क्या राज्यों के लिये नागरिकता कानून लागू न करना असंवैधानिक होगा?

नागरिकता संशोधन कानून के संसद में पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति की स्वीकृति भी प्राप्त हो चुकी है. लेकिन देश के कुछ राज्यों ने इसे लागू नही करने  का ऐलान किया है. लेकिन क्या देश का संविधान  इसकी अनुमति  देता है कि जिस कानून को संसद के दोनों सदनों ने पास किया है और जिसपर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो चुके हैं,  उसे  मानने से कोई भी राज्य कैसे इनकार कर सकता है?

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 13, 2019, 03:18 PM IST
    • 3 राज्यों ने किया नागरिकता क़ानून लागू करने से इंकार
    • संसद से पास और राष्ट्रपति समर्थित क़ानून राष्ट्रीय क़ानून है
    • राज्यों के पास नहीं हैं सीधे ही लागू न करने का अधिकार
    • लागू न करने हेतु अदालत में देनी होगी चुनौती
क्या राज्यों के लिये नागरिकता कानून लागू न करना असंवैधानिक होगा?

नई दिल्ली. नागरिकता संशोधन कानून को अब तक पश्चिम बंगाल, केरल और पंजाब सहित तीन राज्यों ने लागू करने से मना कर दिया है. क्या इन राज्यों के नागरिकता बिल लागू न करने से किसी तरह का संवैधानिक संकट खड़ा हो सकता है. आइये नज़र डालते हैं इस स्थिति से जुड़े तथ्यों और विकल्पों पर :

किन किन राज्यों ने बिल को लागू करने से इंकार किया

पश्चिम बंगाल और केरल के बाद अब पंजाब में भी बिल लागू न होने देने का ऐलान हो गया है. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने नागरिकता संशोधन कानून को धर्मनिरपेक्षता पर सीधा हमला करार दिया और साफ़ कर दिया कि वे इसे पंजाब में लागू नहीं होने देंगे.

वहीं केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन का बयान आया है कि बिल केरल में लागू नहीं होगा. उन्होंने कहा कि इस बिल के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,  सावरकर और गोलवलकर के हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाया जा रहा है.

इसके साथ ही पश्चिम बंगाल की तृणमूल सरकार के मंत्री डेरेक ओ ब्रायन ने नागरिकता संशोधन कानून को भारत विरोधी बताते हुए केंद्र सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया है और कहा है कि पश्चिम बंगाल में एनआरसी और कैब दोनों लागू नहीं किए जाएंगे. असम में नागरिकता संशोधन कानून का भारी विरोध हो रहा है और वहां इसके सरलता के साथ लागू होने की संभावना पर अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.

बिल को न अपनाने के क्या कारण दिए  जा रहे हैं?

नागरिकता संशोधन कानून का विरोध केंद्र सरकार के विरोध का ही विस्तार है क्योंकि सभी तीनो राज्य जिन्होंने इसे लागू करने से इंकार कर दिया है गैर-बीजेपी शासित राज्य हैं. पंजाब में सीएम अमरिंदर सिंह इसे धर्मनिरपेक्षता विरोधी कह कर लागू करने इंकार कर रहे हैं. 

जबकि पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी इसे पहले ही लागू करने से मना कर चुकी हैं. नागरिकता संशोधन कानून के लागू न करने के पीछे उनका कारण है कि यह बंगाल विरोधी तो है ही देश विरोधी भी है.

केरल की एलडीएफ सरकार के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने नागरिकता संशोधन कानून को अपने राज्य में लागू न होने देने के पीछे सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किये हैं. उनका कहना है कि यह प्रजातन्त्र-विरोधी क़ानून है जो आरएसएस और गोलवलकर के हिन्दू राष्ट्र के एजेंडा को लागू करने की दिशा में काम करेगा. .  

क्या बिल को राज्य में लागू न करना संविधान सम्मत होगा?

सीधे तौर पर अकारण ही नागरिकता संशोधन कानून को लागू करना भारत की संसद द्वारा पास क़ानून का अपमान ही है. किन्तु अपने अपने कारणों से बिल का विरोध करने वाले राज्य इसे लागू न करते हुए इसके औचित्य को अदालत में चुनौती दे सकते हैं. और तब ही उन्हें इसे अपने राज्य में लागू न करने का अधिकार मिल सकेगा यदि अदालत उनके समर्थन में फैसला देती है. अदालत में जाए बिना राष्ट्रीय नागरिकता संशोधन कानून को लागू न करना असंवैधानिक ही होगा.

जहां एक तरफ कांग्रेस नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में अदालत जाने की तैयारी कर रही है वहीं केरल और पश्चिम बंगाल की सरकारें भी इसके विरोध में अदालत में याचिका दायर कर सकती हैं.

क्या विकल्प हैं केंद्र के पास?

सरकार ने संसद के दोनों सदनों से नागरिकता संशोधन कानून को पास कराने के साथ ही राष्ट्रपति का समर्थन भी प्राप्त कर लिया है. अब यह क़ानून देश भर में लागू हो गया है.

एक तरफ केंद्र सरकार को असम और त्रिपुरा में नागरिकता क़ानून के विरोध से निपटना है दूसरी ओर जो राज्य इसे लागू करने से इंकार कर रहे हैं उनकी असहमति को सहमति में बदलने का प्रयास करना है ताकि यह आवश्यक क़ानून सारे देश में एक साथ लागू हो सके.  लेकिन गैर-भाजपाई सरकारों को समझाना और इसे लागू करने के लिए मनाना उसके लिए आसान नहीं होगा.

ऐसी हालत में जो भी राज्य सरकार इसका विरोध करेगी और इसे लागू करने से इंकार करेगी उसके खिलाफ केंद्र के पास दो ही विकल्प बचते हैं. पहले विकल्प के तौर पर वे इन राज्यों के देने वाली आर्थिक मदद बंद करने की धमकी का इस्तेमाल करके इसे लागू कराएं. यह विकल्प व्यवहारिक नहीं है क्योंकि विरोध करने वाले इस स्थिति के लिए पहले ही तैयार हैं.

दूसरे विकल्प के तौर पर केंद्र क़ानून लागू न करने वाली ऐसी सरकार को भंग करके वहां राष्ट्रपति शासन लगा कर क़ानून को लागू कर सकती है. किन्तु न केवल यह जल्दबाज़ी होगी बल्कि अव्यवहारिक भी होगा. और मोदी सरकार इतना कठोर कदम उठा कर न जनता की सहानुभूति खोना चाहेगी न संपूर्ण विपक्ष की कोपभाजन बनना चाहेगी. इसलिए वह भी अदालत का दरवाज़ा खटखटा कर इस क़ानून को इन राज्यों में लागू करने के विकल्प तलाश सकती है. 

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