गाय माता है या मांस
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गाय माता है या मांस

गाय माता है या मांस

गाय का मतलब माता या गाय का मतलब मांस, पूरे देश में ये सवाल आग की तरह फैल रहा है। वैसे ये सवाल कई साल से चल रहा है लेकिन उत्तर प्रदेश के दादरी में हुई एक घटना ने आग में धी डालने का काम किया। आलम ये है कि इस धटना के बाद साहित्यकारों से लेकर फिल्मकारों की एक जमात देश में असहिष्णुता का महौल बताकर अवार्ड वापसी की होड़ में लगी है। दूसरी तरफ अपने सेकुलर साबित करने में लगी एक भीड़ जगह जगह बीफ पार्टी की दावत देने मे लगी है। एक तरफ सियासत की आग औऱ दूसरी तरफ मौत की कटार के बीच दुनिया का सबसे सीधा पशु कहलाने वाली गाय फंसी है। दुर्भाग्य की बात ये है कि गाय को सिर्फ धर्म से जोड़कर उसे बचाने की वकालत करने वाले गाय के लिए सबसे बड़ा खतरा पैदा कर रहे है लेकिन गाय को मारने और बचाने वालों को ये जानकर हैरानी होगी कि एक बेकार गाय इस देश के एक बेरोजगार को रोजगार दे सकती है। एक गाय गरीबी से तंग आकर खुदकशी कर रहे किसान को नई जिदगी दे सकती है। यही नही पेट्रोल औऱ डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों पर भी गाय बड़े आराम से लगाम लगा सकती है।

ये बातें किसी धर्मशास्त्र में नही लिखी न ही ये कोरा ज्ञान हैभारत में वो गाय जो दूध नही दे सकती या जिनके हाथ पैर खराब हो गए है सैकड़ों लोग ऐसी गायों से करोड़ों रूपयें सालाना कमा रहे हैं। हरियाणा के हिसार में बनी लाडवा गौशाला बकायदा इसका जीता जागता उदहारण है। इस गौशाला में लगभग 1100 गाय है जिनमें 1000 से ज्यादा गाय दूध नही दे सकती है, लेकिन इस गौशाला ने गाय के कामधेनु स्वरूप को सबके सामने ला खड़ा किया है। समाज की नजर वो गाय जो बेकार हो चुकी थी इस गौशाला के प्रधान आनंद राज उन बेकार गायों के गोबर औऱ गोमुत्र से सालाना साढ़े तीन करोड़ रूपयें की कमाई कर रहे हैं। आनंद अपनी सफलता का फॉर्मूला बताते हुए कहते है कि एक बेकार गाय हर महीने सिर्फ गोबर और गोमुत्र से पांच हजार रूपयें की कमाई करा सकती है। बहुत साधारण तरीके से बताएं तो एक बेकार गाय से रोजाना पांच से तास लीटर गोमुत्र मिलता है, जिसे सीधे बाजार मे बेचा जाए तो पांच रुपये लीटर की कीमत से बिकता है लेकिन घर में ही एक साघारण भठ्ठी लगाकर अगर इसका अर्क बना लिया जाए तो इसकी कीमत 250 रू लीटर हो जाती है। आज वक्त में डायबटीज, टी बी और यहां तक की कैंसर में गोमूत्र के इस अर्क की बाजार में मांग लगातार बढ़ती जा रही है। लाडवा गौशाला बाकायदा बेरोजगार नौजवानों को इसका मुफ्त में प्रशिक्षण भी दे रही है। यही नही गोबर से कीटनाशक, खाद तो बन ही रही है। अभी बाजार में गोमूत्र से बने फेस पैक, फेस क्रीम से लेकर शैंपू तक आ गए हैं। ताज्जुब की बात ये है कि सब प्रोडक्टस बेकार गायों से बन रहे हैं लेकिन अफसोस की बात ये है कि बीफ खाने का सरेआम दम भरने वाले देश के पूर्व न्यायधीश हो या फिर विधायक पढ़े लिखे और देश के जिम्मेदार नागरिक होने के बावजूद इनमें से किसी ने भी गाय के बेरोजगारी और गरीबी दूर करने वाले इस फायदे को नहीं बताया।

