोला. साल 2009 में इसी सीट पर बड़ा उलटफेर हुआ और अरसे बाद यहां कांग्रेस जीती और डॉ. संजय सिंह यहां से एमपी चुने गए, लेकिन साल 2014 में ये सीट बीजेपी ने उनसे छीन ली और वरुण गांधी यहां के सासंद बने.