चांद की मिट्टी से पीने का पानी बना रहा चीन, क्या ड्रैगन ने कर ली है वहां बसने की तैयारी?
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चांद की मिट्टी से पीने का पानी बना रहा चीन, क्या ड्रैगन ने कर ली है वहां बसने की तैयारी?

China Moon Base: अमेरिका की तरह चीन भी चांद पर एक बेस बनाना चाहता है. उसके हालिया मिशनों ने चांद की जो मिट्टी लाई गई, चीनी वैज्ञानिक उससे पीने का पानी बना रहे हैं.

चांद की मिट्टी से पीने का पानी बना रहा चीन, क्या ड्रैगन ने कर ली है वहां बसने की तैयारी?

Science News: दुनियाभर के वैज्ञानिक उन तरीकों को खोजने में लगे हैं जिससे चंद्रमा को इंसान के रहने लायक बनाया जा सके. इंसान वहां बस्ती बनाकर लंबे समय तक रह सके, यह अब तक सपना ही है. हालांकि, चीनी रिसर्चर्स इस दिशा में बाकी दुनिया से काफी आगे हैं. वे ऐसा सिस्टम बना रहे हैं जिससे चंद्रमा की मिट्टी से वहां पर पानी बनाया जाएगा. चीनी वैज्ञानिकों की एक टीम ने चंद्रमा की मिट्टी से पानी बनाने का तरीका विकसित किया है.

चांद की मिट्टी से कैसे बन रहा पानी?

इस टीम का नेतृत्व चीनी विज्ञान अकादमी (CAS) के निंग्बो इंस्टीट्यूट ऑफ मैटेरियल्स टेक्नोलॉजी एंड इंजीनियरिंग (NIMTE) में प्रोफेसर वांग जुनकियांग कर रहे हैं. रिसर्चर्स ने एंडोजीनस हाइड्रोजन और लूनर रेगोलिथ के बीच एक अनोखी रासायनिक प्रतिक्रिया का उपयोग करके चंद्रमा की सतह पर बड़े पैमाने पर पानी के उत्पादन की रणनीति बनाई है. यह प्रतिक्रिया पीने के पानी को निकालने में मदद करेगी. प्रोफेसर वांग ने कहा, 'हमने अपनी स्टडी में चांग'ई-5 मिशन द्वारा लाए गए लूनर रेगोलिथ नमूनों का इस्तेमाल किया.

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कितना पानी बन सकता है?

प्रयोगों में यह देखा गया कि जब चंद्रमा के रेगोलिथ को खासतौर पर डिजाइन किए गए अवतल दर्पणों का उपयोग करके 1,200 K (केल्विन) से ऊपर गर्म किया जाता है, तो एक ग्राम पिघला हुआ लूनर रेगोलिथ बनता है, जो लगभग 51 से 76 मिलीग्राम पानी पैदा कर सकता है. इसके अनुसार, एक टन लूनर रेगोलिथ 50 किलोग्राम से अधिक पानी पैदा कर सकता है, जो पीने के पानी की सौ 500 मिलीलीटर की बोतलों के बराबर है.

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रिसर्चर ने यह भी कहा कि लूनर इल्मेनाइट (FeTiO3) पानी निकालने के लिए एक महत्वपूर्ण खनिज है. यह खनिज, लूनर रेगोलिथ में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. चंद्रमा की मिट्टी का उपयोग करके पानी उत्पन्न करने वाले वैज्ञानिक इसे विद्युत रासायनिक रूप से हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विघटित कर सकते हैं. इससे चंद्रमा पर रहने वालों के लिए सांस लेने योग्य हवा और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत, दोनों मिल सकते हैं.

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