दरबार में राग अभी ज़ारी हैं...
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दरबार में राग अभी ज़ारी हैं...

विडंबना है कि पचास बरस से हम दरबार के अन्तःपुर से वाकिफ़ हो रहे हैं लेकिन नित नए दरबारों की कैद में अपने निजी स्वार्थ पूरे कर हम दरबारों के प्रभुत्त्व के विरुद्ध मुखर नहीं हो सके. 

दरबार में राग अभी ज़ारी हैं...

श्रेष्ठ कृतियां अपने ही समय में ठिठककर नहीं रह जातीं. वे अगले कई समयों को उतनी ही निस्संगता से व्याख्यायित करती हैं जितना अपने समकाल को. उनके कुछ पात्र भले ही किंचित बदल जाते हों, अब उसी रूप में दिखलाई न देते हों लेकिन उनका मूल चरित्र लगभग वही बना रहता है . इस अर्थ में श्रीलाल शुक्ल कृत उपन्यास राग दरबारी उल्लेखनीय कृति है .


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