भारत के ओलंपिक ब्रॉन्ज मेडल विनर केडी जाधव का 14 अगस्त 1984 को एक हादसे में निधन हो गया था.
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नई दिल्ली: भारत में जब भी ओलंपिक गेम्स (Olympic Games) की चर्चा चलती है तो हर किसी की जुबां पर पहली बार गोल्ड मेडल जिताने वाली हॉकी टीम से लेकर पिछले 2-3 ओलंपिक में पदक जीतकर लौटे पहलवान सुशील कुमार , पहलवान योगेश्वर दत्त, बॉक्सर विजेंदर सिंह, शटलर साइना नेहवाल, पहलवान साक्षी मलिक, शटलर पीवी सिंधु, शूटर अभिनव बिंद्रा, शूटर राज्यवर्धन राठौड़, बॉक्सर एमसी मैरी कॉम, वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी और टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस का ही नाम आता है.
लेकिन क्या आपको याद है कि देश के लिए पहला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक इन सभी खिलाड़ियों से कई दशक पहले एक पहलवान ने जीत लिया था. ये पहलवान थे खशाबा दादासाहेब जाधव (KD Jadhav), जिन्होंने 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक में देश के लिए फ्रीस्टाइल कुश्ती में कांस्य पदक हासिल किया था. केडी जाधव का 36 साल पहले आज ही के दिन यानि 14 अगस्त 1984 को एक सड़क दुर्घटना में निधन हो गया था.
छोटे से गांव में पैदा होकर पहुंचे ओलंपिक तक
1926 में महाराष्ट्र के सतारा जिले के गोलेश्वर गांव में जन्मे जाधव को पहलवानी का हुनर पैदाइशी मिला था. उनके पिता दादासाहेब खुद भी पहलवान थे और वो तब कोच बने जब जाधव की उम्र महज 5 साल की थी. आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि तमाम कोशिशों के बावजूद छोटे कद के जाधव ऊपर से देखने में बेहद कमजोर दिखाई देते थे. इस कारण राजाराम कॉलेज के डीन ने उन्हें अपनी कुश्ती टीम में शामिल करने से इनकार कर दिया था. लेकिन काफी मिन्नतों के बाद मिले मौके पर उन्होंने ऐसी परफॉर्मेंस दी कि सभी उन्हें 'पॉकेट डायनमो' कहने लगे थे.
Homage to KHASHABA JADHAV on Smriti Diwas.
An Indian known as POCKET DYNAMO
A wrestler hailing from Satara, Maharashtra, who won a Bronze Medal in 1952 Summer Olympics in Helsinki.He was the first athlete from Independent India to win medal in Olympics. pic.twitter.com/70dQj36Clq
— Jyoti pendse (@priority_n) August 14, 2020
1948 ओलंपिक में भी शामिल हुए
जाधव को पता चला कि देश की आजादी के बाद पहले ओलंपिक खेल लंदन में हो रहे हैं. उन्होंने अंग्रेजों की धरती पर पदक जीतकर तिरंगा लहराने की ठानी और मेहनत करने लगे. तब ओलंपिक में जाने के लिए सरकार पैसा नहीं देती थी, खिलाड़ियों को खुद ही अपने जाने का इंतजाम करना पड़ता था. जाधव के पास इतने पैसे नहीं थे, इसलिए उनका लंदन जाकर ओलंपिक मेडल जीतने का सपना टूट रहा था. लेकिन उनके हौसले को देखते हुए कोल्हापुर के महाराजा मदद के लिए आगे आए और उनके लंदन जाने का सारा खर्च उठाया. लंदन में जाधव छठे नंबर पर रहे, लेकिन उनके खेल को विशेषज्ञों ने बेहद सराहा था.
