Science News in Hindi: मानव विकास में एमिलेज नामक एंजाइम का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. इसी एंजाइम की वजह से इंसानों को बदली फूड सप्लाई के हिसाब से खुद को ढालने में मदद मिली.
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Science News: बदलते खान-पान के साथ कैसे मानव शरीर में बदलाव आते गए, दो नई स्टडीज में यह बताने की कोशिश की गई है. जब आप स्टार्च का सेवन करते हैं, फिर चाहे वह पके हुए चावल हों, फ्रेंज फ्राइज हों या फिर मोमोज... जैसे ही भोजन आपके मुंह में जाता है, सलाइवा में मौजूद एमिलेज नाम का एंजाइम स्टार्च को तोड़ना शुरू कर देता है. इस एंजाइम ने मानव विकास में अहम भूमिका निभाई है. दोनों नई स्टडीज यह बताती हैं हमारे पूर्वजों ने दो खास मौकों पर अधिक एमिलेज जीन कैरी करना शुरू किया. पहला मौका कई हजार साल पहले आया, शायद आग की खोज के बाद. दूसरा मौका सिर्फ 12000 साल पहले, कृषि क्रांति के बाद आया.
क्यों खास है एमिलेज एंजाइम?
वैज्ञानिकों को यह बात साठ के दशक से मालूम थी कि कुछ लोगों के सलाइवा में एक्स्ट्रा एमिलेज बनता है. लेकिन एमिजेल जीन को लेकर रिसर्च ने हाल के सालों में ही रफ्तार पकड़ी है. दो नई स्टडीज में, लोगों के DNAs के भीतर एमिलेज की कॉपियों का बड़ा कैटलॉग तैयार किया गया है. कुछ लोगों में क्रोमोसोम 1 की हर कॉपी पर एक एमिलेज जीन था, जबकि अधिकांश लोगों में इससे अधिक जीन थे - कुछ मामलों में, 11 कॉपियां भी मिलीं.
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दोनों स्टडीज ने जीवाश्म सबूतों पर गौर किया कि कब (और कैसे) मानव के शुरुआती पूर्वजों को अधिक एमिलेज जीन हासिल हुए. उनकी रिसर्च से संकेत मिलता है कि प्राकृतिक चयन ने हमारे पूर्वजों को अधिक एमिलेज जीन के साथ अनुकूल बनाना शुरू कर दिया होगा. यह लगभग उस समय हुआ जब मनुष्य ने सैकड़ों हज़ार साल पहले आग लगाना और उसे नियंत्रित करना शुरू किया था. खाना पकाना शुरू करने से पहले, मनुष्य शायद स्टार्च वाले पौधों का सेवन नहीं करते थे, क्योंकि उन्हें चबाना और पचाना कठिन होता.
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एमिलेज जीन कम तो 'शुगर' का खतरा
वैज्ञानिकों को इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि शिकारियों को अतिरिक्त एमिलेज जीन होने से कोई विकासवादी लाभ मिला. लेकिन, लगभग 12000 साल पहले इसमें बड़ा बदलाव आया. तब कई समाजों ने गेहूं, जौ और आलू जैसे स्टार्च युक्त खाद्य पदार्थों सहित फसलों को उगाना शुरू किया.
Science पत्रिका में छपी एक स्टडी का नेतृत्व करने वाले, बफैलो विश्वविद्यालय के जेनेटिसिस्ट उमर गोककुमेन ने अनुमान लगाया कि आज जिन लोगों में एमिलेज जीन कम हैं, वे मधुमेह जैसी बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते हैं.