अतीत की गलियों में बहुत अधिक भटकने के कारण हम वर्तमान से दूर होते जा रहे हैं. वर्तमान से दूरी होने का अर्थ अतीत की घुटन और भविष्य से भटकाव है.
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कौन है, जिसे जीवन में कभी कड़वे घूंट नहीं पीने पड़े. कभी, जिंदगी की कड़वी सच्चाई से दो-चार नहीं होना पड़ा. कभी ऐसा नहीं लगा कि काश! यह नहीं सुनना पड़ता. काश! ऐसा नहीं हुआ होता, तुमने ऐसा नहीं समझा होता. असल में जिंदगी में 'ऐसा नहीं हुआ होता' के लिए कोई जगह नहीं होती. यह तो जैसी होती है, वैसी होती है.
जिंदगी यथार्थ का ठोस दस्तावेज है. इसमें अफसोस के लिए अतीत की यादें तो हो सकती हैं, लेकिन यथार्थ की गति को अतीत से कोई अंतर नहीं पड़ता. जो होता है, जीवन उसके सहारे बढ़ने का नाम है. ऐसा हुआ होता, तो वैसा हुआ होता, जैसी चीजें जिंदगी पर बहुत कम असर डालती हैं.
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हां, इतना जरूर है कि अतीत की गलियों में बहुत अधिक भटकने के कारण हम वर्तमान से दूर होते जा रहे हैं. वर्तमान से दूर होने का अर्थ अतीत की घुटन और भविष्य से भटकाव है. जिंदगी की कला, सारे सूत्र केवल वर्तमान में सिमटे हैं. अगर हम आज को सघन प्रसन्नता से जीना सीख सकें तो अतीत, भविष्य दोनों स्वत: सुखद हो जाएंगे.
कड़वे पल. ऐसा वक़्त जब चीजें हाथ से फिसलती हुई मालूम होती हैं. हर तरफ से आपको निशाना बनाने की कोशिश की जाती है, उस समय हम खुद को कैसे संभालते हैं, इससे ही जीवन की दिशा तय होती है.
आज एक छोटी सी कहानी बॉलीवुड से...
मशहूर निर्माता-निर्देशक राकेश रोशन ने अभिनेता के रूप में अपनी असफल पारी के बाद जब फिल्म बनाने का फैसला किया तो एक ऐसा दौर भी आया जब उनके दोस्त, मीडिया सब उनसे मुंह चुराने लगे. इसी दौरान बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म 'खुदगर्ज' की रिलीज पार्टी थी, ये फिल्म के मल्टीस्टार फिल्म थी. इस फिल्म में मुख्य भूमिका में जीतेंद्र और शत्रुघ्न सिन्हा थे.
उस समय की एक मशहूर फिल्म मैगजीन के फोटोग्राफर जो उस पार्टी को कवर कर रहे थे, उन्होंने जीतेंद्र, शत्रुघ्न सिन्हा के साथ खड़े राकेश रोशन से अलग होने को कहा, क्योंकि वह कवर पर दो सफल सितारों के साथ एक असफल अभिनेता की तस्वीर नहीं लेना चाहते थे.
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जैसे ही उन्होंने राकेश रोशन से अलग होने को कहा, वहीं पास खड़ी उनकी पत्नी की आंखों में यह सुनकर आंसू आ गए. राकेश को भी बुरा लगा. लेकिन समय की नजाकत देखते हुए वह उस फोटो फ्रेम से अलग हो गए. बिना कुछ कहे नम आंखों, दिल को लगी ठेस के साथ वह थोड़ी दूर खिसक गए. उनके दोस्त जीतेंद्र ,शत्रुघ्न को भी यह बात पसंद नहीं आई, लेकिन राकेश रोशन किसी तरह का विवाद नहीं चाहते थे.
कुछ दिन बाद, उनकी फिल्म सुपरहिट हो गई. उसके बाद फिल्म की सक्सेस पार्टी का आयोजन हुआ, तो सारे फोटोग्राफर, उन्हें फ्रेम से हटाने वाले भी इसमें शामिल थे, उन्हें हर फ्रेम में लाने में लगे थे. राकेश ने उनकी ओर इशारा करते हुए पत्नी पिंकी से कहा, 'मैं वापस इंडस्ट्री में आ गया हूं.'
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आगे चलकर राकेश रोशन ने खून भरी मांग, काला बाजार, किशन कन्हैया, करण-अर्जुन, कोई मिल गया, कहो न प्यार है, कृष सीरीज जैसी फिल्मों से भारी सफलता हासिल की. लेकिन वह दिन जब उन पर मीडिया की कटु टिप्पणी हो रही थी, उसे उन्होंने कैसे लिया. अपनी कामयाबी के लिए रास्ता कैसे बुना. उनकी कामयाबी के पीछे यह सबसे बड़ी चीज है.
अब थोड़ी देर के लिए राकेश रोशन के उस समय को अपनी जिंदगी के अलग-अलग मोड़ पर मिलने वाले समय की जगह रखकर देखिए. राकेश रोशन का असफलता के दिनों का यह किस्सा हमें 'सुहाना सफर विद अन्नू कपूर 'से मिला. लेकिन न जाने ऐसे कितने किस्से, कड़वे घूंट पीकर वह कामयाबी तक पहुंचे होंगे, यह केवल वही जानते हैं.
राकेश रोशन बेहद लोकप्रिय, सफल व्यक्ति हैं. इसलिए इस किस्से का यहां जिक्र हुआ. लेकिन असल में जिंदगी ऐसे असंख्य कड़वे घूंट पीने के बाद मिले अमृत का ही हासिल है. कुछ पाने, जिद पूरी करने, सपने की चाह कभी मीठे वचनों से पूरी नहीं होती. इसलिए खुद को तैयार रखना चाहिए, ऐसे पलों के लिए जो हमें कड़वाहट देते हैं. कमजोर बनाते हैं. जिससे इनका सामना करने में आसानी हो.
जिंदगी हौसले का नाम है. किसी के सामने सरेंडर नहीं करना है. किसी भी 'मौसम' में नहीं, क्योंकि मौसम तो आसानी से गुजर जाते हैं लेकिन जिंदगी अगर पटरी से उतर जाए तो उसे वापस आने में बहुत वक्त लगता है.
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