दूसरी टीमों ने अपने हाथों में चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं
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दूसरी टीमों ने अपने हाथों में चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कड़ी प्रतिस्पर्धा वाला खेल है. इसमें अगर आप अच्छा प्रदर्शन करना चाहते हैं तो दूसरे देशों की टीमों ने भी कोई चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं. सभी टीमें तैयारी कर रही हैं.

दूसरी टीमों ने अपने हाथों में चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं

नई दिल्लीः आत्मविश्वास एक प्रभावी ताकत होता है पर अति आत्मविश्वास पतन का कारण बनता है. भारतीय क्रिकेट टीम के साथ यही हो रहा है. ऑस्ट्रेलिया को ऑस्ट्रेलिया में पीट कर आए थे और भारतीय क्रिकेट टीम व विराट कोहली के गुणगान होने लगे थे. भारतीयों को लगा था कि जब वहां हरा दिया तो भारत में तो उसी ऑस्ट्रेलिया को नांको चने चबवा देंगे. इस ऑस्ट्रेलिया टीम में उनका सबसे बड़ा गेंदबाज मिचेल स्टार्क भी नहीं था. स्टीवन स्मिथ और वार्नर तो वैसे ही उनकी टीम से अनुशासन की कार्रवाई तहत बाहर हैं. ऐसे में नाम के आधार पर तो इस ऑस्ट्रेलियाई टीम के धुर्रे बिखेर देने चाहिए थे, पर हम तो सीरीज 2- 3 से हार गए. यह कोई अच्छा संकेत नहीं है. विश्व कप पास आ रहा है और हम सपना देख रहे हैं कि विश्व कप 2019 जीतेंगे. हम यह भी मान कर ही चल रहे हैं कि हमारी चीम विश्व में सर्वश्रेष्ठ है.

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट कड़ी प्रतिस्पर्धा वाला खेल है. इसमें अगर आप अच्छा प्रदर्शन करना चाहते हैं तो दूसरे देशों की टीमों ने भी कोई चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं. सभी टीमें तैयारी कर रही हैं. जीत की जिस चाहत के साथ ऑस्ट्रेलिया ने शक्तिशाली भारत को उसके घर में ही मात दे दी है वह चौकाने वाला है. भारतीय क्रिकेट के कर्ताधर्ता अभी भी जाग जाएं तो अच्छा है. यह चेतावनी सही वक्त पर मिली है. भारतीय योजनाकार क्या इस चुनौती के लिए तैयार हैं ? क्या इस बात को भी समझ लिया जायेगा कि जिस मैच में विराट कोहली असफल हो जाएगा, उस मैच में भारत का मैच जीतना नितांत कठिन होगा. पूरी भारतीय टीम की बल्लेबाजी का केवल एक बल्लेबाज  के बल पर टिकना क्या स्वस्थ संकेत है. विराट कोहली जब टिक जाते हैं, तो अन्य बल्लेबाज  उनके इर्द गिर्द अपना योगदान देने लगते हैं, लेकिन जब विराट कोहली सस्ते में आउट हो जाते हैं, तो गहरी कही जाने वाली भारतीय बल्लेबाजी को जैसे सांप सूंघ जाता है. भारतीय टीम को आजकल तो गेंदबाज ही मैच जिता रहे हैं. बुमराह भी क्या अकेले मैच जिताते रहेंगे.

आश्चर्य तो इस बात का है कि भारतीय बल्लेबाज स्पिन गेंदबाजों के सामने नहीं टिक पा रहें हैं. एडम जम्पा व नैथन लायन ने भारतीय बल्लेबाजों के इर्द गिर्द एक जाल सा बुन दिया. इसके विपरीत भारतीय स्पिन गेंदबाजों की खूब पिटाई हुई . साधारणतया होता यह है कि भारत की गेंद पट्टियां भारतीय स्पिन गेंदबाजों को बड़ी मदद देती हैं, और भारतीय स्पिन गेंदबाज विरोधियों को धराशायी करते रहते हैं, लेकिन जब ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज फिंच, टर्नर, ख्वाजा व हैंड्सकाब ने भारतीय स्पिनर्स पर जवाबी हमला किया तो भारतीय स्पिनर्स की राह ही पूरी तरह से भटक गई. युजवेंन्द्र चहल व कुलदीप यादव को खूब धोया गया. कुलदीप यादव यूं भी एक चौंका देने वाले गेंदबाज हैं, पर एक बार उनकी चाइनामैन गुगली, टॉपस्पिनर व फ्लिपर को भांप लिया गया तो लेने के देने पड़ जाते हैं. कुलदीप यादव की रहस्यमई गेंदबाजी की गुत्थी को ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने सुलझा लिया है. आने वाले विश्व कप में भारतीय आशाओं को इससे गहरा धक्का लगेगा.

केवल एक या दो प्रदर्शन के आधार शंकर व जाधव के बारे में निर्णय कर लेना परेशानी को दावत देने के बराबर है. क्रिकेट में तकनीकी कुशलता व फिटनेस के साथ सबसे बड़ी जरूरत होती है मानसिक दृढ़ता की . इन दोनों की ही भारतीय बल्लेबाजी में कमी दिखाई दी. हार्दिक पांड्या इस मामले में ज्यादा मजबूत हैं. पर भारतीय चयनकर्ता व निर्णय करने वाले क्या सोचते हैं यह कहना मुश्किल है. अब आईपीएल का लुभावना खेल आ रहा है. टी20 के खेल के रोमांच में क्या 50-50 ओवरों के खेल की क्या किसी को याद रहेगी. संकट तो इस बात का भी है कि टी20 के आईपीएल मुकाबलों के दौरान कोई भारतीय़ खिलाड़ी घायल हो गया तो क्या होगा. 

फिलहाल तो ऑस्ट्रेलिया ने भारत को हरा कर उसे नींद से जगा दिया है. क्रिकेट का खेल कागज पर नहीं मैदान पर खेला जाता है और पूरी तैयारी के साथ खेला जाता है. सन् 1983 व 2011 में भारत ने विश्व कप जीता था. अपेक्षाओं का बाजार तो गर्म है पर काम बहुत मुश्किल है. के.एल. राहुल, अंबाती रायडू व कार्तिक को भले ही चयनकर्ताओं का साथ मिलता रहा हो, पर उनके प्रयासों में निरंतरता का नितांत अभाव है. वक्त आ गया है कि जब हम अपने वालों के बजाय आगे आने वालों का चुनाव करें. 

(लेखक प्रसिद्ध कमेंटेटर और पद्मश्री से सम्मानित हैं.)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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