किस्सा-ए-कंज्यूमर: ...क्योंकि स्टूडेंट भी कंज्यूमर है
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किस्सा-ए-कंज्यूमर: ...क्योंकि स्टूडेंट भी कंज्यूमर है

 ऐसे में कोचिंग इंस्टूट्यूट में पढ़ने वाला छात्र भी कंज्यूमर से कम नहीं. अगर सेवा में कमी है तो वो कॉलेज या इंस्टीट्यूट के खिलाफ केस कर सकता है. 

किस्सा-ए-कंज्यूमर: ...क्योंकि स्टूडेंट भी कंज्यूमर है

वो डॉक्टर बनना चाहता था. तैयारी के लिए उसने कोचिंग की. फिर एक जाने-माने मेडिकल कॉलेज में टेस्ट दिया. लेकिन टेस्ट में फेल हो गया. उसने अपने कोचिंग इंस्टीट्यूट पर केस ठोक दिया. और केस जीत भी गया. कंज्यूमर फोरम ने उसे बाकायदा 77 हजार रुपए वापस दिलवाए. जी हां, ये कहानी चौंकाने वाली है. उन सभी को खुश करने वाली है जो कोचिंग इंस्टीट्यूट्स की मोटी-मोटी फीस भरते हैं. लेकिन कोचिंग इंस्टीट्यूट से पैसे निकाल लेना इतना आसान भी नहीं है. ये मगरमच्छ के जबड़े से शिकार छीन लेने वाली बात है. तो फिर शंकर राव ने ये कैसे किया ?

पहले पूरा किस्सा जानिए
हैदराबाद के रहने वाले 28 साल के आर शंकर राव डॉक्टर बनना चाहते थे. उन्होंने हैदराबाद के चिक्कड़पल्ली में चलने वाले भाटिया मेडिकल इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया. फीस के तौर पर इंस्टीट्यूट को 32,000 रुपए चुकाए. लेकिन कोचिंग पूरी होने के बाद जब शंकर ने AIIMS में दाखिले के लिए इम्तिहान दिया, तो वो फेल हो गए. शंकर ने इसके लिए अपने कोचिंग इंस्टीट्यूट को जिम्मेदार ठहराया.  हैदराबाद कंज्यूमर फोरम में उन्होंने शिकायत की कोचिंग इंस्टीट्यूट की लापरवाही की वजह से वो फेल हो गए क्योंकि इंस्टीट्यूट  जैसा वादा किया था वैसी कोचिंग उन्हें बिल्कुल नहीं दी गई. 

शिकायतकर्ता ने क्या कहा?
शंकर के मुताबिक कोचिंग इंस्टीट्यूट ने उनसे वादा किया था कि उन्हें पढ़ाने वालों में जाने माने पैथलॉजिस्ट डॉक्टर देवेश मिश्रा शामिल होंगे लेकिन असल में डॉक्टर मिश्रा की एक भी क्लास नहीं हुई. इतना ही नहीं, साल की शुरुआत में कोचिंग इंस्टीट्यूट ने जिस सिलेबस का वादा किया था वो सिलेबस पूरा भी नहीं कराया गया. इस तरह कोचिंग की लापरवाही और सेवा में गड़बड़ी की वजह से शंकर का पैसा भी बर्बाद हुआ और टेस्ट भी खराब हुआ.

कोचिंग इंस्टीट्यूट ने क्या दलील दी?
उधर भाटिया इंस्टीट्यूट शंकर की हर शिकायत को सिरे से खारिज करता रहा. इंस्टीट्यूट का दावा था कि डॉक्टर देवेश मिश्रा पढ़ाएंगे ऐसा कोई वादा किया ही नहीं गया था, कोचिंग की क्वॉलिटी में भी कोई कमी नहीं रखी गई थी. बल्कि इंस्टीट्यूट ने तो मेन टॉपिक्स कवर करने के बाद कई एक्सट्रा टॉपिक भी पढ़ाए, लिहाजा शंकर की शिकायत बेमानी है.   