गाय एक तरफ रोजगार दे रही है तो दूसरी तरफ खेती में लगी देश की 118.9 मिलियन आबादी के लिए उम्मीद की सबसे बड़ी किरण है। कभी पानी की कमी तो कभी कैमिकल फर्टीलाइजरर्स की वजह से दिन ब दिन खेती की जमीन पर दो तरफा मार पड़ती है, लेकिन गाय के गोबर से बनने वाली खाद औऱ कीटनाशक जमीन को ऊपजाउ बनाने में सबसे ज्यादा मददगार साबित होते हैं। यही नही हरियाणा के कुछ खेते में गोबर और गोमूत्र से बने बॉयो वॉटर के इस्तेमाल से जमीन की उर्वरक क्षमता मे जबरदस्त इजा़फा हुआ। महंगे फर्टिलाइजर के मुकाबले सस्ते या मुफ्त में बनने वाला बायो वॉटर खेतो के लिए अमृत है लेकिन अफसोस की बात ये है कि गाय को मार कर खाने वालों या उसे बचाने की वकालत करने वालों ने गाय के इस पक्ष का कभी जिक्र नहीं किया।

गाय के गोबर ने ईधन के क्षेत्र में भी क्रांति ला दी है। अमेरिका और जर्मनी में गोबर से बनी बायो गैस से गाड़ियां सड़कों पर दौड़ रही है। एक आंकड़े के मुताबिक देश मे इस वक्त लगभग 180 मिलियन मवेशी हैं जिनके गोबर से 85 मिलियन स्टैंर्ड क्यूबिक गैस रोजाना मिल सकती है। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि ये गैस देश भर की बस, कार समेत तमाम गाड़ियों को चलाने में सक्षम होगी। सोचिये कि अगर बायो गैस का उत्पादन इस स्तर पर होता है तो एक तो खाड़ी देशों पर हमारी निर्भरता खत्म होगी। दूसरी तरफ पेट्रोल, डीजल के लगातार बढ़ते दामों से लोगों को निजात मिल सकेगी। वैसे अब बायो गैस पर सरकार काफी गंभीरता से काम कर रही है। नेशनल बायो गैस मिशन के तहत केंद्र सरकार पूरे देश मे 10 बिलियन बायो गैस प्लांट लगाने की तैयारी कर रही है। इसका सबसे बड़ा फायदा एक तरफ रसोई गैस में मिलेगा तो दूसरा इसकी मदद से ऊर्जा का निर्माण किया जा सकेगा1 एक अनुमान के मुताबिक अगर किसी के पास पांच गाय है तो उसे रोजाना तीस किलो गोबर मिलेगा जिसकी मदद से डेढ़ मीटर क्यूबिक गैस बनाई जा सकती है जो रोजाना दो परिवारों की ज़रूरतों के लिए काफी है।

लेकिन देश के समझदार लोगों से लेकर मीडिया तक ने मांस खाने या न खाने पर तो चर्चा की कुछ ने तो धी डालते हुए गाय के मरने के बाद उसके फायदे भी गिना दिए लेकिन गरीबी से मरते किसानों को गाय कैसे बचा सकती है या फिर बायो गैस ईधन के तौर पर देश की अर्थ व्यवस्था को कैसे मजबूत कर सकती है या फिर पर्यावरण के लिए कैसे मददगार साबित हो सकती है इस पर किसी ने कभी ने चर्चा नही की। वैसे एक रिसर्च के मुताबिक गाय के एक किलो मांस पर 15,500 लीटर पानी बर्बाद होता है। यही नही 1920 में वैज्ञानिक डॉ विलियम एल्ब्रेस्ट के मुताबिक जब जमीन में से कोई पौधा आता है तो अपने साथ जमीन से खनिज ले आता है। ऐसे में गाय के गोबर के जरिए मिट्टी में खनिज पहुचते उसकी उर्वकता बढ़ाने के साथ नमी भी बढ़ाते है जिसका असर ग्लोब्ल वॉर्मिंग पर भी पड़ता है लेकिन स्वास्थ्य से लेकर अर्थव्यवस्था और पर्यावरण के लिए कामधेनु रूपी गाय के इन गुणों पर कोई चर्चा नही करता बस हर कोई एक ही बात पर अड़ा है। गाय माता है या मांस...।

(लेखक ज़ी न्‍यूज में डिप्‍टी एडिटर हैं)

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