जानें वजह, लोकसभा चुनाव 2019 में क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं मुस्लिम मुद्दे!
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जानें वजह, लोकसभा चुनाव 2019 में क्यों नहीं उठाए जा रहे हैं मुस्लिम मुद्दे!

लोकसभा चुनाव 2019 में विपक्ष भी मुस्लिम मुद्दों पर चर्चा नहीं कर रहे हैं.

लोकसभा चुनाव 2019 में मुस्लिम मुद्दों पर चर्चा नहीं हो रही है. (प्रतीकात्मक फोटो)

पटनाः लोकसभा चुनाव 2019 के लिए राजनेताओं की जुबानी जंग जोरों पर हैं. राजनेता चुनाव जीतने के लिए कई मुद्दों को लेकर एक दूसरे पर निशाना साध रहे हैं. वहीं, मुस्लिमों का मुद्दा चुनाव में काफी अहम होता है, लेकिन इस बार चुनाव में यह मुद्दा कहीं भी नहीं दिख रहा है. पिछले कई चुनावों में गुजरात, भागलपुर, मेरठ दंगा सभी के जुबान पर रहते थे. लेकिन इस बार मुस्लिमों को लेकर कोई मुद्दा नहीं उठाया जा रहा है.

चुनाव में हर बार मुस्लिम और उससे जुड़े विषयों को राजनीतिक दल अपने-अपने हिसाब से कुरेदते रहते हैं. साल 2002 का गुजरात दंगा हो या फिर भागलपुर दंगा या फिर मेरठ का दंगा, बीजेपी छोड़कर सभी दलों ने इस पर खूब बहस की. लेकिन 2019 के चुनाव मुस्लिम से जुड़े विषयों को मुद्दा ही नहीं बनाया जा रहा है.

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों कांग्रेस सहित दूसरे राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में मुस्लिम नहीं हैं या फिर जानबूझकर इन मुद्दों को छोड़ दिया गया है. 

दरअसल, मुस्लिमों को लेकर देश में ये धारणा है कि यह समुदाय एकतरफा वोटिंग करता है. और जिस पक्ष में इनकी वोटिंग होती है वो पार्टी जीत जाती है. इसलिए पिछले 15 साल के अंदर हुए चुनाव को देखा जाए तो गुजरात दंगों को लेकर भाजपा पर उसके विरोधियों ने जमकर निशाना साधा. लेकिन साल 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत में सियासी मिजाज बदल गया. अब बीजेपी के साथ-साथ दूसरे दल पर चुनावी सभाओं में गुजरात या दूसरे दंगों का जिक्र करने से बच रहे हैं.

क्या ऐसा इसलिए हो रहा है कि कांग्रेस, राजद या दूसरे दलों द्वारा दंगों का जिक्र करने से हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण का डर सता रहा है. राजनीतिक विश्लेषक संजय त्रिपाठी भी मानते हैं कि पिछले कुछ सालों में देश की सोच बदली है. संजय त्रिपाठी के मुताबिक, मुस्लिम वोटों को लेकर भाजपा को छोड़कर राजद, कांग्रेस जैसी पार्टियां निश्चिंत रहती हैं. लिहाजा वो संवेदनशील मुद्दों का जिक्र कर हिन्दू मतों के ध्रुवीकरण का खतरा नहीं मोल ले सकती हैं.

वहीं दूसरी ओर आम जनता की प्राथमिकता में सड़क, रोजगार और व्यवसाय जैसे मुद्दे हैं. साल 2007 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान सोनिया गांधी ने तब के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मौत का सौदागर बता दिया था. जिसके बाद कहा जाता है कि वहां के हिन्दू वोटर्स आश्यर्यजनक रूप से भाजपा के पक्ष में आ गए और उसे शानदार जीत हासिल हुई. साल 2009 के लोकसभा चुनाव और साल 2014 के लोकसभा चुनाव में भी मुस्लिमों को भलाई को लेकर बहुत चर्चा हुई. राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को बार-बार गुजरात दंगों की याद दिलाकर खूब वोट बटोरा. लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू ये हुआ कि इन सब बहसों से भाजपा के पांव मजूबत होते गए.

पिछले 30-35 साल में शायद यह पहला चुनाव है जब चुनावी नारों और शोर में मुस्लिम प्राथमिकता में नहीं हैं. हालांकि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में सभी धर्मों और पंथों को साथ लेकर चलने की पुरानी नीति रही है. राजद के विधायक और पूर्व मंत्री विजय प्रकाश के मुताबिक, साल दर साल चुनाव में मुद्दे बदलते रहते हैं, लेकिन पार्टी हर समाज को साथ में लेकर चलती है. दूसरी ओर जदयू प्रवक्ता राजीव रंजन मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच साल में इतना काम कर दिया कि दूसरे दल चाहकर सांप्रदायिक राजनीति करने से बच रहे हैं.

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