Trending Photos
Ram Sita Stories in Hindi: वनवास काल में एक बार श्री राम रंग-बिरंगे सुंदर फूल चुनकर अपने हाथों से फूलों से तरह-तरह के गहने बना रहे थे और स्फटिक शिला पर बैठी हुईं सीता जी को पहना रहे थे. यह दृश्य संपूर्ण चराचर जगत के प्राणियों ने देखा. इन देखने वालों में देवराज इंद्र का पुत्र जयंत भी था. जयंत श्री रघुनाथ जी के बल की थाह लेना चाहता था इसलिए उसने कौवे का रूप धरा और वहां आकर एक झटके में सीता जी के चरणों में चोंच मार कर उड़ गया. माता सीता के पैरों से रक्त बहने लगा तब श्री राम ने धनुष पर सींक (सरकंडे) का बाण रख कर चला दिया. जब मंत्र से प्रेरित बाण चला तो कौआ रूपी जयंत भागते हुए अपने पिता के पास असली रूप में पहुंचा और अपने को बचाने का आग्रह किया.
जैसे ही इंद्र ने जयंत की असलियत जानी कि वह तो श्री राम विरोधी है तो उन्होंने उसे अपने पास ठहरने ही नहीं दिया. उन्होंने धिक्कारते हुए कहा, श्री राम तो अत्यंत कृपालु हैं, दीनों के प्रति उनके मन में सदैव प्रेम रहता है फिर भी तूने उन्हें छलने का प्रयास किया. अपने पिता के वचन सुनकर जयंत निराश और भयभीत हो गया. खुद को बचाने के लिए वह ब्रह्मलोक, शिव लोक आदि लोकों में भय और शोक से व्याकुल होकर भागता रहा लेकिन किसी ने भी उसे बैठने तक को नहीं कहा, शरण देना दूर की बात है.
श्री राम के द्रोही को कोई अपने साथ नहीं रखना चाहता क्योंकि रामद्रोही के लिए माता मृत्यु के समान, पिता यमराज के समान और अमृत विष के समान हो जाता है. ऐसे लोगों के लिए मित्र भी शत्रुओं जैसा व्यवहार करने लगता है, देवनदी गंगा उसके लिए यमपुरी की नदी हो जाती है और समस्त संसार उसके लिए अग्नि से भी अधिक जलाने वाला हो जाता है.
यह भी पढ़ें: Name Astrology: इन लोगों पर रहती है धन कुबेर की असीम कृपा, पाते हैं बेशुमार पैसा! नाम से कर लें चेक
नारद जी ने जब देखा कि जयंत शोक और भय से व्याकुल है और कोई भी उसे बचाने को नहीं तैयार है तो उन्हें उस पर दया आ गई. संतों का चित्त तो वैसे भी बड़ा कोमल होता है. जयंत का कष्ट देख कर दया की प्रतिमूर्ति नारद मुनि ने जयंत से कहा, 'पूरे संसार में एक ही दयानिधान श्री राम हैं जो तुम्हें इस कष्ट से बचा सकते हैं, वे तो क्षमा के सागर हैं. तुम उनके जाकर क्षमा मांगो.'
परेशान जयंत वन में सीधे श्री राम के पास पहुंचा और जोर से आवाज लगाई, 'हे शरणागत के हितकारी, मेरी रक्षा कीजिए.' साथ ही उसने श्री राम के चरण पकड़ लिए और कहा कि मैं मंदबुद्धि आपके अतुलित बल और अतुलित सामर्थ्य को नहीं जान सका, अपने कर्म का फल मैंने भोग लिया है. उसकी दुख भरी आवाज सुनकर कृपानिधान श्री राम ने चलाए गए बाण को उसकी आंख की ओर भेज दिया जिससे उसकी एक आंख फूट गई किंतु उसका जीवन बच गया. श्री राम तो करुणा के सागर हैं और वे किसी को कष्ट में नहीं देख सकते किंतु उनके द्वारा चलाया गया ब्रह्मबाण भी बिना लक्ष्य भेदे वापस नहीं आ सकता था.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)