प्रिंसिपल ने घर गिरवी रखकर भेजा हेलसिंकी ओलंपिक में
लंदन में हारने के बावजूद मिली तारीफ ने जाधव का हौसला बढ़ाया और उन्होंने वापस लौटते ही 1952 के हेलसिंकी ओलंपिक खेलों की तैयारी शुरू कर दी. उन्होंने हर तरफ अपनी मेहनत और लगन से जीत हासिल करते हुए नाम कमाया. लेकिन जब हेलसिंकी जाने का नंबर आया तो जाधव के पास पैसे ही नहीं थे. जाधव तब बॉम्बे स्टेट के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई (Morarji Desai) से मिले तो उन्होंने खेलकर लौटने के बाद मिलने को कहा. निराश जाधव वापस लौटे तो राजाराम कॉलेज में उनके प्रिंसिपल खरिडकर ने अपना घर गिरवी रखकर 7 हजार रुपये की मदद दी. बाद में राज्य सरकार ने भी 4000 रुपये दे दिए. तब भी कम पड़ रहे पैसे की पूर्ति जाधव ने अपना घर गिरवी रखकर और कई लोगों से उधार लेकर पूरी की.
भारतीय अधिकारी साथ नहीं होने से जीते महज ब्रॉन्ज
जाधव ने हेलसिंकी ओलंपिक में सभी को हैरान करते हुए पहले 5 मुकाबले एकतरफा तरीके से जीत लिए. लेकिन छठे मुकाबले में वे जापान के शोहाची से हार गए. ब्रॉन्ज मेडल के लिए उनका मुकाबला रूस के पहलवान से था. उन्हें ये बाउट शोहाची से मुकाबले के तत्काल बाद लड़नी पड़ी, जबकि नियमों में उन्हें 30 मिनट का आराम दिए जाने का प्रावधान था. लेकिन जाधव के साथ कोई भारतीय अधिकारी मौजूद नहीं था और जाधव को बहुत अच्छी अंग्रेजी नहीं आती थी, इसलिए वे अपना पक्ष नहीं रख पाए. नतीजतन थके हुए जाधव मुकाबले में उतरे और हार गए. लेकिन तब तक वे ब्रॉन्ज मेडल के हकदार बन चुके थे.
वापसी पर 101 बैलगाड़ियों में निकली यात्रा, बने पुलिस में दरोगा
केदार जाधव जब लौटकर आए तो उनके सम्मान के लिए 101 बैलगाड़ियों की यात्रा का इंतजाम किया गया था. वापस लौटने पर उन्होंने कुश्ती के दंगलों में जीत-जीतकर अपने सारे कर्ज चुकाए थे. लेकिन इन्हीं दंगलों में लगी चोट के कारण वे अगले ओलंपिक में भाग नहीं ले पाए. 1955 में उन्हें बाम्बे पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी दी गई. पुलिस में बेहतरीन काम करते हुए जाधव अपने रिटायरमेंट से 6 महीने पहले असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर बन गए थे. लेकिन 14 अगस्त 1984 को एक सड़क एक्सीडेंट में जाधव गंभीर रूप से घायल हुए और फिर हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह गए.
सरकार नहीं कर पाई अपने विनर का उचित सम्मान
देश के लिए पहला पदक जीतने वाले इस पहलवान को भारत सरकार उचित सम्मान नहीं दे सकी. न तो उन्हें देश के लिए पहलवान तैयार करने के लिए आगे लाया गया और न ही उन्हें अर्जुन अवार्ड और पद्म भूषण जैसे सम्मान दिए गए. यह महज आश्चर्य ही नहीं बल्कि शर्म की बात है कि ओलंपिक पदक के 50वें साल और उनकी मृत्यु के 17 साल बाद 2001 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया. जाधव के इकलौते पुत्र रणजीत सिंह कहते हैं कि उनके पिता की इस महान उपलब्धि को सरकार ने कभी उचित सम्मान नहीं दिया. रणजीत ने इसी साल जनवरी में एक इंटरव्यू में कहा था कि सरकार बिना किसी उपलब्धि वालों को भी पद्म भूषण, पद्म विभूषण से सम्मानित कर रही है, लेकिन देश के लिए पहला पदक जीतने वाले के लिए मरणोपरांत ही सही पर ये सम्मान देने की फुर्सत सरकार को नहीं है.