कंज्यूमर फोरम किस नतीजे पर पहुंचा? 
इस केस में अहम सबूत बने कुछ ई-मेल्स. दरअसल शंकर ने पढ़ाई के दौरान ही कोचिंग इंस्टीट्यूट को कई शिकायती मेल किए थे लेकिन इंस्टीट्यूट ने उनपर कोई ध्यान नहीं दिया था. हैदराबाद कंज्यूमर फोरम ने कहा कि इंस्टीट्यूट चाहता तो कुछ पैसे काटकर शिकायतकर्ता को उसके पैसे रिफंड करके छोड़ सकता था लेकिन उसने शंकर को लगातार असंतुष्ट बनाए रखा. इसलिए इसे सेवा में कमी माना जाएगा. दिसंबर 2018 में फोरम ने अपने आदेश में कहा- 'कोचिंग इंस्टीट्यूट ने अगर पढ़ाई के एक खास स्तर का वादा किया है तो वो वादा सावधानी से पूरा करना चाहिए. शिकायतकर्ता को एम्स में सीट दिलाना कोचिंग इंस्टीट्यूट की जिम्मेदारी नहीं लेकिन जो वादे किए गए उसमें कमी नहीं रखनी चाहिए थी.' इंस्टीट्यूट को आदेश दिया गया कि वो शंकर की फीस यानी 45000 रुपए उन्हें वापस करे, साथ ही बतौर मुआवजा 32000 रुपए और चुकाए. 

दावे बड़े और दर्शन छोटे
ये हकीकत किसी से छुपी नहीं है कि कोचिंग आज देश में कितना बड़ा कारोबार बन चुका है. पैसे कमाने की होड़ ऐसी है कि ज्यादातर कोचिंग इंस्टीट्यूट्स बेस्ट फेसिलिटी से लेकर छात्रों को टॉपर बनाने तक के दावे करते हैं. लेकिन आमतौर पर देखा यही जाता है कि ये दावे हवा-हवाई साबित होते हैं. जैसी चमचमाती तस्वीर दिखाई जाती है वैसी असल में होती नहीं है. और इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है छात्र को, जो इंस्टीट्यूट के वादों पर भरोसा करके अपना वक्त, पैसा और ऊर्जा सब कुर्बान करता है. ऐसे में कोचिंग इंस्टूट्यूट में पढ़ने वाला छात्र भी कंज्यूमर से कम नहीं. अगर सेवा में कमी है तो वो कॉलेज या इंस्टीट्यूट के खिलाफ केस कर सकता है. 

किन हालात में कोचिंग इंस्टीट्यूट दोषी होगा?
अगर कोई कोचिंग इंस्टीट्यूट किसी बड़े संस्थान के साथ एफिलिएशन का झूठा दावा करता है, अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को लेकर झूठा विज्ञापन करता है या फिर यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन की गाइडलाइंस की अनदेखी करता है तो इसे सेवा में कमी या 'अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिस' माना जाएगा. इतना ही नहीं, परीक्षा में देरी करने वाले, रिजल्ट्स बताने में देरी करने वाले या फिर बिना मान्यता प्राप्त कोर्स चलाने वाले इंस्टूट्यूट्स के खिलाफ भी आप कंज्यूमर फोरम का दरवाजा खटखटा सकते हैं. एक और जरूरी बात-अगर आप एक जगह एडमिशन लेने के बाद दूसरे इंस्टीट्यूट में जाने का फैसला करते हैं तो भी आप रिफंड के पूरे हकदार होंगे. ये और बात है कि ऐसे मामलों में ज्यादातर इंस्टीट्यूट और कॉलेज नियम शर्तों में फंसाकर कंज्यूमर की जेब काटते रहते हैं. 

कोचिंग इंस्टीट्यूट कब दोषी नहीं होगा?
याद रखिए, छात्र को पास कराना कोचिंग इंस्टीट्यूट की जिम्मेदारी नहीं है, उसका जिम्मा सिर्फ कोचिंग से जुड़े अपने वादों को पूरा करना है. किसी छात्र को एडमिशन देना है या नहीं ये फैसला भी पूरी तरह इंस्टीट्यूट का होगा. एडमिशन क्राइटेरिया क्या होगा, कोर्स का ड्यूरेशन क्या होगा, फीस कितनी होगी, सीटें कितनी मुहैया हैं ये भी पूरी तरह इंस्टीट्यूट का अधिकार है. लिहाजा इससे जुड़ी शिकायतें भी कंज्यूमर फोरम नहीं सुनेगा. 

(लेखक गिरिजेश कुमार ज़ी बिज़नेस से जुड़े हैं.)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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